मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत के क़रीब एक साल बाद जिनेवा में उनका सम्मान होगा। उनको 2022 मार्टिन एनल्स अवार्ड्स में मरणोपरांत सम्मानित किया जाएगा। इस पुरस्कार को व्यापक रूप से मानवाधिकार की रक्षा करने वालों के लिए नोबेल पुरस्कार के समकक्ष माना जाता है।
अवार्ड देने वाली वेबसाइट के अनुसार पुरस्कार जूरी के अध्यक्ष हैंस थूलेन कहते हैं, 'इस पुरस्कार के लिए फादर स्टेन को 2021 के वसंत ऋतु में नामांकित किया गया था, लेकिन अवार्ड पहुंचने से पहले ही उनका निधन हो गया। ...जूरी फादर स्टेन के मानवाधिकारों के लिए कई योगदानों पर प्रकाश डालना चाहता है, जिसे भारतीय अधिकारियों द्वारा उनके अन्यायपूर्ण कैद से धुंधला नहीं किया जा सकता है।'
स्टेन स्वामी को मूल रूप से झारखंड में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। उनको भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी बनाया गया था।
उन्हें 8 अक्टूबर 2020 को ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत भीमा कोरेगांव हिंसा से उनके कथित संबंधों के लिए गिरफ्तार किया गया था। पार्किंसंस रोग से पीड़ित फादर स्टेन स्वामी ने चिकित्सा आधार पर जमानत का अनुरोध किया था, जिसे कई बार खारिज कर दिया गया था।
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के मानवाधिकार प्रतिनिधियों ने स्टेन स्वामी की पुलिस हिरासत में मौत को 'भयानक' व 'त्रासद' बताया और उन्हें जेल में रखे जाने को 'अक्षम्य' क़रार दिया था।
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार स्पेशल रिपोर्टेयर ने ट्वीट किया था, 'भारत से भयानक समाचार है। मानवाधिकार कार्यकर्ता व जेसुइट पादरी फ़ादर स्टैन स्वामी की मौत हिरासत में हुई है, वे नौ महीनों से जेल में थे और उन्हें आतंकवाद के झूठे मामले में गिरफ़्तार किया गया था।'
स्टेन स्वामी एल्गार परिषद मामले में उन 16 आरोपियों में से एक थे जिन्हें भीमा कोरेगाँव यानी एल्गार परिषद के मामले में आरोपी बनाया गया है। एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस ने दावा किया कि पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी। पुलिस ने दावा किया था कि वह कार्यक्रम कथित माओवादी लिंक वाले लोगों द्वारा आयोजित किया गया था।
ये सभी 16 आरोपी किसी न किसी रूप में ग़रीब आदिवासियों के लिए काम करते रहे हैं या थे। स्टेन स्वामी ने अपना जीवन आदिवासी समुदायों के साथ उनकी भूमि, जंगल और श्रम अधिकार के लिए काम करते हुए लगा दिया।
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