कांग्रेस में नेतृत्व के संकट को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। कई पार्टी नेता स्थायी अध्यक्ष न होने का मसला उठा चुके हैं और मांग कर चुके हैं कि पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव जल्द से जल्द होना चाहिए। अब पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने कहा है कि कांग्रेस के अध्यक्ष पद को लेकर बनी अनिश्चितता को हमें दूर करना होगा और पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिये ऐसा करना ज़रूरी है।
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को दिये इंटरव्यू में शशि थरूर ने कहा है कि यह राहुल गांधी पर निर्भर करता है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव स्वीकार करते हैं या नहीं लेकिन अगर वह अपने रुख में बदलाव नहीं लाते हैं तो पार्टी को सक्रिय और पूर्णकालिक नेतृत्व ढूंढने की ज़रूरत है और तभी पार्टी आगे बढ़ सकती है।
तिरूवनंतपुरम से सांसद थरूर ने पिछले हफ़्ते भी कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्यों का चुनाव करने की मांग उठाई थी। थरूर ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि सीडब्ल्यूसी के चुनाव होने पर एक ऊर्जावान नेतृत्व वाली टीम बनेगी और यह संगठन के काम में आने वाली चुनौतियों का भी सामना करेगी।
थरूर ने इंटरव्यू में इस बात पर जोर दिया कि बीजेपी की बांटने वाली राजनीति के ख़िलाफ़ कांग्रेस ही ज़रूरी राष्ट्रीय विकल्प है।
‘पार्टी में हों स्वतंत्र चुनाव’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमें नेतृत्व का मुद्दा सुलझाने की ज़रूरत है। हमें अंतरिम अध्यक्ष के बजाय लंबे समय तक काम करने वाला अध्यक्ष चाहिए और साथ ही सीडब्ल्यूसी में चुने गये सदस्यों के साथ नई शुरुआत करने की भी ज़रूरत है। थरूर ने कहा कि वह पार्टी में स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव कराने की प्रक्रिया का समर्थन करते हैं और इससे पार्टी की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
थरूर ने कहा कि सोनिया गाँधी के रूप में पार्टी को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में बेहतर विकल्प मिला है लेकिन पार्टी अनिश्चितकाल तक उनके भरोसे नहीं रह सकती। थरूर ने कहा, ‘सबसे बड़ी चिंता और आज की सबसे बड़ी ज़रूरत नये अध्यक्ष का चुनाव ही है और मुझे भरोसा है कि अगर हम पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ऐसा कर लेते हैं तो पार्टी के कार्यकर्ता जीत हासिल कर सकने वाले उम्मीदवार के पीछे अपनी पूरी ताक़त लगा देंगे।’
थरूर ने कहा, ‘वर्तमान में सीडब्ल्यूसी में चुने हुए सदस्य, स्थायी आमंत्रित और विशेष आमंत्रित सदस्य नाम की तीन कैटेगरी हैं। तीनों कैटेगरी के सदस्य हाई कमान के द्वारा मनोनीत किये जाते हैं लेकिन मुझे लगता है कि यह पार्टी के लिये बेहतर होगा अगर चुने हुए सदस्यों का वास्तव में चुनाव किया जाए।’
प्रियंका के फ़ैसले का करें सम्मान
यह पूछे जाने पर कि अगर राहुल गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वापस आने के लिये तैयार नहीं होते हैं तो क्या प्रियंका गाँधी को नेतृत्व संभालने के लिये आगे आना चाहिए, थरूर ने कहा, ‘वह किसी ऐसे कांग्रेस नेता के ख़िलाफ़ नहीं हैं, जो इस पद के लिये अपना नाम आगे करना चाहता है। मुझे उम्मीद है कि जब पार्टी अध्यक्ष पद के लिये चुनाव होगा तो प्रियंका गाँधी निश्चित रूप से अपना नाम आगे रखेंगी। लेकिन अंत में उनका जो भी फ़ैसला होगा, हम सभी को उसका सम्मान करना चाहिए।’
कुछ समय पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने भी पार्टी को असहज करने वाले सवाल उठाये थे। दिल्ली में मिली हार के बाद अरविंद केजरीवाल को बधाई देने को लेकर पार्टी नेता आपस में भिड़ चुके हैं और इससे निश्चित रूप से पार्टी की छीछालेदार हुई है।
दीक्षित ने भी उठाई थी आवाज़
कुछ दिन पहले ही पूर्व सांसद और दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने भी पार्टी में नेतृत्व के संकट पर सवाल खड़ा किया था। संदीप ने पार्टी नेताओं पर नया अध्यक्ष चुनने में नाकाम रहने का आरोप लगाते हुए कहा था कि पार्टी में 6-8 ऐसे नेता हैं जो पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं। दीक्षित ने पार्टी नेताओं पर हमला बोलते हुए कहा था कि सोनिया गाँधी पार्टी के काम के लिये वापस लौटीं लेकिन दूसरे लोग ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं।
उस समय भी थरूर ने दीक्षित के बयान का समर्थन किया था। थरूर ने कहा था कि जो बात संदीप दीक्षित ने खुलकर कही है, वही बात पूरे देश भर से पार्टी के नेता दबी-छुपी जबान में कह रहे हैं और इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो पार्टी में जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं। थरूर ने कहा था कि वह कांग्रेस कार्यसमिति से फिर से अपील करते हैं कि वह कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने के लिये और मतदाताओं को प्रेरित करने के लिये नेतृत्व का चुनाव कराये।
संकट से कैसे उबरेगी पार्टी?
वरिष्ठ नेताओं के खुलेआम पार्टी के अध्यक्ष पद पर चयन को लेकर सवाल खड़ा करने के बाद पार्टी के लिये हालात और मुश्किल हो गये हैं। हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव में पार्टी एक बार फिर शून्य पर सिमट गई। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का मसला लगातार पेचीदा होता जा रहा है। राहुल गाँधी पार्टी की कमान संभालने के लिये तैयार नहीं हैं और सोनिया गाँधी की लगातार अस्वस्थता के बाद सवाल यह है कि पार्टी किस तरह इस संकट से उबरेगी?
पार्टी आलाकमान को इस बात को समझना होगा कि अगर किसी नेता को जल्द से जल्द पार्टी का स्थायी राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं चुना जाता है तो इससे पार्टी में बाक़ी नेता भी इस तरह की आवाज़ उठायेंगे। और इसका सीधा असर पार्टी के संगठन पर पड़ेगा। सवाल यह है कि क्या देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के पास गाँधी-नेहरू परिवार के अलावा कोई दूसरा नेता ऐसा नहीं है जो पार्टी के अध्यक्ष की कुर्सी को संभाल सके।
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