हरियाणा में पानी की उपलब्धता पंजाब के मुकाबले कम है। यही वजह है कि दोनों राज्यों में सतलुज .यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर का मुद्दा जीने-मरने का रहा है। हरियाणा की पैदाइश 1 नवंबर 1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कलम से हुई थी। लेकिन जब हरियाणा अस्तित्व में आया तो राजधानी चंडीगढ़ समेत पानी का मुद्दा और पंजाब के हिन्दी भाषी इलाकों को हरियाणा को सौंपे जाने का मामला लटका रहा। धीरे-धीरे यह राजनीतिक मुद्दा बन गया। चौधरी देवीलाल ने एसवाईएल के पानी के मुद्दे पर चुनाव तक जीता। यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि हरियाणा और पंजाब में जब भी विपरीत विचारधाराओं वाली सरकारें होती हैं तो अक्सर यह मुद्दा उठता है और लंबे समय तक बना रहता है।
एसवाईएल का मुद्दा हरियाणा अब भी नहीं उठाता, अगर पंजाब ने पिछले शुक्रवार को चंडीगढ़ उसे सौंपे जाने की मांग विधानसभा में प्रस्ताव पारित करके न की होती। पंजाब ने यह प्रस्ताव भी पारित नहीं किया होता अगर केंद्र की मोदी सरकार ने केंद्र शासित चंडीगढ़ में सेंट्रल सर्विस रूल्स न लागू किए होते। पंजाब ने इसे सीधे दखल माना। इसलिए पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने चंडीगढ़ का मुद्दा उछाल दिया तो हरियाणा ने आज एसवाईएल का मुद्दा उछाल दिया।
हरियाणा के लिए एसवाईएल का मुद्दा बहुत ही महत्वपूर्ण है। दक्षिण हरियाणा का इलाका किसी नदी के अभाव में नहरी पानी से पूरी तरह वंचित है। एसवाईएल नहर पूरी होने पर इसका सबसे ज्यादा फायदा दक्षिण हरियाणा के भिवानी, चरखीदादरी, मेवात, महेन्द्रगढ़, गुड़गांव की प्यास बुझाई जा सकती है। गर्मी में हर साल गुड़गांव में पेयजल को लेकर प्रदर्शन होते हैं। हालांकि फरीदाबाद भी दक्षिण हरियाणा का पार्ट है लेकिन वहां यमुना का पानी रैनीवेल के जरिए लाकर कुछ हद तक कमी को पूरा किया गया है। इसके बावजूद गुड़गांव के बाद फरीदाबाद भी पेयजल संकट से जूझता रहता है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ था
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निर्देश दिया था कि एसवाईएल का निर्माण हरियाणा और पंजाब अपने अपने इलाकों में करें। इस पर किसी तरह का आंदोलन छेड़ने की जरूरत नहीं है।
इसके बाद दोनों पक्षों ने इस पर चुप्पी साध ली। नहर को बनाने के मुद्दे पर कोई प्रोग्रेस नहीं देखी गई।
एसवाईएल पर हरियाणा का बहुत स्पष्ट स्टैंड है कि एसवाईएल नहर का निर्माण और पानी की उपलब्धता का आपस में कोई संबंध नहीं है। पानी का आवंटन पानी की उपलब्धता के आधार पर उसी अनुपात के आधार पर किया जाएगा, जैसा 1981 के समझौते में प्रावधान किया गया था।
हरियाणा का काम पूरा
212 किमी. लंबी इस नहर का 121 किमी. हिस्सा पंजाब से होकर गुजरेगा जबकि बाक़ी 91 किमी. हिस्सा हरियाणा से। हरियाणा वाली तरफ का काम पूरा हो चुका है और पंजाब की ओर से भी काफी काम पूरा हो चुका था। लेकिन 1988-90 के दौरान आतंकवादियों ने नहर बना रहे कई मज़दूरों और इंजीनियरों को गोली मार दी थी। उसके बाद नहर का काम रुक गया था।8 अप्रैल, 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एसवाईएल योजना की शुरुआत पंजाब के पटियाला जिले के कपुरई गांव से किया। एसवाईएल की ज़रूरत हरियाणा के किसानों को ज़्यादा थी लेकिन पंजाब के किसान इसलिए परेशान थे कि अगर हरियाणा को उसके हिस्से का पानी मिल जाएगा तो पंजाब के खेतों के लिए पानी कम पड़ जाएगा।
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