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पूर्णिमा दास
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2008 में हुए मालेगाँव धमाके में प्रज्ञा सिंह ठाकुर और ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित का ही आम तौर पर नाम आता है लेकिन एटीएस और एनआईए की जाँच के आधार पर इनके अलावा और भी कई लोगों पर मुक़दमे चल रहे हैं। आज की इस अंतिम कड़ी में हम पूरी साज़िश और उसमें शामिल लोगों की भूमिका के बारे में जानेंगे। एटीएस और एनआईए के जाँच निष्कर्षों में थोड़ा अंतर रहा है, इसलिए एटीएस ने पहले जिन 14 लोगों को अभियुक्त बनाया था, उनमें से केवल 7 के ख़िलाफ़ आज की तारीख़ में मुक़दमा चल रहा है। दो लोग फ़रार हैं इस कारण उनपर मुक़दमा नहीं चलाया जा रहा। शेष सभी दोषमुक्त घोषित कर दिए गए।
महाराष्ट्र एटीएस ने 29 सितंबर 2008 को हुए मालेगाँव धमाके के मामले में जो चार्जशीट दायर की थी, उसमें 11 गिरफ़्तार और 3 फ़रार अभियुक्तों के नाम थे।
गिरफ़्तार अभियुक्तों के नाम-
1. प्रज्ञा सिंह चंद्रपाल सिंह ठाकुर, काम - शून्य
2. शिवनारायण कलसांगरा, काम - बिजली मिस्त्री और एलआईसी एजेंट
3. श्याम साहू, काम - मोबाइल की दुकान और प्रॉपर्टी डीलर
4. रमेश उपाध्याय, काम - नौकरी
5. समीर कुलकर्णी उर्फ़ चाणक्य समीर, काम - भोपाल में अभिनव भारत के पूर्णकालिक कार्यकर्ता
6. अजय उर्फ़ राजा राहिरकर, काम - व्यापार और अभिनव भारत ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष
7. राकेश धावड़े, काम- प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों में अध्ययन
8. जगदीश म्हात्रे, काम - प्रॉपर्टी डीलर
9. प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, काम - सेना में नौकरी, ले. कर्नल
10. सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ़ दयानंद पांडे उर्फ़ स्वामी अमृतानंद देवतीर्थ, काम - शून्य
11. सुधाकर ओंकारनाथ चतुर्वेदी उर्फ़ चाणक्य सुधाकर, काम - नाशिक में अभिनव भारत के पूर्णकालिक कार्यकर्ता
फ़रार अभियुक्त ये थे-
1. रामजी उर्फ़ रामचंद्र कलसांगरा, काम - शून्य
2. संदीप डांगे, काम - शून्य
3. प्रवीण मुतालिक, काम - शून्य
अब हम जानते हैं कि इनपर क्या आरोप हैं। मुख्य आरोप तो यही है कि इन सभी 14 लोगों ने जनवरी 2008 से लेकर 23 अक्टूबर 2008 के बीच एक-दूसरे से मिलकर मुसलिम इलाक़ों में धमाके करने की योजना बनाई, उसके लिए ज़रूरी हथियार, विस्फोटक और दूसरे सामान जुटाए और मालेगाँव धमाके के रूप में इस योजना को अंजाम दिया।
एटीएस की चार्जशीट के अनुसार इस मक़सद से पहली बैठक 25/26 जनवरी 2008 को फ़रीदाबाद में हुई जिसमें प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, सुधाकर द्विवेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर चतुर्वेदी उपस्थित थे। इस बैठक में योजना बनी कि देश में कहीं बम विस्फोट किया जाए जिसके लिए विस्फोटक जुगाड़ने का काम पुरोहित का होगा और आदमी जुटाने का काम चतुर्वेदी करेंगे।
