यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) पर बहस का केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने स्वागत किया है। उन्होंने सोमवार को कहा कि यह बहस देश के लिए पॉजिटिव और कंस्ट्रक्टिव (रचनात्मक) नतीजे देगी। नकारात्मक और सकारात्मक ही दो नतीजे होंगे, अच्छी बात यह है कि बहस हो रही है। नकवी के इस बयान का क्या अर्थ हो सकता है। उन्होंने यूसीसी का समर्थन एक तरह से नहीं किया। उन्होंने सोमवार को उससे पहले बार-बार यही कहा कि इस पर बहस का स्वागत किया जाना चाहिए। समझा जाता है कि बीजेपी और आरएसएस नकवी से इस तरह का बयान दिलाकर मुसलमानों का रुख जानना चाहते हैं। मुसलमानों की तरफ से इसका बहुत खुलकर विरोध नहीं हो रहा है। बीजेपी इस मुद्दे को 2024 के आम चुनाव तक चलाना चाहती है।
नकवी ने एक न्यूज एजेंसी से कहा, कॉमन सिविल कोड हमारे संवैधानिक अधिकारों के साथ हमारी जिम्मेदारियों में से एक है। यह विषय राष्ट्रीय बहस के रूप में उभरा है। बहुत से लोग इसे पसंद करते हैं और कई नहीं करते हैं। लोग अपनी राय सामने रख रहे हैं, चाहे पॉजिटिव हो या नेगेटिव लेकिन चर्चा जारी है। मुझे यकीन है कि देश इस बहस से पॉजिटिव और रचनात्मक नतीजों का अनुभव करेगा।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने रविवार को कहा था कि बहुविवाह की प्रथा को खत्म करने के लिए देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाना चाहिए। अगर यूसीसी लागू नहीं होगा तो हमारे समाज में बहुविवाह प्रथा जारी रहेगी, जहां एक पुरुष, हमारी माताओं, बहनों के मौलिक अधिकारों को कम करते हुए 3-4 बार शादी करता है। मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं के हितों के लिए यूसीसी लागू किया जाना चाहिए, ताकि पुरुष बहुविवाह न कर सके। असम के सीएम के बयान पर नकवी ने कहा कि यूसीसी को दुनिया में पहली बार पेश नहीं किया जा रहा है, हमारे संविधान निर्माताओं ने कहा कि हमें यूसीसी को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। यह अलग बात है कि हमें चलते हुए 75 साल हो गए हैं।
बता दें कि 2019 के आम चुनाव के घोषणापत्र में, बीजेपी ने सत्ता में आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा किया था।
इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार यूसीसी लागू करने पर विचार कर रही है। इसी तरह यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी कहा था कि यूपी में यूसीसी लाने पर विचार हो रहा है।
ओवैसी का तार्किक विरोध
इससे पहले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी का विरोध करते हुए कहा था कि भारत में इसकी जरूरत नहीं है।ओवैसी ने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा था, बेरोजगारी और महंगाई बढ़ रही है और आप समान नागरिक संहिता के बारे में चिंतित हैं। हम इसके ख़िलाफ़ हैं। विधि आयोग ने भी कहा है कि भारत में यूसीसी की ज़रूरत नहीं है।
ओवैसी ने कहा कि बीजेपी सभी राज्यों में शराब पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती। जहाँ बीजेपी सत्ता में है... जिस तरह आपने गुजरात में पाबंदियां लगाई हैं, उसी तरह की पाबंदियां कहीं और क्यों नहीं लगाते? उन्होंने पूछा कि मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों के लिए हिंदू अविभाजित परिवार की तरह कर छूट क्यों नहीं है? साथ ही संविधान मेघालय, मिजोरम और नागालैंड की संस्कृति की रक्षा करने का वादा करता है... क्या इसे हटा दिया जाएगा?
ओवैसी ने गोवा की नागरिक संहिता का जिक्र किया। ओवैसी ने कहा कि गोवा में हिन्दू पुरुष को दूसरी पत्नी रखने की अनुमति है। लेकिन अगर पहली पत्नी ने 30 साल की आय़ु प्राप्त कर ली हो और उसे कोई औलाद नहीं है तो हिन्दू पति दूसरी शादी कर सकता है। गोवा में बीजेपी की सरकार है, इस पर अपना मत क्यों नहीं बताती बीजेपी।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी शासित राज्य जिस यूसीसी को लागू करना चाहते हैं, उसके तहत प्रस्ताव है कि विभिन्न समुदायों के पर्सनल लॉ खत्म हो जाएंगे। सभी धर्म, जाति के लोगों पर समान नागरिक संहिता के कानून लागू हो जाएंगे। चाहे वो धार्मिक मामले हों या फिर सामाजिक मामले हों। इसके जरिए तमाम समुदायों को अपने परंपरागत रीति-रिवाज भी छोड़ने पड़ सकते हैं। भारतीय संविधान की धारा 44 में ऐसे सिविल कोड की बात कही गई है। यूसीसी का असर सिर्फ मुसलमानों पर ही नहीं पड़ेगा। इससे तमाम आदिवासी समुदाय, सिख, जैन, बौद्ध भी प्रभावित होंगे जो अलग-अलग रीति-रिवाजों, परंपराओं को अपने विवाहों में लागू करते हैं।
अपनी राय बतायें