क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में सामाजिक न्याय राजनीतिक अजेंडा बन पाएगा? सत्ताधारी दल और एनडीए के अन्य घटक दल सभी इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी सामाजिक न्याय के मुद्दे को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने में विफल होती दिख रही है। यह तब कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में हमने सभी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय देने का संकल्प लिया था। इसके साथ ही साथ हमने अपने संविधान में अनुसूचित जाति व जनजाति, अल्पसंख्यक, महिलाओं व अन्य पिछड़ी जातियों को भारतीय संविधान के अनेक अनुच्छेदों के अन्तर्गत अनेक विशेषाधिकार देकर उन्हे सामाजिक न्याय देना सुनिश्चित किया। इस संदर्भ मे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164, 28, 29, 30, 46, 330, 332, 335, 340 उल्लेखनीय हैं।
सामाजिक न्याय का अजेंडा अब 'अछूत' बन गया है
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- 1 Dec, 2018

सामाजिक न्याय के मामले में सबसे अच्छा रेकॉर्ड बीएसपी का है, दूसरे नंबर पर कांग्रेस और सबसे ख़राब रेकॉर्ड बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का रहा है। वी. पी. सिंह ने अपने प्रधानमंत्री काल में मंडल कमिशन की सिफ़ारिश को लागू कर सामाजिक न्याय के अजेंडे को आगे बढ़ाया। फिर भी अन्य पिछड़ी जातियों को उनका पूरा हक़ नहीं मिल पाया।
विवेक कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यलय के समाज विज्ञान अध्ययन संस्थान के अंतर्गत समाज व्यवस्था अध्ययन केंद्र में प्रफ़ेसर हैं। उन्होंने जाति-आधारित सामाजिक विषमता एवं दलित विषयों पर कई किताबें लिखी हैं।