इसके दो महीने बाद यानी 11 जून या उसके आसपास इंदौर के सर्किट हाउस में एक बैठक में प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने सुधाकर द्विवेदी से रामचंद्र (रामजी) कलसांगरा और संदीप डांगे (दोनों फ़रार) को मिलवाया और कहा कि ये दोनों उनके विश्वस्त हैं। योजना को आगे बढ़ाते हुए जुलाई के पहले सप्ताह में प्रज्ञा ने सुधाकर द्विवेदी से कहा कि वे रामजी कलसांगरे और संदीप डांगे को पुणे में विस्फोटक उपलब्ध करवाने के लिए वे पुरोहित से बात करें।अगली बैठक 11/12 अप्रैल 2008 को भोपाल में हुई जिसमें जनवरी की मीटिंग में शामिल 5 लोगों के अलावा प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी मौजूद थीं। इस बैठक में तय हुआ कि मुसलमानों से बदला लेने के लिए मालेगाँव में ऐसी किसी जगह विस्फोट किया जाए जहाँ उनकी घनी आबादी हो। पुरोहित ने विस्फोटक जुटाने की ज़िम्मेदारी ली जबकि प्रज्ञा ने आदमी जुटाने की।
अगली बैठक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में 3 अगस्त को हुई जिसमें पुरोहित को ज़िम्मा दिया गया कि वे रामजी कलसांगरे और संदीप डांगे को पुणे में आरडीएक्स उपलब्ध करवाएँगे।
इस बैठक के बाद तीन और लोगों का नाम इस योजना में आता है। वे हैं अजय राहिरकर, राकेश धावड़े और प्रवीण मुतालिक।
अजय राहिरकर व्यापारी थे और अभिनव भारत के कोषाध्यक्ष भी। इस योजना से जुड़े पैसों के लेनदेन में उनकी बड़ी भूमिका थी।
राकेश धावड़े हथियारों और गोला-बारूद के विशेषज्ञ थे। धावड़े ने प्राचीन हथियारों के अध्ययन के नाम पर एक संस्था भी बना रखी थी हालाँकि कुछ साल पहले हुए धमाकों में अभियुक्तों को विस्फोटक बनाने की ट्रेनिंग देने का उनपर आरोप लग चुका था।
प्रवीण मुतालिक चार्जशीट दाख़िल होने के समय फ़रार चल रहे थे और उनके बारे में इतना ही मालूम था कि कुछ और लोगों के साथ उन्होंने भी पँचमढ़ी में राकेश धावड़े से विस्फोटक बनाने की ट्रेनिंग ली थी। इसके अलावा पुणे में जिस घर में बम बनाया गया, उस घर में भी वे 22 सितंबर 2008 के बाद से रह रहे थे। उसी घर में एक और शख़्स रह रहा था जिसके पास सुनहरे रंग की वह मोटरसाइकल थी जिसका ज़िक्र हम पहली कड़ी में कर चुके हैं और जिसपर बम रखकर मालेगाँव में धमाका किया गया। हम यह भी जानते हैं कि वह मोटरसाइकल प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम से रजिस्टर्ड थी।
अब इसमें पुरोहित की क्या भूमिका है? (चार्जशीट के मुताबिक़) ले. कर्नल पुरोहित ने कुछ लोगों के साथ मिलकर 2007 में ‘अभिनव भारत’ के नाम से एक संस्था बनाई जिसका मक़सद भारत में एक हिंदू राष्ट्र बनाना था जिसका अलग संविधान और संविधान होगा। इस संगठन के सदस्यों ने फ़रीदाबाद, कोलकाता, भोपाल, जबलपुर, इंदौर, नाशिक आदि कई स्थानों पर बैठकें कीं। इसके अलावा पुरोहित ने संगठन के लिए 25 लाख की रकम जमा की और धमाके में इस्तेमाल किया गया आरडीएक्स उपलब्ध कराया जिसको पुरोहित के घर में सुधाकर चतुर्वेदी और रामसिंह कलसांगरे की मदद से असेंबल किया गया।
यह चार्जशीट 20 जनवरी 2009 को फ़ाइल की गई। एटीएस चीफ़ हेमंत करकरे तब तक मुंबई आतंकी हमले के शिकार हो गए थे। उसके बाद 21 अप्रैल 2011 को एक सप्लिमेंटरी चार्जशीट दायर की गई। लेकिन मामला आगे बढ़ता, इससे पहले ही यह मामला एनआईए को दे दिया गया।
