जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और सामाजिक कार्यकर्ता खालिद सैफी को दिल्ली की एक कोर्ट ने उत्तर पूर्वी दंगे के एक मामले में आज शनिवार को बरी कर दिया। लेकिन बरी होने के बावजूद दोनों जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद और खालिद सैफी के खिलाफ कई मामले दर्ज कर रखे हैं, जब तक सभी में उन्हें जमानत नहीं मिलती, तब तक वो जेल से बाहर नहीं आ सकते।
दोनों पर 2020 के दिल्ली दंगों में एक मामले में पुलिस ने पथराव का आरोप लगाया था। खजूरी खास थाने में इस संबंध में एफआईआर 101/2020 दर्ज की गई थी। 25 फरवरी 2020 को दर्ज की गई इस एफआईआर में पूर्वोत्तर दिल्ली के खजूरी खास इलाके में हुई हिंसा की जांच की गई थी।
इस मामले में आरोपमुक्त होने के बावजूद, दोनों सीएए विरोधी कार्यकर्ता जेल में ही रहेंगे क्योंकि उन्हें दिल्ली दंगों के बड़ी साजिश करने के कथित मामले में एफआईआर 59/2020 में अब तक जमानत नहीं मिली है। उन पर दंगा और आपराधिक साजिश के अन्य आरोपों के साथ-साथ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) भी लगा है। उमर खालिद और खालिद सैफी की जमानत अर्जी अब तक कई बार खारिज हो चुकी है।
उमर खालिद और खालिद सैफी को बरी किए जाने का आदेश अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने 3 दिसंबर को सुनाया। जज ने दोनों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC) के तहत, डिस्चार्ज किया।
खालिद सैफी परिवार के साथ।
कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए खालिद सैफी की पत्नी नरगिस सैफी ने कहा- ढाई साल से अधिक समय के बाद, यह हमारे लिए एक बड़ी जीत है। हमारा संविधान में विश्वास है और आज हम बहुत खुश हैं। पुलिस के आरोप अदालत में झूठे साबित हुए हैं।
पिता एसक्यूआर इलियास ने शनिवार को आए आदेश पर प्रतिक्रिया में कहा - हम इस आदेश को सुनकर बहुत खुश हैं, हम बहुत खुश हैं। चार्जशीट गढ़ी गई थी और मनगढ़ंत थी। उमर को एफआईआर 101/2020 में छुट्टी मिल गई है, लेकिन उन्हें एफआईआर 59/2020 में अभी तक जमानत नहीं मिली है। उन्होंने कहा-
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दोनों एफआईआर में बहुत समान आरोप लेकिन केवल इसलिए कि एफआईआर 59 में यूएपीए जुड़ा हुआ है, उमर को वहां जमानत नहीं दी गई है। लेकिन अब, हमें उम्मीद है कि उन्हें एफआईआर 59 में भी जमानत मिल जाएगी।
- एसक्यूआर इलयास, उमर खालिद के पिता, 3 दिसंबर को फैसले के बाद
चार्जशीट में क्या कहा गया था?
चार्जशीट मुख्य रूप से पूर्व आप पार्षद ताहिर हुसैन की कथित संलिप्तता पर केंद्रित थी। हालांकि, इसमें उमर खालिद और खालिद सैफी के साथ उनका बार-बार जिक्र भी किया गया। चार्जशीट में कथित 8 जनवरी की बैठक की बात की गई थी, जहां हुसैन, खालिद सैफी और उमर खालिद की तिकड़ी कथित तौर पर शाहीन बाग में दंगों की योजना बनाने के लिए मिले थे। हालांकि ये आरोप साबित नहीं हो पाए।
चार्जशीट में लिखा था- वह (ताहिर हुसैन) खालिद सैफी और खालिद से जुड़ा पाया गया, जो उन लोगों के एक बड़े समूह का हिस्सा हैं, जो दिल्ली में दंगे और विरोध प्रदर्शन आयोजित कर रहे थे। यहां यह बात तथ्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण है कि ताहिर हुसैन जिस पार्टी से जुड़े थे, उस विचारधारा से उमर खालिद और खालिद सैफी का कोई लेना-देना नहीं था। उमर और खालिद सैफी कम्युनिस्ट औऱ सोशलिस्ट विचारधारा के नजदीक थे। जबकि ताहिर हुसैन आम आदमी पार्टी के उस समय पार्षद थे।
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