क्या 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को सबरीमला के अयप्पा मंदिर में फ़िलहाल प्रवेश नहीं करना चाहिए? मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे के ताज़ा फैसले के बाद यह सवाल उठना लाज़िमी है। जस्टिस बोबडे ने गुरुवार को एक अहम फ़ैसले में कहा कि 2018 में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फ़ैसला दिया था, वह अंतिम नहीं है।
महिला श्रद्धालु बिन्दु अम्मीनी ने सबरीमला मंदिर जाने की अनुमति से जुड़ी एक याचिका सर्वोच्च अदालत में दायर की थी, जिसकी पैरवी उनकी ओर से मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह कर रही थीं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘इस मामले पर फ़ैसला देने के लिए एक बड़ी बेंच को सौंपा गया है। अब तक कोई अंतिम बात नहीं कही है।’
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने एक फैसले में यह मामला सात जजों की एक बेंच को सौंपने का आदेश दिया था। पाँच जजों की एक बेंच ने 14 नवंबर को वह फ़ैसला 3-2 के बहुमत से दिया था।
बिन्दु अम्मीनी इस मामले पर बात करने के लिए जब पुलिस आयुक्त के दफ़्तर गईं, उस परिसर में ही उन पर हमला किया गया। इंदिरा जयसिंह ने कहा, ‘पुलिस कमिश्नर के दफ़्तर के ठीक सामने ही उन पर किसी रसायनिक पदार्थ से हमला किया गया।’
बेन्च ने कहा है कि वह इस मामले पर सुनवाई अगले हफ़्ते करेगी। बिन्दु ने अपनी याचिका में कहा कि वह महिला कार्यकर्ता तृप्ति देसाई के साथ सबरीमला मंदिर जाना चाहती थीं। टैक्सी वालों ने उन्हें वहाँ ले जाने से इनकार कर दिया। इस पर जब वे बात करने एर्नाकुलम पुलिस कमिश्नर के पास गईं तो दफ़्तर के सामने ही उन पर हमला किया गया।
मंदिर में 10 से 50 साल के उम्र की महिलाओं के प्रवेश से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से राज्य में खलबली मची हुई है। एक ओर जहाँ 36 महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा रखा है, सरकार ने साफ़ तौर पर कह दिया कि वह महिलाओं को मंदिर दर्शन के लिए विशेष सुरक्षा मुहैया नहीं कराएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि मंदिर किसी तरह के आन्दोलन की जगह नहीं है और ऐसे लोग न आएं जो सिर्फ़ आन्दोलन की नीयत से आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यों के खंडपीठ ने मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश से जुड़ी याचिका की सुनवाई के लिए 7 सदस्यों का बड़ा खंडपीठ बनाने को कहा है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रस्तावित खंडपीठ के फ़ैसले तक मंदिर में किसी को जाने से नहीं रोका जा सकता है। इसके बाद सरकार ने कहा कि वह अदालत के आदेश का पालन करेगी। इस खंडपीठ में जस्टिस एफ़. आर. नरीमन, ए. एम खानविलकर, डी. वाई. चंद्रचूड़ और इन्दु मलहोत्रा भी शामिल थीं।
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