2011 में भारत सरकार ने जब पाया कि देश के विभिन्न भागों में हुए हमलों के तार एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं तो उसने मालेगाँव 1 (सितंबर 2006), समझौता ब्लास्ट (फ़रवरी 2007), मक्का मसजिद ब्लास्ट (मई 2007), अजमेर दरगाह ब्लास्ट (अक्टूबर 2007) मालेगाँव 2 (सितंबर 2008), मोड़ासा ब्लास्ट (सितंबर 2008) के मामले अलग-अलग एजेंसियों के बजाय एनआईए को सौंप दिए। एनआईए ने भारत सरकार के आदेश संख्या1-11034/18/2011-IS-IV दिनांक 01/04/2011 के तहत बाक़ी मामलों के साथ-साथ मालेगाँव का मामला भी अपने हाथ में ले लिया।
जिस दिन महाराष्ट्र के मालेगाँव में धमाका हुआ था, उसी दिन गुजरात के मोड़ासा में भी बम फटा था। मोड़ासा में भी एक दुपहिये में बम रखकर धमाका किया गया था जिसमें एक व्यक्ति की जान गई थी। मालेगाँव और मोड़ासा में हुए धमाकों में अपनाई गई कार्यशैली एक जैसी थी - दिन एक, समय एक, तरीक़ा एक। लेकिन जहाँ मुंबई एटीएस धमाके में इस्तेमाल बाइक के शैसी नंबर के आधार पर उसके मालिक तक पहुँची, वहीं गुजरात पुलिस ने न तो उस दुपहिये के मालिक का पता लगाया, न ही जाँच को आगे बढ़ाया। (याद दिला दें कि तब वहाँ नरेंद्र मोदी की सरकार थी)। वहाँ की स्थानीय पुलिस ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उसे कोई सबूत ही नहीं मिला। ऐसे में उम्मीद थी कि एनआईए मुंबई एटीएस द्वारा की गई जाँच से प्रेरणा लेकर मोड़ासा धमाकों के पीछे के लोगों का पता लगाएगी लेकिन 2015 में उसने यह कहकर जाँच ही बंद कर दी कि साँबरकाँठा ज़िला पुलिस ने बहुत ज़्यादा देर लगा दी और सारे सबूत नष्ट हो गए।
इस बीच कई अभियुक्तों ने उच्चतर अदालतों में याचिकाएँ दायर कर दीं और उनपर लगे मकोका (MCOCA) को चुनौती दी जिसके कारण इस मामले में आगे की जाँच में देरी हुई। आपको बता दें कि मकोका उन लोगों पर लगाया जाता है जो पिछले दस वर्षों से कोई क्राइम सिंडिकेट चला रहे हों और गैंग के सभी सदस्य उन वारदात में शामिल रहे हों जो इस बीच हुई हों। बचाव पक्ष का कहना था कि परभनी और जालना की जिन घटनाओं को जोड़कर अभियुक्तों पर मकोका लगाया गया है, वे 2003 और 2004 में घटी थीं और तब तक ‘अभिनव भारत’ बना भी नहीं था। इसलिए पुरोहित और प्रज्ञा को किसी क्राइम सिंडिकेट का सदस्य नहीं बताया जा सकता।
अप्रैल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलों से संतुष्ट होकर फ़ैसला दिया कि पुरोहित और प्रज्ञा के ख़िलाफ़ मकोका के तहत मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता।
इन अभियुक्तों के ख़िलाफ़ मकोका हटने से हुआ यह कि मकोका के तहत जितनी भी गवाहियाँ और कन्फ़ेशन हुए थे, वे सब अब बेअसर हो गए और एक-के-बाद-एक अभियुक्त और गवाह अपने बयानों से मुकरने लगे।
