सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म पर दिखाई जाने वाली सामग्री को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश को ज़रूरी बताया है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म और ओटीटी की सामग्री को नियंत्रित करने के लिए दिशा- निर्देश उसके सामने पेश करे। सर्वोच्च अदालत ने इसके पीछे तर्क देते हुए कहा है कि कुछ तो पोर्न सामग्री तक दिखाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अशोक भूषण ने गुरुवार को कहा, "अब ओटीटी पर फ़िल्म देखना आम हो गया है। हमारी राय है कि इस पर कुछ तो नियंत्रण होना चाहिए।" वे वेब सिरीज़ 'तांडव' के मामले में एमेज़ॉन इंडिया की अपर्णा पुरोहित की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। पुरोहित की अग्रिम ज़मानत की याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच में जस्टिस अशोक भूषण के अलावा जस्टिस आर. एस. रेड्डी भी थे। बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, "ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म पर दिखाई जाने वाली चीजों में संतुलन ज़रूरी है क्योंकि कुछ तो अश्लील सामग्री भी दिखाते हैं।" बेंच ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे सरकार के दिशा- निर्देश अदालत के सामने पेश करें।
क्या कहना है सरकार का?
बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते हफ़्ते ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म को लेकर नए नियमों का एलान किया। सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि सोशल मीडिया कंपनियों का भारत में व्यापार करने के लिए स्वागत है, लेकिन इनके प्लैटफ़ॉर्म का इस्तेमाल नफ़रत फैलाने और फ़ेक न्यूज़ के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि सरकार इस बात के पूरी तरह ख़िलाफ़ है कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल हिंसा भड़काने या किसी अन्य ग़लत काम के लिए हो।
प्रसाद ने कहा था कि कई न्यूज़ चैनलों ने भी फ़ैक्ट चैक का काम शुरू किया है और इसके पीछे कारण यही है कि सोशल मीडिया पर फर्जी ख़बरें फैलाई जाती हैं। उन्होंने कहा, “कई साल से सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल के ख़िलाफ़ चिंता जताई जा रही थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी हिंसा और अश्लीलता फैलाने वाले कंटेंट को लेकर नियम बनाने को कहा था।” इसके बाद संसद में भी इसे लेकर चिंता जताई गई और उनके मंत्रालय ने इसे लेकर व्यापक विचार-विमर्श किया।
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