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पंजाब के लिए राजधानी चंडीगढ़ और सतलुज यमुना लिंक नहर का पानी इमोशनल मुद्दे रहे हैं। अकालियों ने इन दोनों मुद्दों पर कई बार चुनाव जीते हैं। लेकिन अब चंडीगढ़ के मुद्दे पर राजनीति फिर शुरू हो गई है। दरअसल, इसकी शुरुआत कुछ इस तरह हुई। पंजाब में जैसे ही आम आदमी पार्टी की सरकार बनी, अगले ही दिन गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा कर दी कि चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के सभी कर्मचारी-अधिकारी अब केंद्र सरकार की सेवा नियमों के तहत आएंगे। पहले इन कर्मचारियों-अधिकारियों पर पंजाब सर्विस रूल लागू होता था। चंडीगढ़ वाकई में बाबुओं (नौकरशाहों) या रिटायर्ड फौजी अफसरों का शहर है।
आम आदमी पार्टी को केंद्र सरकार की यह रणनीति जब तक समझ में आती, देर हो चुकी थी। इसलिए पंजाब सरकार ने फौरन चंडीगढ़ पर दावा ठोंक दिया और कहा कि चंडीगढ़ पर पंजाब का हक है। हरियाणा के बनने के समय से ही राजधानी चंडीगढ़ के हक का मसला लटका हुआ। है। आम आदमी पार्टी की ताजा रणनीती जबरदस्त है। राजधानी का मुद्दा हल होने के बाद चंडीगढ़ का केंद्र शासित राज्य का दर्जा छिन सकता है और वहां के कर्मचारियों-अधिकारियों पर पंजाब सर्विस रूल लागू हो जाएगा। यह मुद्दा देर-सवेर कोर्ट में भी जा सकता है। केंद्र ने एक और भी काम रणनीतिक किया। उसने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में होने वाली नियुक्तियों के नियमों में बदलाव कर दिया। इस बोर्ड में अब भर्तियों को भी केंद्र ने अपने हाथ में लिया। जबकि पहले इनमें सिर्फ पंजाब और हरियाणा से नियुक्तियां होती थीं। भाखड़ा और ब्यास के पानी की ही लड़ाई तो चल रही है। दोनों राज्यों के अधिकारी उसके बोर्ड में होने से संतुलन बना रहता है और किसी एक राज्य के पक्ष में बोर्ड के फैसले नहीं हो पाते। लेकिन अब केंद्र ने इसमें भी दखल दे दिया है।
बहरहाल, शुक्रवार को पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर चंडीगढ़ पर दावे के लिए प्रस्ताव पारित कर दिया। सभी पार्टियां इस प्रस्ताव के समर्थन में थीं। पंजाब का यह महत्वपूर्ण कदम है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा में कहा कि वो चंडीगढ़ के लिए लड़ेंगे।
21 सितंबर, 1953 को पंजाब की टेंपरेरी राजधानी शिमला से चंडीगढ़ आ गई। 7 अक्टूबर, 1953 को बतौर राजधानी चंडीगढ़ का उद्घाटन हुआ। तब तक हरियाणा का जन्म नहीं हुआ था।
दरअसल, पंजाबी सूबा आंदोलन के नेता फतेह सिंह ने चंडीगढ़ पंजाब नहीं देने पर आत्मदाह की धमकी देने के बाद इंदिरा गांधी ने यह फैसला लिया था। हरियाणा से कहा गया था कि वह पांच साल तक चंडीगढ़ में दफ्तर और आवास का उपयोग तब तक करे जब तक कि वह अपनी राजधानी नहीं बना लेता। केंद्र ने हरियाणा को 10 करोड़ रुपये की ग्रांट दी और नई राजधानी बनान के लिए पैसा बतौर लोन की भी पेशकश की।
वक्त बदला। तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने 24 जुलाई 1985 को अकाली नेता हरचंद सिंह लोंगोवाल से एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और केंद्र ने चंडीगढ़ को पंजाब को देने पर रजामंदी जाहिर की। 26 जनवरी 1986 को चंडीगढ़ के ट्रांसफर की तारीख भी तय हो गई। कुछ दिनों पर आतंकावादियों ने लोंगोवाल हत्या कर दी।
7 सितंबर 1978 को तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल यह प्रस्ताव लाई। 31 अक्टूबर 1985 को सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार के समय भी यही प्रस्ताव लाया गया। बरनाला सरकार के दौरान फिर एक प्रस्ताव 6 मार्च 1986 को लाया गया।
बादल सरकार 23 दिसंबर 2014 को यही प्रस्ताव लाई। और अब सीएम भगवंत मान की सरकार शुक्रवार को सातवां प्रस्ताव लेकर आई।
इस तरह वादे के बावजूद चंडीगढ़ पंजाब को नहीं सौंपा गया और अभी तक केंद्र शासित राज्य है। पंजाब के ताजा प्रस्ताव पर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि यह सिर्फ पंजाब का विषय नहीं है, यह हरियाणा का भी उतना ही है। चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी है और दोनों की रहेगी।About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
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