सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के किसी सदस्य का "अपमान या धमकी" एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं है। ऐसे मामलों में पीड़ित का एससी-एसटी समुदाय से होना जरूरी है। अपने फैसले में, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 18 अदालतों को यह जांच करने की पावर पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती है कि क्या प्रथम दृष्टया 1989 के अधिनियम के प्रावधानों को आकर्षित करने वाला मामला बनता है या नहीं।