इन सबके बावजूद फ़ोन कॉल और लैपटॉप में मौजूद वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग के बल पर मई 2016 में एनआईए ने सप्लिमेंटरी चार्जशीट दायर की जिसमें 10 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आगे जाँच करने की इजाज़त माँगी जबकि प्रज्ञा सिंह ठाकुर, शिवनारायण कलसांगरा, श्याम साहू, प्रवीण मुतालिक, लोकेश शर्मा और धानसिंह चौधरी के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत न मिलने की स्थिति में उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा न चलाने का फ़ैसला किया।
इसके बाद भी पुरोहित और अन्य के ख़िलाफ़ चार्ज तय होने में दो साल से अधिक का समय लग गया। ले. कर्नल पुरोहित एक सोची-समझी रणनीति के तहत न्यायिक प्रक्रिया को खींचे जा रहे थे ताकि गवाह और सबूत ख़त्म हो जाएँ। पहले तो अभियुक्तों द्वारा बार-बार ज़मानत के लिए याचिकाएँ दाख़िल की गईं और जब 2017 में प्रज्ञा और पुरोहित को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिल गई तो पुरोहित ने अपने ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों को चुनौती दी। इन सबमें एक साल और गुज़र गया। अंततः 30 अक्टूबर 2018 को एनआईए कोर्ट ने UAPA के तहत पुरोहित-प्रज्ञा सहित 7 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए। ग़ौर करने की बात यह है कि एनआईए ने भले ही प्रज्ञा के ख़िलाफ़ सबूत न मिलने पर उनको जाँच से मुक्त करने का फ़ैसला कर लिया था लेकिन अदालत ने उनको दोषी मानते हुए उनके ख़िलाफ़ भी मुक़दमा चलाने का आदेश दिया। दो अन्य अभियुक्तों राकेश धावड़े और जगदीश म्हात्रे को बाक़ी अभियोगों से बरी कर दिया गया और केवल आर्म्स ऐक्ट के तहत उनपर मुक़दमा चलाने का आदेश हुआ।
जिन लोगों के ख़िलाफ़ आरोप तय हुए हैं, वे हैं - ले. कर्नल प्रसाद पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा सिंह, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी। इनके ख़िलाफ़ UAPA के सेक्शन 16 (आतंकवादी कार्रवाई करने) और सेक्शन 18 (आतंकवादी कार्रवाई की साज़िश रचने) के तहत आरोप तय हुए हैं। इसके अलावा उनपर आईपीसी की धारा 120-ख (आपराधिक षडयंत्र), 302 (हत्या), 307 (हत्या का षडयंत्र), 324 (जानबूझकर चोट पहुँचाने) और 153- क (दो धार्मिक समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने) के तहत भी मुक़दमा चल रहा है। यदि इन धाराओं के तहत किसी को दोषी पाया जाता है तो उम्रक़ैद या मृत्युदंड की सज़ा भी हो सकती है।
जज विनोद पड़ालकर ने अभियुक्तों के ख़िलाफ़ अभियोग पढ़ते हुए कहा, ‘इन सात अभियुक्तों और दो फ़रार अभियुक्तों ने आपस में मिलकर जनवरी से अक्टूबर 2008 के बीच आतंक और सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने के लिए आपराधिक साज़िश रची जिसके तहत मालेगाँव में आरडीएक्स से बना एक बम मोटरसाइकल पर रखा गया जिससे 6 लोगों की मौत हुई और 101 और लोग घायल हुए।’ कोर्ट के अनुसार ‘अभियुक्त आतंकवादी कार्रवाई करने की साज़िश के तहत आपस में मिले और इस साज़िश को अंजाम तक पहुँचाने के लिए विस्फोटकों का प्रबंध किया।’ कोर्ट ने रामजी कलसांगरा और संदीप डांगे पर मोटरसाइकल में बम फ़िट करने का अभियोग लगाया। ये दोनों धमाके के बाद से फ़रार चल रहे हैं। इनमें से एक, रामजी कलसांगरा से प्रज्ञा की बातचीत के बारे में हम पहले पार्ट में पढ़ चुके हैं जब उन्होंने पूछा था कि गाड़ी भीड़ वाले इलाक़े में क्यों नहीं लगाई और इतने कम लोग क्यों मरे।
