loader

जेएनयू: 23 पीसीआर कॉल, कई घंटे बाद कैंपस पहुंची पुलिस 

जेएनयू में 3 घंटे तक नक़ाबपोश गुंडों ने जो कहर बरपाया, इस घटना में पुलिस की भूमिका को लेकर घायल छात्रों, प्रोफ़ेसरों और राजनीतिक दलों ने सवाल उठाये हैं। इस मामले में लगातार हो रहे ख़ुलासों के बीच एक नई जानकारी सामने आई है कि जब नक़ाबपोश गुंडे जेएनयू में हॉस्टलों के भीतर उत्पात मचा रहे थे तो पुलिस को बवाल की सूचना देने के लिए कैंपस के अंदर से 23 बार कॉल की गईं। दोपहर 2.30 बजे से लगभग 4 घंटे तक पुलिस को कॉल की जाती रही। पुलिस को यह कॉल लगभग तब तक की जाती रहीं जब तक रात 7.45 बजे जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने पुलिस को आधिकारिक रूप से कैंपस के अंदर तैनात करने का पत्र नहीं भेजा। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को मिली जानकारी के मुताबिक़, जेएनयू में हिंसा को लेकर पुलिस ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें यह अहम जानकारी सामने आई है। 

इस रिपोर्ट को दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को भेजा गया है और अब इसे गृह मंत्रालय को भेजा जा सकता है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी ख़बर में कहा है कि पुलिस कमिश्नर को भेजी गई रिपोर्ट में रविवार को सुबह 8 बजे से दिन भर के घटनाक्रम का विवरण है। रिपोर्ट में लिखा है, ‘हिंसा वाले दिन सुबह से ही जेएनयू कैंपस में 27 पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में पहुंच गए थे, इनमें महिला पुलिसकर्मी भी शामिल थीं।’ अख़बार के मुताबिक़, इन्हें इस बात की जिम्मेदारी दी गई थी कि हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए जेएनयू के प्रशासनिक भवन के 100 मीटर के अंदर कोई धरना या विरोध-प्रदर्शन न हो। रिपोर्ट में लिखा है कि इस टीम का नेतृत्व इंस्पेक्टर आनंद यादव कर रहे थे और उनके पास कोई हथियार नहीं थे। रिपोर्ट में इसके बाद दिन भर में क्या-क्या हुआ, इसके बारे में बताया गया है। 

2.30-3.30 PM - इस दौरान सिर्फ़ 1 पीसीआर कॉल हुई। अख़बार के मुताबिक़, ‘यह जेएनयू कॉम्प्लेक्स के भीतर झगड़े को लेकर पहली कॉल थी। इस कॉल में कहा गया था कि उपद्रवी या जेएनयू के छात्र, जिनमें से ज़्यादातर लोगों ने मफ़लर और कपड़ों से अपना मुंह छुपा रखा था, इन लोगों ने प्रशासनिक भवन के पास छोटे-छोटे समूहों में इकट्ठा होना शुरू कर दिया था।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने उन लोगों को 100 मीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने से रोकने की कोशिश की। 

ताज़ा ख़बरें

3.45-4.15 PM-  रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान पीसीआर को 8 बार कॉल की गईं। इन कॉल में पुलिस को बताया गया, ‘पेरियार हॉस्टल में छात्रों को पीटा जा रहा है। 40-50 उपद्रवी हाथों में डंडे लिये हुए और अपने चेहरों को छुपाकर हॉस्टल में घुस गए हैं।’ पुलिस को यह भी बताया गया कि नक़ाबपोश हंगामा कर रहे हैं और छात्रों पर हमला कर रहे हैं। इसके अलावा इन लोगों ने पुलिस के स्थिति को संभालने से पहले ही खिड़कियों और दरवाजों को तोड़ दिया था। 

4.15-6 PM - इस दौरान पुलिस को 14 बार कॉल की गईं। इसमें पुलिस को छात्रों के झगड़े और उनके कैंपस में इकट्ठा होने के बारे में बताया गया था। अख़बार के मुताबिक़, रिपोर्ट में लिखा है कि जब पुलिस ने जाँच की तो उसे झगड़े, छात्रों की पिटाई और इकट्ठा होने की घटनाएं नहीं मिलीं। 

देश से और ख़बरें

इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए अख़बार में कहा गया है, ‘7 बजे से 7.30 बजे के बीच 50-60 उपद्रवी हाथों में लाठी-डंडे लिए साबरमती ढाबे में घुस गए और छात्रों को पीटना शुरू कर दिया। ऐसा पेरियार हॉस्टल से लगभग 200 मीटर पहले हुआ। इसके बाद ये उपद्रवी साबरमती हॉस्टल में घुसे और कमरों में घुसकर छात्रों पर हमला कर दिया। इन उपद्रवियों ने दरवाजों और खिड़कियों को तोड़ दिया।’ यह भी कहा गया है कि पुलिस ने इसमें हस्तक्षेप किया और अतिरिक्त सेना को तैनात किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब रजिस्ट्रार ने पुलिस को अनुरोध पत्र भेजा, उसके बाद पुलिस वहां पहुंची। इसके बाद वरिष्ठ अधिकारियों ने फ़्लैग मार्च किया और शांति बहाल हो सकी। 

अख़बार ने जब रजिस्ट्रार से इस बारे में संपर्क किया तो उन्होंने दावा किया कि पुलिस कैंपस में शाम को 6.30 बजे पहुंची। उन्होंने कहा कि जेएनयू के कुलपति एम. जगदीश कुमार ने पुलिस से शाम 5.30 बजे बात की थी और पुलिस को बुलाने में जेएनयू की ओर से कोई देरी नहीं हुई। 

पुलिस ने क्यों नहीं लिया एक्शन?

ख़बर साफ़ कहती है कि 4 घंटे के भीतर पुलिस को 23 बार कॉल की गईं। पुलिस को बार-बार यह बताया गया कि जेएनयू के अंदर नक़ाबपोश इकट्ठा हो रहे हैं, वे मारपीट कर रहे हैं लेकिन पुलिस तब आई जब जेएनयू की ओर से उसे आने के लिए कहा गया। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पुलिस ने इतनी बार कॉल किये जाने के बाद भी एक्शन क्यों नहीं लिया। कहा जा सकता है कि अगर पुलिस पहले एक्शन में आ जाती तो नक़ाबपोशों को बवाल करने से रोका जा सकता था। ख़बर कहती है कि जेएनयू के प्रशासनिक भवन के आसपास धरना व प्रदर्शन न होने के लिए पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया गया था। ऐसे में किस तरह वहां नक़ाबपोश इकट्ठा हो गए और तीन घंटे तक उत्पात मचाते रहे। इस सवाल का जवाब हर वह शख़्स माँग रहा है, जो जेएनयू में हुई बर्बरता के लिए पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहा है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

इंडिया गठबंधन से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें