चीन पर नकेल कसने के लिए क्या अमेरिका अब नयी पहल कर रहा है? और क्या भारत उसमें हिस्सेदार होगा? चीन ने जिस बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव यानी बीआरआई से क्षेत्र में सामरिक पकड़ को मज़बूत करने और विश्व की महाशक्ति बनने की कोशिश में है, अब उसकी काट के लिए ब्लू डॉट नेटवर्क बनाने की तैयारी चल रही है। तो क्या चीन के बीआरआई का जवाब अमेरिका का ब्लू डॉट नेटवर्क होगा?
ब्लू डॉट नेटवर्क एक नया प्रस्ताव है जिसमें पैसिफ़िक क्षेत्र और दूसरे देशों में ढाँचा का विकास किया जाएगा और विकास की योजनाएँ चलाई जाएँगी। यानी चीन ने जिस तरह से देशों को जोड़ने के लिए ढाँचागत विकास की योजना बनाई है कुछ वैसी ही योजना ब्लू डॉट नेटवर्क की होगी। हालाँकि यह कई मामलो में अलग होगा और ज़्यादा से ज़्यादा देशों को जोड़ने की कोशिश होगी। सूत्रों के अनुसार, इस नेटवर्क का नेतृत्व अमेरिका करेगा और रिपोर्ट है कि इस प्रस्ताव पर जापान और ऑस्ट्रेलिया पहले ही पार्टनर के तौर पर सहमत हो गए हैं। कहा जा रहा है कि भारत यात्रा पर आए डोनल्ड ट्रंप और मोदी के बीच इस पर बात होगी और इसके लिए काफ़ी पहले से अधिकारियों के स्तर पर तैयारियाँ चल रही हैं।
ब्लू डॉट नेटवर्क का प्रस्ताव इसलिए काफ़ी अहम है क्योंकि अमेरिका का हित है कि वह हिंद प्रशांत इलाक़े में चीन का दबदबा बढ़ने से रोके और इसमें उसे भारत एक स्वाभाविक साझेदार लगता है। भारत भी चीन की आक्रामक नीति को चुनौती देना चाहता है।
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि चीन की चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए वह भारत को सक्षम बनाना चाहता है। इसके लिए अति उच्च तकनीक वाली अमेरिकी शस्त्र प्रणालियाँ और दूसरे शस्त्र की सप्लाई तो भारत को करना चाहता ही है, इसके साथ ही एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में भारत को साझीदार भी बनाना चाहता है।
चीन को लेकर भारत की भी अपनी चिंताएँ हैं। भारत चीन-पाक आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी और चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा यानी सीएमईसी से चिंतित है। सीएमईसी के तहत म्यांमार के क्योकफ्यू डीप-सीपोर्ट के निर्माण के लिए 1.3 अरब डॉलर का क़रार किया गया है। इस बंदरगाह के ज़रिए चीन अब अपने पूर्वी इलाक़े से सीधे बंगाल की खाड़ी तक सड़क सम्पर्क बना लेगा। ठीक उसी तरह जैसे चीन के शिन्च्यांग प्रदेश से पाकिस्तान के कराची तक जाने वाले सीपीईसी बनाने में चीन इन दिनों जुटा है।
चीन पश्चिम में कराची के रास्ते मुम्बई से 300 किलोमीटर दूर अरब सागर में अपना प्रवेश मार्ग बना चुका है और दूसरी ओर वह म्यांमार के क्योकफ्यू बंदरगाह के रास्ते बंगाल की खाड़ी में उतरने का ज़मीनी रास्ता बना लेगा। चीन ने ये प्रोजेक्ट अपने विवादास्पद बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव यानी बीआरआई के तहत बनाने का क़रार किया है।
इन्हीं चिंताओं के बीच ब्लू डॉट नेटवर्क को लेकर भारत से बातचीत की ख़बर है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि ब्लू डॉट नेटवर्क ढाँचागत परियोजनाओं के लिए उस 'मिशेलिन गाइड' की रेटिंग की तरह है जो दुनिया भर में रेस्त्राँ को उत्कृष्टता के आधार पर स्टार रेटिंग देता है।
यह नेटवर्क परियोजनाओं के सार्वजनिक परामर्श के स्तर, फ़ंडिंग में पारदर्शिता, ऋण का जाल और आधारभूत वातावरण सहित अलग-अलग पैरामीटर के आधार पर मूल्याँकन करेगा। जो परियोजना इन पैरामीटर पर खरा उतरेंगी उन्हें ब्लू डॉट का दर्जा मिलेगा। इससे उन्हें निजी फ़ंड भी मिलना आसान हो जाएगा और सिर्फ़ सरकारी फ़ंड पर निर्भर रहने की मजबूरी ख़त्म हो जाएगी।
जबकि चीन के बीआरआई में सरकारी नियंत्रण वाला फ़ाइनेंस इंटरनेशनल कंक्रीट और स्टील से लेकर कामगार और पैसा तक देता है। इसी कारण कुछ जानकारों का कहना है कि यह 'ऋण जाल में फँसाने की नीति' है। यानी एक बार इस ऋण जाल में फँस जाने पर इससे निकलना मुश्किल होता है।
ट्रंप के दौरे के दौरान मोदी के साथ इस पर बात होने की संभावना इसलिए भी है क्योंकि ट्रंप के साथ दौरा करने वाले प्रतिनिधिमंडल में इस मामले से जुड़े अधिकारी भी शामिल हैं। ब्लू डॉट नेटवर्क को लाने वाले लोगों में प्रमुख अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस और एनएसए रॉबर्ट ओब्राएन और यूएस इंटरनेशनल डवलपमेंट फ़ाइनेंस कॉर्पोरेशन के सीईओ एडम बोएलर भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं।
कहा जा रहा है कि दोनों देशों के अधिकारियों के बीच इस पर काफ़ी लंबे समय से बातचीत हो रही थी। रिपोर्टें हैं कि अमेरिका चाहता है कि इंडो-पैसिफ़िक स्ट्रैटजी के हिस्सेदार के तौर पर भारत इस प्रस्ताव में सक्रिय भूमिका निभाए।
तो सवाल है कि क्या भारत इस ब्लू डॉट नेटवर्क का हिस्सा बनेगा? जैसा कि अमेरिका चीन पर नकेल कसना चाहता है और भारत चीन के सीपीईसी जैसे प्रोजेक्ट से खफ़ा है तो क्या दोनों देशों को यह चिंता क़रीब लाएगी? अब जबकि भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते इतने सुधर रहे हैं, ट्रंप और मोदी एक दूसरे का मित्र बताते हैं तो बहुत संभव है कि इस पर बातचीत हो। लेकिन भारत इसमें शामिल होगा या नहीं, यह कहना जल्दबाज़ी होगी।
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