भारतीय स्टेट बैंक ने मंगलवार को चुनावी बॉन्ड से संबंधित सभी आँकड़े चुनाव आयोग को सौंप दिए हैं। यह राजनीतिक दलों द्वारा गुमनाम रूप से खरीदे गए और भुनाए गए चुनावी बॉन्ड के विवरण से जुड़ा मामला है। एक दिन पहले ही एसबीआई ने ऐसा करने के लिए समय तीन माह बढ़ाने के लिए याचिका लगाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका ख़ारिज कर दी। अदालत ने एसबीआई को 24 घंटे के अंदर आँकड़े मुहैया कराने को कहा था।
भारतीय स्टेट बैंक ने सोमवार को जारी सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश का अनुपालन करते हुए मंगलवार को चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड का डेटा सौंप दिया। खुद चुनाव आयोग ने इसकी जानकारी दी है।
In compliance of Hon’ble Supreme Court's directions to the SBI, contained in its order dated Feb 15 & March 11, 2024 (in the matter of WPC NO.880 of 2017), data on electoral bonds has been supplied by State Bank of India to Election Commission of India, today, March 12, 2024.
— Spokesperson ECI (@SpokespersonECI) March 12, 2024
सुप्रीम कोर्ट ने ज्यादा समय की मांग करने वाली एसबीआई की याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि सरकार ने जाने-माने वकील हरीश साल्वे को भी अदालत में उतारा था, लेकिन उनके तर्क सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने टिक नहीं सके। अदालत ने कहा, 'एसबीआई को 12 मार्च, 2024 के बिजनेस ऑवर के अंत तक तमाम जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया जाता है। केंद्रीय चुनाव आयोग सारी जानकारी संकलित करेगा और अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर पूरी जारकारी 15 मार्च, 2024 शाम 5 बजे तक प्रकाशित करेगा।'
चुनावी बॉन्ड डेटा का खुलासा करने के लिए समय बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की जानबूझकर अवहेलना करने के लिए एसबीआई को कड़ी फटकार लगाई और उसे अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी।
सुनवाई के दौरान बैंक ने तर्क दिया था कि गोपनीयता बनाए रखने के लिए दो अलग-अलग साइलो में मौजूद डेटा को इकट्ठा करने, क्रॉस-वेरिफिकेशन और खुलासा करने की प्रक्रिया एक समय लेने वाला कार्य होगा। जानकारी जमा करने के लिए 30 जून तक का समय मांगते हुए एसबीआई ने कहा था, 'हमें अनुपालन के लिए थोड़ा और समय चाहिए। हमें बताया गया था कि यह गुप्त रहेगा।'
इस पर शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि दानदाता का विवरण एसबीआई की मुंबई शाखा में उपलब्ध था, और बैंक को केवल कवर खोलने, विवरण जुटाने और जानकारी देने की ज़रूरत थी। मुख्य न्यायाधीश ने बैंक से कहा था, '
“
हमने बैंक को दाताओं और दानकर्ताओं के विवरण को अन्य जानकारी के साथ मिलान करने का निर्देश नहीं दिया था। एसबीआई को केवल सीलबंद कवर खोलना है, विवरण जुटाना है और चुनाव आयोग को जानकारी देनी है।
डीवाई चंद्रचूड़, सीजेआई
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने आदेश में कहा था कि जारीकर्ता बैंक चुनावी बॉन्ड जारी करना बंद कर दे। भारतीय स्टेट बैंक 12 अप्रैल, 2019 के न्यायालय के अंतरिम आदेश के बाद से आज तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को दे। इसमें प्रत्येक चुनावी बॉन्ड की खरीद की तारीख, बॉन्ड के खरीदार का नाम और खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का मूल्य शामिल हो। एसबीआई को यह जानकारी तीन सप्ताह के भीतर यानी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंपनी होगी। ईसीआई 13 मार्च 2024 तक एसबीआई से प्राप्त जानकारी को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।
बीजेपी सरकार द्वारा लाए गए इस इलेक्टोरल बॉन्ड पर सरकार को छोड़कर सबको कभी न कभी आपत्ति रही। 2019 में चुनाव आयोग ने भी कड़ी आपत्ति की थी। सुप्रीम कोर्ट में जब मामला गया तो इसने भी लगातार सवाल पूछे। विपक्षी पार्टियाँ गड़बड़ी का आरोप लगाती रहीं। चुनाव सुधार से जुड़े लोग इसको पीछे ले जाने वाला क़दम बताते रहे।
सबसे पहले इस विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था का प्रावधान 2017 के बजट के ज़रिये सामने लाया गया था। तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया था कि इससे हमारा लोकतंत्र मज़बूत होगा, दलों को होने वाली फ़ंडिंग और समुची चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी और कालेधन पर अंकुश लगेगा। लेकिन क्या ऐसा हुआ? क्या इन मक़सद में यह कामयाब होता दिखा या फिर इलेक्टोरल बॉन्ड के प्रावधान क्या ऐसे थे?
इलेक्टोरल बॉन्ड आने के बाद इस पर सबसे ज़्यादा सवाल पारदर्शिता और कालेधन को लेकर ही हुआ। एडीआर जैसी इलेक्शन-वाच संस्थाओं और इस विषय के जानकार लोगों ने इस प्रावधान की शुचिता और उपयोगिता पर गंभीर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे।
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