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भीमा कोरेगांव केस में जेल में बंद सुधा भारद्वाज भी पेगासस के निशाने पर थीं!

भीमा कोरेगांव केस को लेकर आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज भी पेगासस स्पाइवेयर के निशाने पर थीं। वह अभी भी जेल में बंद हैं। वह उन 16 आरोपियों में से एक हैं जिन्हें भीमा कोरेगाँव के मामले में आरोपी बनाया गया है। ये सभी किसी न किसी रूप में ग़रीब आदिवासियों के लिए काम करते रहे हैं या थे। स्टैन स्वामी, सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन भी उनमें से एक थे।

भीमा कोरेगांव मामला उस भीमा कोरेगाँव से जुड़ा है जहाँ हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। 2018 को 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे थे। इस दौरान हिंसा हो गई थी। इस हिंसा का आरोप एल्गार परिषद पर लगाया गया। ऐसा इसलिए कि 200वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले एल्गार परिषद की बैठक हुई थी। इस मामले से जुड़े होने को लेकर वर वर राव, अरुण फ़रेरा, वरनों गोंजाल्विस, गौतम नवलखा जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी अभियुक्त बनाया गया।

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एनआईए को  इस मामले की जाँच सौंपी गई थी। उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साज़िश रची। सरकार का तख्ता पलटने की साज़िश रचने का आरोप भी लगा था।

आरोपियों में सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज भी शामिल हैं। उनको ग़रीबों को न्याय दिलाने के लिए लड़ने के लिए जाना जाता है। वह ग़रीब आदिवासियों के लिए अदालतों में क़ानूनी लड़ाई लड़ती रही हैं। 'वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट के अनुसार सुधा भारद्वाज का नंबर भी इजराइली एनएसओ ग्रुप के क्लाएंट की निगरानी वाली सूची में शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार सुधा की पैरवी करने वाले वकील, उनके क़रीबी दोस्त व मानवाधिकार मामलों के वकील और सिविल लिबर्टीज ग्रुप के साथ काम करने वाले एक अन्य वकील का नंबर भी पेगासस द्वारा निगरानी किए जा रहे नंबरों की सूची में है। 

'वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट के अनुसार, भीमा कोरेगांव मामले के 8 आरोपियों के नंबरों को निगरानी के लिए चुना गया था। रिपोर्ट के अनुसार 22 स्मार्टफ़ोन की फोरेंसिंक जाँच की गई। इसमें से 10 को एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाया गया और 7 फ़ोन इन्फ़ेक्टेड पाए गए। गिरफ़्तार किए गए आरोपी एक्टिविस्टों में से किसी का भी फ़ोन विश्लेषण के लिए उपलब्ध नहीं था क्योंकि अधिकारियों ने उनके फ़ोन को जब्त कर लिया है। 

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में जो एक फ़ोन स्पाइवेयर से इन्फ़ेक्टेड था वह एस ए आर गिलानी का था। गिलानी उस संस्था के प्रमुख थे जिसमें रोना विल्सन और हैनी बाबू काम करते थे। गिलानी की 2019 में मौत हो गई थी और उनके बेटे ने उस फ़ोन को जाँच के लिए मुहैया करवाया।

'द गार्डियन' और वाशिंगटन पोस्ट सहित दुनिया भर के कई प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्टों में दावा किया गया है कि कई सरकारों ने हज़ारों फ़ोन नंबरों को ट्रैक करने के लिए इस पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है। इसमें पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना बनाया गया है। इनमें भारतीय भी शामिल हैं। यह रिपोर्ट 'फोरबिडेन स्टोरीज' की पड़ताल पर आधारित है और इसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब ने फ़ोरेंसिक जाँच और तकनीकी सहायता में मदद की है।

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सरकार ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया है कि क्या वह एनएसओ की क्लाइंट है। सरकार की ओर से पहले बयान में इतना कहा गया था कि 'किसी भी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी भी जानकारी का इंटरसेप्शन, मॉनिटरिंग या डिक्रिप्शन क़ानून की उचित प्रक्रिया के अनुसार किया जाता है।' अब तो सरकार की ओर से पेगासस के माध्यम से जासूसी की बात को सीधे खारिज किया जा रहा है। 

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोमवार को लोकसभा में कहा था कि डाटा का जासूसी से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा था कि केवल देशहित व सुरक्षा के मामलों में ही टैपिंग होती है, जो रिपोर्ट मीडिया में आई है, वो तथ्यों से परे और गुमराह करने वाले हैं।

वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार एक्टिविस्टों के ख़िलाफ़ मामले को देख रही आतंकवाद विरोधी एजेंसी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने सूची के बारे में टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। इसने पहले कभी दूसरे मामले में प्रतिक्रिया में कहा था कि मामला अदालतों के समक्ष है।

एनएसओ ने कहा है कि पेगासस प्रोजेक्ट के निष्कर्षों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है और वह निराधार है। इसने यह भी कहा है कि इसकी प्रौद्योगिकियों ने आतंकवादी हमलों और बम विस्फोटों को रोकने में मदद की है और ड्रग्स, सेक्स और बच्चों की तस्करी करने वाली कड़ी को तोड़ा है।

इस महीने की शुरुआत में ही एक अमेरिकी फोरेंसिक एजेंसी की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि आदिवासियों के लिए काम करने वाले सुरेंद्र गाडलिंग के कम्प्यूटर में वायरस के माध्यम से उन दस्तावेजों को डाला गया था जिनके आधार पर उनको आरोपी बनाया गया। स्टैन स्वामी की तरह ही सुरेंद्र गाडलिंग को भी प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) ग्रुप से संबंध रखने के आरोप में सख़्त आतंकवादी विरोधी यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया था। 

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सुरेंद्र गाडलिंग से पहले एक और सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन के कम्प्यूटर में भी इसी तरह के वायरस के द्वारा आपत्तिजनक दस्तावेज डाले जाने की रिपोर्ट सामने आई थी। विल्सन के वकील ने अमेरिका स्थित एक डिजिटल फोरेंसिक लेबोरेटरी से उनके लैपटॉप की जाँच करवाई तो साइबर हमले की बात का खुलासा हुआ। 'वाशिंगटन पोस्ट' ने इसी साल फ़रवरी में इस पर रिपोर्ट छापी थी और इसने लिखा था कि ख़बर छापने के पहले इसने तीन निष्पक्ष लोगों से जाँच करवाई और उस रिपोर्ट को सही पाया। रिपोर्ट में कहा गया है कि रोना विल्सन और सुरेंद्र गाडलिंग के कम्प्यूटरों पर एक ही हैकर ने हमला किया था।
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