लोकसभा अध्यक्ष चाहे जिस भी दल का सदस्य चुना जाए, वैसे आमतौर पर वह सत्तारूढ़ दल या उसके किसी सहयोगी दल का ही चुना जाता है, लेकिन चुने जाने के बाद उसकी दलीय संबद्धता औपचारिक तौर पर खत्म हो जाती है। वह दलीय गतिविधियों से अपने को दूर कर लेता है।