एक देश एक चुनाव को लेकर बनाई गई समिति की पहली बैठक 23 सितंबर को आयोजित होगी। इसकी पुष्टि पूर्व राष्ट्रपति और इस समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने की है। शनिवार को एक निजी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लेने भुवनेश्वर आए कोविंद ने संवाददाताओं को यह जानकारी दी।
इससे पहले बीते 2 सितंबर को, सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर निकायों और पंचायतों में एक साथ चुनाव कराने को लेकर इस समिति का गठन किया था। 8 सदस्यीय इस समिति का अध्यक्ष रामनाथ कोविंद को बनाया गया था।
इस समिति में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह,लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे, पूर्व सीवीसी संजय कोठारी समेत कुल 8 सदस्यों के नाम की घोषणा की गई थी। लेकिन विपक्ष का प्रमुख चेहरा कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने इस घोषणा के कुछ घंटों के भीतर ही अपना नाम वापस ले लिया था।
6 सितंबर को गृहमंत्री ने की थी मुलाकात
एक देश एक चुनाव को लेकर बनाई गई समिति की पहली बैठक आयोजित होने से पूर्व 6 सितंबर को को नई दिल्ली में समिति के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से गृहमंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने मुलाकात की है। इसे तब शिष्टाचार मुलाकात बताया गया था। इस समिति में विशेष सदस्य के तौर पर कानून राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल भी शामिल हैं। इस समिति को एक ही समय में लोकसभा सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकायों के चुनाव को कराने को लेकर विचार-विमर्श कर अपनी रिपोर्ट देनी है।
समिति मौजूदा कानूनी ढ़ांचे को ध्यान में रख कर देश में एक साथ चुनाव की व्यवहार्यता की जांच करेगी। केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि सरकार एक देश, एक चुनाव पर विधेयक ला सकती है। देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने को लेकर भाजपा पूर्व में वादे करती आयी है। ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले इसको लेकर बड़ा निर्णय लिया जा सकता है।
मेघवाल ने कहा, यह एक चुनाव सुधार है
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कानून और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल से कांग्रेस नेता अधीर रंजन को लेकर एक सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह एक चुनाव सुधार है और इसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। उनकी (चौधरी की) कोई राजनीतिक मजबूरी रही होगी कि उन्हें खुद को पैनल से अलग करना पड़ा। उन्होंने कहा कि 2019 में भी जब पीएम मोदी ने 'एक देश, एक चुनाव' की बात कही थी, तब भी कांग्रेस ने बैठक का बहिष्कार किया था। उन्होंने सवाल उठाया कि जब 1957, 1962 और 1967 में एक साथ चुनाव हुए थे तब केंद्र में सरकार का नेतृत्व कौन कर रहा था? मेघवाल ने कहा कि स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव 1952 से लेकर 1967 तक पूरे देश में एक साथ चुनाव होते रहे हैं।
वहीं गृह मंत्री अमित शाह को लिखे पत्र में अधीर रंजन चौधरी ने कहा था कि वह उस समिति का हिस्सा नहीं हो सकते, जिसके "संदर्भ की शर्तें" "इसके निष्कर्षों की गारंटी देने के लिए तैयार की गई हैं"। उन्होंने एक देश एक चुनाव की संभावना पर विचार करने और इसकी जांच करने को लेकर बनी समिति और इसके काम को एक धोखा बताया था।
सरकार समय से पहले भी चुनाव करवा सकती है?
कई राजनैतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि अगर देश में एक साथ लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जाते हैं तो वर्तमान राजनीति को देखते हुए इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। आगामी चार राज्यों के चुनाव में राज्य के मुद्दें अगर हावी रहते हैं तो भाजपा की उन राज्यों में स्थिति खराब हो सकती है।
वहीं अगर राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़े जाए तो पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव केंद्रित हो सकता है और इससे भाजपा के लिए जीत की राह आसान होगी। राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक भाजपा नेतृत्व यह सोच रहा है कि आने वाले दिनों में अगर लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होते हैं तो राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर भाजपा की लोकसभा और विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में बड़ी जीत हो सकती है।
दूसरी तरफ विपक्षी नेताओं का मानना है कि अचानक से संसद का विशेष सत्र बुलाना और एक देश एक चुनाव के लिए समिति बनाने का फैसला बताता है कि भाजपा इंडिया गठबंधन से डर गई है। गठबंधन को एकजुट होने या रणनीति बनाने का मौका नहीं मिले इसलिए भाजपा इस तरह की घोषणाएं कर रही है। विपक्षी नेता लगातार बयान भी दे रहे हैं कि सरकार समय से पहले भी चुनाव करवा सकती है।
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