समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा कि समान नागरिक संहिता मुसलमानों की पवित्र किताब कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने भी इस कानून की आलोचना की है। उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार 6 फरवरी को यूसीसी का मसौदा पेश किया गया। इसके पास होते ही और राज्यपाल की मंजूरी के बाद कानून बनने की पूरी संभावना है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि कुछ समुदायों को इससे छूट दी जाएगी। मौलाना फिरंगीमहली ने कहा "क्या यह (यूसीसी) आने पर सभी कानूनों में एकरूपता होगी? नहीं, बिल्कुल भी एकरूपता नहीं होगी। जब आपने कुछ समुदायों को इससे छूट दी है तो एकरूपता कैसे हो सकती है? हमारी कानूनी समिति इसका अध्ययन करेगी। उन्होंने कहा, ''हम भी मसौदा तैयार करेंगे और उसके अनुसार निर्णय लेंगे।''
उत्तराखंड का विधेयक जब कानून बन जाएगा, तो यह विवाह, तलाक, विरासत आदि को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों की जगह ले लेगा। राज्य विधानसभा में भाजपा के स्पष्ट बहुमत के कारण विधेयक पारित होने की उम्मीद है। उत्तराखंड में पारित होने के बाद कम से कम भाजपा शासित राज्य इसे फौरन लागू करने की कोशिश करेंगे। 2024 के आम चुनाव से पहले इसे तमाम राज्यों में लागू कर दिया जाएगा।
उत्तराखंड कांग्रेस का कहना है कि वह यूसीसी के खिलाफ नहीं है लेकिन जिस तरह से मसौदा विधानसभा में पेश किया गया, वो गलत है। सदन में कांग्रेस विधायक दल के नेता यशपाल आर्य ने कहा, "हम इसके (समान नागरिक संहिता) खिलाफ नहीं हैं। सदन कार्य संचालन के नियमों से चलता है लेकिन भाजपा लगातार इसकी अनदेखी कर रही है और संख्या बल के आधार पर विधायकों की आवाज को दबाना चाहती है। यह सही नहीं है। विधायकों को प्रश्नकाल के दौरान सदन में अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, चाहे उनके पास नियम 58 के तहत प्रस्ताव हो या अन्य नियमों के तहत, उन्हें विधानसभा में राज्य के विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने का अधिकार है।''
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