22 महीने की लंबी रूकावट के बाद आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम ने 9 जजों के नामों पर मुहर लगा दी। सीजेआई एन.वी.रमना ने मंगलवार को केंद्र सरकार को 9 जजों के नाम भेजे हैं। इन सभी को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया जाना है। इनमें तीन महिला जज भी हैं।
इनमें कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, तेलंगाना हाई कोर्ट की चीफ़ जस्टिस हिमा कोहली और गुजरात हाई कोर्ट की जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना भारत की पहली महिला सीजेआई बन सकती हैं।
पांच सदस्यों वाले कॉलिजियम में सीजेआई रमना के अलावा, जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव का नाम शामिल है।
केंद्र सरकार के पास नाम भेजे जाने से कुछ दिन पहले ही जस्टिस आर. नरीमन सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे। जस्टिस आर. नरीमन मार्च, 2019 से कॉलिजियम के सदस्य थे और उनका कहना था कि इस मामले में तब तक आम सहमति नहीं बन सकती जब तक दो वरिष्ठ जजों- कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस अभय ओका और त्रिपुरा हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस अकील क़ुरैशी के नाम की सबसे पहले सिफ़ारिश नहीं कर दी जाती।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने कहा है कि जस्टिस ओका के साथ ही गुजरात हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस विक्रम नाथ और सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस जेके माहेश्वरी का नाम भी 9 जजों की सूची में शामिल है। जस्टिस ओका देश में कोरोना महामारी के दौरान प्रवासियों के हक़ों से जुड़े व कई अन्य अहम फ़ैसले दे चुके हैं।
इसके अलावा केरल हाई कोर्ट में जस्टिस सी.टी. रविकुमार, मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एम.एम. सुंदरेश के नाम की भी कॉलिजियम ने सिफ़ारिश की है। बार से पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी.एस. नरसिम्हा का नाम भेजा गया है।
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अगर केंद्र सरकार कॉलिजियम की सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लेती है तो सुप्रीम कोर्ट में खाली पड़े जस्टिस के सभी पदों को भर लिया जाएगा और अदालत में जजों की संख्या 33 हो जाएगी। लेकिन जस्टिस नवीन सिन्हा बुधवार को रिटायर हो रहे हैं, इसके बाद एक और पद खाली हो जाएगा।
क्या है कॉलिजियम?
कॉलिजियम शीर्ष न्यायपालिका में जजों को नियुक्त करने और प्रमोशन करने की सिफ़ारिश करने वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जजों की एक समिति है। यह समिति जजों की नियुक्तियों और उनके प्रमोशन की सिफ़ारिशों को केंद्र सरकार को भेजती है और सरकार इसे राष्ट्रपति को भेजती है। राष्ट्रपति के कार्यालय से अनुमति मिलने का नोटिफ़िकेशन जारी होने के बाद ही जजों की नियुक्ति होती है।
सरकार का ‘अड़ियल रवैया’
सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के खाली पदों को भरने में केंद्र सरकार की ओर से हो रही देरी पर पिछले हफ़्ते नाराज़गी जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम द्वारा सिफारिशों को मंजूरी देने के सालों बाद भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं होने के पीछे कारण सरकार का ‘अड़ियल रवैया’ है।
2006 में देश भर के उच्च न्यायालयों में जहां स्वीकृत 726 पदों में से 154 पद खाली थे वहीं अब स्वीकृत क़रीब ग्यारह सौ पदों में से आधे पद खाली हैं। लोकसभा में उठाए गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में कहा था कि हाई कोर्ट के जजों के 453 पद खाली पड़े हैं। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 1098 पद स्वीकृत हैं।
जस्टिल क़ुरैशी का नाम नहीं
लेकिन इस बार भी जस्टिल अकील क़ुरैशी के नाम की सिफ़ारिश कॉलिजियम ने नहीं की है। सितंबर, 2019 में कॉलिजियम के फ़ैसले को लेकर विवाद हुआ था क्योंकि तब इसने केंद्र सरकार की आपत्ति पर गुजरात हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस अकील क़ुरैशी से जुड़ी अपनी ही सिफ़ारिश को पलट दिया था।
जस्टिस क़ुरैशी ने गुजरात हाई कोर्ट में रहते हुए कई अहम फ़ैसले सुनाए थे। उनमें से एक फ़ैसला गृह मंत्री अमित शाह से जुड़ा हुआ था। तब शोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस कुरैशी ने उन्हें दो दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया था। हालांकि बाद में अमित शाह को इस केस में बरी कर दिया गया था।
उस वक़्त गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष यतिन ओझा ने आरोप लगाया था कि संदेश यह दिया जा रहा है कि यदि आप सत्ताधारी पार्टी के ‘ख़िलाफ़’ फ़ैसले देंगे तो इसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे।
इसके अलावा जस्टिस विजया ताहिलरमानी को मद्रास हाई कोर्ट से अपेक्षाकृत छोटे मेघालय हाई कोर्ट में भेजे जाने को लेकर भी सवाल उठे थे।
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