सुप्रीम कोर्ट ने बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के उस फ़ैसले पर रोक लगा दी है जिसमें यह कहा गया था कि नाबालिग बच्चियों को सीधे चमड़ा स्पर्श किए बगैर ग़लत तरीके से छूने को यौन हमला न माना जाए। मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की बेंच ने अभियुक्त को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है।
बता दें कि इसके पहले एक सत्र न्याालय ने 12 साल की एक बच्ची की छाती दबाने और उसके कपड़े हटाने की कोशिश करने के मामले में अभियुक्त को प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेन्सेज (पॉक्सो) एक्ट के तहत दोषी माना था।
क्या कहा था नागपुर बेंच ने?
लेकिन उसके बाद बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की जज जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाल ने सत्र न्यायालय के निर्णय को पलट कर पॉक्सो नहीं बल्कि भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (छेड़छाड़) के तहत सजा सुनाई थी। इस धारा के तहत एक साल की सज़ा हो सकती है जबकि पॉक्सो के तहत तीन साल की।
जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाल ने कहा था कि 'स्किन टू स्किन टच' (सीधे चमड़े का स्पर्श) और कपड़ा हटाने की बात नही होने के कारण इस मामले में पॉक्सो नहीं लगाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा था कि पॉक्सो के तहत मामले में अधिक पुख़्ता सबूत और गंभीर आरोप होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ही रोक लगाई है, यानी स्किन टू स्किन टच यानी सीधा स्पर्श नहीं होने की स्थिति में पॉक्सो नहीं लगाया जाए, इस पर रोक लगा दी गई है।
अदालत ने शारीरिक संपर्क (फ़िजिकल कन्टैक्ट) की व्याख्या करते हुए कहा कि यह चमड़े से चमड़े का संपर्क (स्किन टू स्किन कंटैक्ट) है। यह साबित नहीं किया जा सका कि बच्ची का कपड़ा हटाया गया, इसलिए इसे शारीरिक संपर्क नहीं माना जाएगा।
क्या कहता है पॉक्सो?
पॉक्सो अर्थात प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेन्सेज़ साल 2012 में लागू किया गया। इसकी धारा 7 में कहा गया है कि यौन हमले की मंशा से किसी की योनि, गुदा, लिंग या छाती को छूना या किसी बच्चे को ऐसा करने के लिए मजबूर करना शारीरिक संपर्क माना जाएगा।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 14 दिसंबर, 2016 को अभियुक्त बच्ची को अमरूद देने के बहाने अपने घर ले गया, उसकी छाती दबाई और उसके कपड़े हटाने की कोशिश की। उसी समय उसकी माँ वहाँ पहुँच गई और बच्ची को बचाया। उसके तुरन्त बाद ही एफ़आईआर दर्ज की गई और उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया।
अपनी राय बतायें