क्या आपको यह पता है कि इस समय देश के विभन्न हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में कुल मिला कर जजों के 411 पद खाली पड़े हुए हैं और अदालतों के कॉलिजियम ने सरकार के पास जो सिफारिशें भेजी हैं, उनमें से ज़्यादातर पर सरकार लंबे समय से कुंडली मार कर बैठी है?
और यह हाल उस समय है जब पूरे देश में लगभग तीन करोड़ मामले अदालतों में लंबित पड़े हैं। इनमें से 60 हज़ार मामले सुप्रीम कोर्ट के पास विचाराधीन हैं, विभिन्न हाई कोर्टों में 42 लाख मामलों पर सुनवाई हो रही है और ज़िला व सब-ऑर्डिनेट अदालतों में 2.7 करोड़ मामले लटके पड़े हैं।
भयावह स्थिति!
भारत सरकार के न्याय विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर 1 अप्रैल 2021 को खाली पदों की तादाद 411 बताई गई है। इसके एक साल पहले यानी 1 मार्च 2020 को इन अदालतों में खाली पदों की संख्या 389 थी।स्थिति की भयावहता को इससे समझा जा सकता है कि 1 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट में जजों के चार पद खाली पड़े थे, 1 अप्रैल 2021 को जजों के 5 पद खाली थे।
लेकिन यह तो पूरी स्थिति का बहुत ही छोटा सा हिस्सा है। अंग्रेजी की कहावत का प्रयोग करें तो यह तो हिमखंड का सिर्फ ऊपरी कोना है।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
इससे आजिज़ आकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता में बनी एक बेंच ने एक समय सीमा तय कर दी है और सरकार से कहा है कि वह उसका पालन करे और कॉलिजियम की सिफ़ारिश भेजे जाने के तीन-चार सप्ताह के अंदर निर्णय कर ले।
'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने यह टाइमलाइन बनाया है, इस बेंच में बोबडे के अलावा जस्टिसज एस. के. कौल और जस्टिस सूर्य कांत भी है।
सुप्रीम कोर्ट की टाइमलाइन की मुख्य बातें
- हाई कोर्ट की ओर से नाम भेजे जाने के 4-6 सप्ताह के अंदर इंटेलीजेंस ब्यूरो अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दे।
- राज्य सरकार और हाई कोर्ट से सिफारिश मिलने के 8-12 हफ़्तों के अंदर केंद्र सरकार फ़ाइल सुप्रीम कोर्ट को भेज दे।
- यदि सुप्रीम कोर्ट को कोई आपत्ति हो तो वह इस तय समय-सीमा के अंदर ही फ़ाइस वापस कर दे और स्पष्ट शब्दों में बताए कि उसे क्यों और किस बात पर आपत्ति है।
- यदि सरकार से इनपुट मिलने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट आमराय से किसी की नियुक्ति पर फ़ैसला करता है तो तीन-चार सप्ताह में वह नियुक्ति कर दे।
50 प्रतिशत पद खाली
सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने कहा है कि हाई कोर्टो में 40-50 प्रतिशत तक जजों के पद खाली पड़े हैं।
ओडिशा हाई कोर्ट के एक जज के ट्रांसफर से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह बेंच गठित किया।
इस मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्न जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि हाई कोर्टो में जजों के 1080 पद हैं, जिनमें से 416 पद खाली पड़े हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है,
“
हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीरों के महत्व को कम कर नहीं आँका जा सकता और उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया समय पर शुरू होनी चाहिए, खाली पदों के बार में सिफ़ारिश छह महीने पहले ही कर दी जानी चाहिए। इनमें से 220 खाली पदों के बारे में सिफ़ारिशें नहीं भेजी गई हैं, जो पद भविष्य में खाली होने वाले हैं, उनकी तो बात ही छोड़ दें।
सुप्रीम कोर्ट
मेमोरंडम ऑफ़ प्रोसीजर
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी याद दिलाया है कि 10 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम से तय मेमोरंडम ऑफ़ प्रोसीजर के अनुसार राज्य अपने विचार बताने में छह हफ़्तों से अधिक का समय नहीं ले सकते। यदि राज्य से छह सप्ताह के अंदर कोई जवाब नहीं आता है तो केंद्र सरकार यह मान सकती है कि राज्य को उन नामों पर कोई आपत्ति नही है।
इस मेमोरंडम ऑफ़ प्रोसीजर में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश चार सप्ताह के अंदर अपनी सिफारिश क़ानून मंत्री को भेज दे और प्रधानमंत्री तीन सप्ताह के अंदर अपने सुझाव राष्ट्रपति को दे दें।
विधि आयोग 1987 से ही इस मुद्दे को उठाता रहा है और उस समय से अब तक 15 मुख्य न्यायाधीशों ने अलग-अलग समय में अधिक अदालतों के गठन और बड़ी तादाद में जजों की नियुक्ति की बात कही है।
पर मामला वही रुका हुआ है, स्थिति वही है, ढाक के तीन पात!
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