कोरोना महामारी से मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने में राज्य सरकारें देरी क्यों कर रही हैं? राज्य इसके लिए कुछ भी कारण बताएँ, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने समय पर मुआवजा देने में विफल रहने के लिए राज्य सरकारों की खिंचाई की है। अदालत ने राज्यों से मुआवजा देने के लिए अपने प्रयास तेज करने को कहा है।
कोर्ट ने यह तब कहा जब वह कोरोना पीड़ित परिवारों की ओर से दायर की गई कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ताओं की शिकायत पर जस्टिस एमआर शाह और संजीव खन्ना की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई की। मामले में अब 4 फ़रवरी को सुनवाई होगी। इस तारीख़ से पहले राज्यों द्वारा नए हलफनामे दाखिल किए जाने की उम्मीद है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल कहा था कि जिला प्रशासन के पास आवेदन प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि उन परिवारों को वितरित की जानी चाहिए जिन्होंने महामारी में सदस्यों को खो दिया। लेकिन इतने लंबे समय बीत जाने के बाद भी पीड़ित परिवारों को सहायता राशि नहीं मिल पाई है। माना जा रहा है कि राज्यों ने इसमें तेजी नहीं दिखाई है।
पंजाब, हिमाचल प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में कोविड मौतों को लेकर मुआवजे के कम दावों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई। उसने राज्यों से उन गरीब और ज़रूरतमंद परिवारों तक पहुंचने के लिए आधार कार्ड और एसएमएस का उपयोग करने के लिए कहा, जो मुआवजे की योजना के बारे में भी नहीं जानते होंगे।
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस खन्ना ने कहा, 'आधार कार्ड मोबाइल फोन नंबर और डेथ सर्टिफिकेट से जुड़ा होता है। जब आपके पास फोन नंबर है, तो एसएमएस के ज़रिए परिवारों को योजना के बारे में क्यों नहीं बताते?'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राप्त आवेदन पंजीकृत मौतों से कम नहीं हो सकते। इसने पूछा,
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क्या लोगों को इस योजना के बारे में जानकारी नहीं है? क्या लोग ऑनलाइन आवेदन पत्र नहीं भर पा रहे हैं? क्या हमें एक पैरालीगल स्वयंसेवी प्रणाली की आवश्यकता है?
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आंध्र प्रदेश और बिहार के मुख्य सचिवों को तलब किया और उनसे यह बताने को कहा कि उनके राज्यों में वितरण कम क्यों है।
अदालत ने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया और पूछा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य सचिव ने वितरण में देरी के लिए अदालत से माफी मांगी और कहा कि यह आंशिक रूप से गलत पते और नाम दर्ज किए जाने के कारण आवेदनों को जल्दबाजी में दायर किए जाने के कारण हुआ। उन्होंने इसे ठीक करने के लिए कोर्ट से दो हफ्ते का समय मांगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह बिहार द्वारा दिए गए कोविड -19 की मौत को खारिज करती है और कहा कि ये वास्तविक आंकड़े नहीं बल्कि सरकारी आंकड़े हैं। पीठ ने बिहार सरकार की ओर से पेश वकील से कहा, 'हम यह नहीं मानने वाले हैं कि बिहार राज्य में केवल 12,000 लोगों की मौत कोविड के कारण हुई है।'
अदालत ने गुजरात में 'गड़बड़ी' की ओर भी इशारा किया, जहाँ 10,000 दर्ज की गई मौतें हैं, लेकिन 91,000 मुआवजे के दावे हैं।
इस बीच राजस्थान सरकार ने कहा कि उसने ई-कियोस्क की व्यवस्था की है जिसके माध्यम से लोगों को उनके मुआवजे के आवेदन दाखिल करने में मदद की जा रही है।
बेंच ने राज्य के क़ानूनी सेवा अधिकारियों को उन परिवारों से संपर्क करने के लिए कहा जिन्होंने कोरोना से अपने प्रियजनों को खो दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अनाथ बच्चों के मामले का भी संज्ञान लिया। इसने कहा कि यह देखते हुए कि कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के लिए मुआवजे के लिए आवेदन जमा करना बहुत मुश्किल होगा, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से बच्चों से संपर्क करने के लिए कदम उठाने को कहा। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा कि बच्चों के मामले में सरकारें यह सुनिश्चित करने में अधिक जिम्मेदारी लें कि उन्हें मुआवजा मिले और यह किसी और द्वारा दावा नहीं किया जाए या दावा खारिज नहीं किया जाए।
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