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जस्टिस शेखर कुमार यादव

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जज शेखर यादव के विवादित साम्प्रदायिक बयान का संज्ञान लिया

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार दोपहर को एक बयान जारी कर कहा कि उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के उस भाषण का संज्ञान लिया है। जिसे मीडिया ने प्रकाशित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने बयान में कहा- ''इलाहाबाद हाईकोर्ट से और विवरण मंगाया गया है और मामला विचाराधीन है।''

विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी या विहिप) के कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव ने रविवार को कहा था- 'मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है, और यह देश यहां रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा। यह कानून है। यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बोलने के बारे में नहीं है; बल्कि, कानून बहुसंख्यकों के अनुसार काम करता है। इसे एक परिवार या समाज के संदर्भ में देखें - केवल वही स्वीकार किया जाएगा जो बहुसंख्यकों के कल्याण और खुशी को सुनिश्चित करता है।' 
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उन्होंने यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता पर भी बात की। यूसीसी का उद्देश्य मानकीकृत व्यक्तिगत कानूनों का एक सेट स्थापित करना है जो सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, चाहे उनका धर्म, लिंग या जाति कुछ भी हो। इसमें विवाह, तलाक, गोद लेना, विरासत और उत्तराधिकार जैसे पहलू शामिल होंगे। मुस्लिम समुदाय का नाम लिए बिना न्यायाधीश ने कहा कि कई पत्नियाँ रखना, तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाएँ अस्वीकार्य हैं। उन्होंने कठमुल्ला शब्द भी बोला।

न्यायाधीश ने कई विवादास्पद बयान दिए, जिसमें व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुसलमानों के खिलाफ आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द 'कठमुल्ला' का इस्तेमाल करना भी शामिल है। चरमपंथियों को 'कठमुल्ला' कहते हुए उन्होंने कहा कि देश को उनके प्रति सतर्क रहना चाहिए। उन्होंने कहा, 'लेकिन ये जो कठमुल्ला है जो…ये सही शब्द नहीं है… लेकिन कहने में परहेज नहीं है क्योंकि वो देश के लिए बुरा है… देश के लिए घातक है, खिलाफ़ है, जनता को भड़काने वाले लोग हैं… देश आगे ना बढ़े इस प्रकार के लोग हैं… उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।'

जस्टिस शेखर के बयान पर देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई और अधिकांश लोगों ने इस पर आपत्ति जताई। न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने मंगलवार (10 दिसंबर) को भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को पत्र लिखकर इस मामले पर "इन-हाउस जांच" कराने का आग्रह किया।

सीजेएआर ने कहा कि कार्यक्रम में भाग लेने और विवादास्पद भाषण देने से जस्टिस यादव के आचरण ने “न्यायपालिका की आजादी और तटस्थता के बारे में औसत नागरिकों के मन में संदेह पैदा कर दिया है, इस पर एक मजबूत संस्थागत प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।” सीजेएआर ने एक जज के इस तरह के व्यवहार के प्रभावों की ओर भी इशारा किया।
जस्टिस यादव के बयान के खिलाफ अखिल भारतीय वकील संघ ने भारत के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। वकीलों के संघ ने कहा कि जस्टिस यादव का भाषण "मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वाला है।" भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के राज्यसभा सदस्य और ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के अध्यक्ष बिकास रंजन भट्टाचार्य और एआईएलयू महासचिव पी.वी. सुरेंद्रनाथ द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि जस्टिस यादव का "सांप्रदायिक भाषण" "संविधान और उसके लोकाचार के खिलाफ है। उनका बयान धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की आजादी का सीधा अपमान है।" उन्होंने कहा कि ''यह न्यायपालिका की आजादी को अंदर से नुकसान पहुंचाने की तरह है।'' उन्होंने कहा कि जस्टिस यादव की अभिव्यक्ति और लोकतंत्र की अवधारणा "हिंदू राष्ट्र" से कम नहीं है।

सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने भी चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को पत्र लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए कार्रवाई की मांग की। अपने पत्र में, करात ने कहा कि जस्टिस यादव का भाषण "घृणास्पद भाषण" था और यह संविधान पर उनकी शपथ का उल्लंघन है, जब उन्हें जज के रूप में शपथ दिलाकर शामिल किया गया था।

बृंदा करात ने कहा-  "यह भाषण एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश की सामूहिक चेतना का अपमान है। इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज द्वारा दिया जाना न्याय प्रक्रिया पर भी हमला है। कोई भी आम आदमी अदालत में इंसाफ की उम्मीद नहीं कर सकता है जिसका एक सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ और बहुसंख्यकवादी नजरिये के पक्ष में पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रह से भरी, सार्वजनिक रूप से ऐसी राय रखता है।''

जस्टिस शेखर की विवादास्पद टिप्पणियां

जुलाई 2021 में, जस्टिस यादव ने एक महिला को गैरकानूनी तरीके से इस्लाम में परिवर्तित करने के आरोपी जावेद नामक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि हमारे देश में धार्मिक कट्टरता, लालच और भय के लिए कोई जगह नहीं है और अगर बहुसंख्यक व्यक्ति अपमानित होने पर एक समुदाय अपना धर्म परिवर्तन कर लेता है तो देश कमजोर हो जाता है और विनाशकारी शक्तियों को इसका लाभ मिलता है।

सितंबर 2021 में, गाय की हत्या के आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए, जस्टिस यादव ने कहा था कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए और गाय की रक्षा को हिंदुओं के मौलिक अधिकार के रूप में रखा जाना चाहिए। हिंदी में लिखे गए आदेश में, जस्टिस यादव ने उत्साहपूर्वक गाय के कई गुणों का वर्णन किया और इस बात पर जोर दिया कि वह राष्ट्रीय पशु होने के योग्य है। उन्होंने कहा था कि गाय ही एकमात्र पशु है जो ऑक्सीजन छोड़ती है और ऑक्सीजन का ग्रहण करती है। हालांकि इसके लिए उन्होंने किसी रिसर्च का हवाला नहीं दिया था।
इसी फैसले में जस्टिस यादव ने लिखा था- "पंचगव्य, जो गाय के दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर से बना है, कई लाइलाज बीमारियों के इलाज में मदद करता है।" उन्होंने आगे कहा कि भारत में यज्ञ के दौरान गाय के दूध से बने घी का उपयोग करना एक परंपरा है क्योंकि "यह सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा देता है, जो अंततः बारिश का कारण बनता है।"
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अक्टूबर 2021 में उन्होंने एक फैसले में लिखा था कि हिंदू धार्मिक पुस्तकें जैसे गीता, रामायण आदि को स्कूली पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। दिसंबर 2021 में, अपने एक आदेश में पीएम मोदी के मुफ्त COVID-19 टीकाकरण अभियान की प्रशंसा करते हुए, जस्टिस यादव ने उनसे ओमीक्रॉन के बढ़ते खतरे को देखते हुए 2022 यूपी राज्य विधानसभा चुनाव स्थगित करने का आग्रह किया था। हालांकि सरकार ने चुनाव स्थगित नहीं किया था।

(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)
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