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प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय

अरुंधति रॉय पर UAPA: सिविल सोसाइटी ने तानाशाही की याद दिलाई

दुनियाभर में मशहूर लेखिका और कार्यकर्ता अरुंधति रॉय के खिलाफ सरकार की कार्रवाई का विरोध शुरू हो गया है। केंद्र सरकार के तहत काम करने वाले दिल्ली के उपराज्यपाल ने एक दशक से भी ज्यादा पुराने मामले में अरुंधति पर आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए यानी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। यूएपीए वही कानून है जिसमें इस समय उमर खालिद, शरजील इमाम, खालिद सैफी जैसी युवा आंदोलनकारी नेता जेलों में बंद हैं। जिनकी किसी अदालत से जमानत तक नहीं हो रही है। कुछ को तीन साल हो चुके हैं, कुछ को चार हो चुके हैं। 
सीपीएम ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि “निंदनीय! कथित तौर पर 14 साल पहले - 2010 में दिए गए एक भाषण के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल ने कठोर यूएपीए के तहत अरुंधति रॉय पर मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। यह फासीवादी के अलावा और कुछ नहीं है। इसे करने का समय तब चुना गया है, जब अदालतें छुट्टी पर हैं, वकील भी छुट्टी पर हैं। शर्मनाक और निंदनीय!” 

कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने भी रॉय के खिलाफ मुकदमा चलाने की उपराज्यपाल की मंजूरी की निंदा की। उन्होंने कहा कि अरुंधति एक "प्रतिभाशाली दिमाग, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध लेखक और एक प्रमुख बुद्धिजीवी हैं।" बीके हरिप्रसाद ने एक्स पर लिखा है- “फासीवाद, विशेषकर बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों, कवियों और कार्यकर्ताओं की असहमति को कुचलने पर पनपता है। भाजपा असहमत लोगों का ध्यान भटकाने और उन्हें अभिभूत करने के लिए रोजाना संकट पैदा करती है, जिससे वे अपनी विफलताओं से ध्यान भटका सकें। स्वतंत्र अभिव्यक्ति और लोकतांत्रिक मूल्यों पर यह हमला अस्वीकार्य है।”

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तृणमूल कांग्रेस की फिर से चुनी गईं सांसद महुआ मोइत्रा भी रॉय के समर्थन में सामने आईंं और कहा, “अगर यूएपीए के तहत अरुंधति रॉय पर मुकदमा चलाकर बीजेपी यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि वे वापस आ गए हैं, तो वे वापस नहीं आए हैं। और वे कभी भी उसी तरह वापस नहीं आएंगे जैसे वे थे। इस प्रकार का फासीवाद बिल्कुल वैसा ही है जिसके खिलाफ भारतीयों ने वोट दिया है।''

धार्मिक जहर उगलने वाले बच जाते हैं

वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लिखा है- दिल्ली एलजी ने यूएपीए के तहत 2010 के कथित नफरत भरे भाषण मामले में लेखक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी दे दी है। जो लोग नियमित रूप से चुनाव के समय धार्मिक जहर उगलते हैं वे बच जाते हैं और असहमति की अग्रणी आवाज को 'राष्ट्र-विरोधी' करार दिया जाता है! ऐसे दिनों में, हम और अधिक बनाना गणतंत्र की तरह दिखाई देते हैं!

एक्स यूजर दाराब फारुकी ने लिखा है-  मोदी किसी बुकर पुरस्कार विजेता को आतंकवाद के आरोप में जेल में डालने वाले देश के पहले नेता होंगे। भारत की प्रतिष्ठा आसमान छू जाएगी, क्योंकि यह एक ऐसी उपलब्धि है जो कोई तानाशाह भी हासिल नहीं कर पाया है।

पत्रकार अरफा खानम शेरवानी ने एक्स पर लिखा है- हमारे बेहतरीन दिमागों में से एक, हमारी सबसे बहादुर आवाज़ों में से एक, अरुंधति रॉय के साथ हम सब एकजुट हैं! फासीवादी सबसे बुरे कायर हैं।

पत्रकार और टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने एक्स पर लिखा-    नहीं, यह रुंधति रॉय नहीं है जिस पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए। चाहे आप उनसे सहमत हों या असहमत, वह असहमति की एक सशक्त आवाज हैं। इसके बजाय उन लोगों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए जो वोटों के लिए हिंदू-मुस्लिम राजनीति करते हैं, जो सत्ता के लिए नफरत फैलाने वाले भाषण देते हैं, यह वे हैं जो भारत के खिलाफ सबसे बड़े अपराध करते हैं और असली राष्ट्र-विरोधी हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने एक्स पर लिखा है- मोदी 3 वापस आ गया है। अरुंधति रॉय के खिलाफ मुकदमा चलाने की एलजी की मंजूरी की कड़ी निंदा करती हूं। वह हमारे बेहतरीन दिमागों में से एक, अंतरराष्ट्रीय ख्याति की लेखिका और एक उत्कृष्ट बुद्धिजीवी हैं। फासीवाद किसी भी प्रकार की असहमति को बर्दाश्त नहीं कर सकता और विशेष रूप से वह बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों, कवियों और कार्यकर्ताओं से नफरत करता है। वे असहमति की आवाजों को संकट में व्यस्त रखने के लिए हर दूसरे दिन एक नया मुद्दा बनाने की अपनी रणनीति पर वापस आ गए हैं, जबकि दूसरी तरफ देश और इसके संसाधनों को उन्होंने बेचना जारी रखा हुआ है।

इन लोगों के अलावा असंख्य लोगों ने सोशल मीडिया पर इस मामले में सरकारी कार्रवाई पर विरोध जताया है। बता दें कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने शुक्रवार को लेखिका और कार्यकर्ता अरुंधति रॉय के खिलाफ सख्त आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए यानी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। यह मामला 2010 में कश्मीर पर उनकी टिप्पणियों को लेकर दर्ज किया गया था। अरुंधति के अलावा केंद्रीय विश्वविद्यालय कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन के खिलाफ भी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दी गई है।

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राजभवन के अधिकारियों के अनुसार, कश्मीर के एक सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित द्वारा 28 अक्टूबर, 2010 को की गई शिकायत के आधार पर नई दिल्ली में एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के बाद रॉय और हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।अरुंधति रॉय और शेख शौकत हुसैन के अलावा भाषण देने वालों में दिवंगत हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी, एसएआर गिलानी और वरवर राव शामिल थे। बहरहाल, देश में समुदाय विशेष के खिलाफ दिन-रात जहर उगलने वाले नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं होती, वहीं मानवाधिकारों की बात करने वालों पर यूएपीए लगा दिया जाता है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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