नागरिकता संशोधन क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया एसए बोबडे, जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि वह नागरिकता क़ानून पर फिलहाल रोक नहीं लगा सकती। बताया जा रहा है कि अदालत इस मामले को संवैधानिक बेंच में भेज सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कई राज्यों ने एनपीआर की प्रक्रिया को शुरू कर दिया है। वकील विकास सिंह ने अंतिरम आदेश देने पर जोर दिया और कहा कि यह क़ानून असम समझौते के ख़िलाफ़ है। विकास सिंह ने कहा कि असम का मामला पूरी तरह अलग है और पिछली सुनवाई के बाद से असम में 40 हज़ार लोग आ चुके हैं। इस पर अदालत ने कहा कि उन्हें सभी याचिकाओं को सुनना होगा और तभी वे कोई आदेश पारित कर सकते हैं। सीजेआई ने कहा कि वह असम के मामले में वह दो महीने बाद सुनवाई करेंगे। अदालत की ओर से असम और त्रिपुरा की अलग-अलग लिस्ट मांगी गई है।
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में चल रहे विरोध-प्रदर्शनों के बीच विपक्षी दलों की कई राज्य सरकारों ने इसके ख़िलाफ़ अपने राज्य की विधानसभा में प्रस्ताव पास किया है और केरल की ही तरह सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी में हैं। कांग्रेस शासित सभी राज्यों की सरकारों में इस क़ानून के ख़िलाफ़ विधानसभा में प्रस्ताव पास कराये जाने की तैयारी है। ऐसे में केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं और नज़रें अब सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं।
पिछले साल 18 दिसंबर को इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान जब दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिंसा हुई थी तो कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। तब कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था लेकिन क़ानून पर रोक लगाने से इनकार करते हुए 22 जनवरी को सुनवाई की तारीख़ मुकर्रर की थी।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश, इंडियन यूनियन मुसलिम लीग (आईयूएमएल), जमीयत उलेमा-ए-हिंद, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन सहित कई संगठनों और नेताओं की ओर से क़ानून के विरोध में कोर्ट में याचिका दाख़िल की गई है।
इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह क़ानून संविधान के मूल ढांचे के ख़िलाफ़ है और इसके अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह क़ानून धार्मिक भेदभाव के आधार पर तैयार किया गया है और समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
नागरिकता संशोधन क़ानून के अनुसार 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध नागरिक नहीं माना जाएगा और उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। क़ानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग़ से लेकर कई जगहों पर प्रदर्शन हो रहे हैं और 26 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
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