फ़िलहाल मामले की सुनवाई जारी है। हम नहीं जानते कि फ़ैसला क्या आएगा। पिछली सात कड़ियों में हमने जाना कि अभियुक्तों के बीच टेलिफ़ोन वार्ताओं, अभिनव भारत की बैठकों की वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंगों से इनका गुनाह साफ़-साफ़ ज़ाहिर होता है। लेकिन 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद एनआईए ने जिस तरह से जाँच को कमज़ोर और धीमा करने की कोशिश की और जिसके बारे में सरकारी वकील रोहिणी सालियन ने भी बताया है, उससे न्याय होने की उम्मीद कम लगती है।
रोहिणी सालियन ने पिछले साल ‘द वायर’ को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था कि एनआईए ने केस को कमज़ोर करने के लिए लोगों को बदला और सबूतों को अदालत से छुपाया। उन्होंने बताया कि 2008 में एटीएस की जाँच के बाद जो सुराग़ मिले थे, उनके आधार पर उन्होंने 4000 पेज की अच्छी-ख़ासी चार्जशीट तैयार की थी लेकिन एनआईए ने जब 2016 में अपनी चार्जशीट दायर की तो उनमें से कोई भी सामग्री अदालत के सामने पेश नहीं की।
रोहिणी के अनुसार ‘शुरुआत में स्थितियाँ इतनी ख़राब नहीं थीं। जब एनआईए ने 2011 में जाँच अपने हाथों में ली तो उस समय भी कुछ क़ाबिल और समर्पित अधिकारी थे जो अभियुक्तों के ख़िलाफ़ एक मज़बूत केस तैयार करना चाहते थे। लेकिन धीरे-धीरे टीम में ऐसे लोगों को घुसाया जाने लगा जो केस को कमज़ोर करना चाहते थे। और जब जून 2014 में मुझे कहा गया कि मैं यह मामला छोड़ दूँ तो साथ-साथ उन योग्य अफ़सरों की भी छुट्टी कर दी गई। कुछ को उनके पैरंट काडर में भेज दिया गया तो कुछ को दरकिनार कर दिया गया।’
रोहिणी ने बताया कि 2011 से 2014 के बीच एनआईए के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने जाँच की थी लेकिन वे अपनी जाँच के आधार पर सप्लिमेंटरी चार्जशीट फ़ाइल करते, उससे पहले ही उनको ऐसा करने से रोक दिया गया और बाद में मामले से हटा दिया गया।
रोहिणी सालियन ने 2015 में ही इन कोशिशों का पर्दाफ़ाश किया था जब उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था कि एनआईए के पुलिस अधीक्षक सुहास वरके ने उनसे आग्रह किया है कि वे मालेगाँव कांड के अभियुक्तों के ख़िलाफ़ नरमी से पेश आएँ। रोहिणी के इस भंडाफोड़ के बाद वरके को एनआईए से हटा दिया गया था लेकिन कुछ समय बाद वे एटीएस में आ गए और वहाँ वे यही मामला एटीएस की तरफ़ से देख रहे हैं। रोहिणी के अनुसार ‘इस तरह केस की जड़ों में ही मट्ठा डालने का काम किया जा रहा है।’
एनआईए के इरादे इससे भी ज़ाहिर होते हैं कि वह आज तक भागे हुए दोनों अभियुक्तों पर हाथ नहीं डाल पाई, जबकि वे सभी पिछले साल तक बीजेपी के एक मंत्री के संरक्षण में मध्य प्रदेश में ही थे।
एनआईए कोर्ट के जज विनोद पड़ालकर से हमें भारी उम्मीद है क्योंकि उन्होंने 2016 में एनआईए की सप्लिमेंटरी चार्जशीट में प्रज्ञा को दी गई क्लीन चिट को ठुकरा दिया था। लेकिन यदि एनआईए गवाहों को पेश ही न करे या उनको मुकर जाने दे और सबूतों को सामने न रखे तो कोई भी जज भला क्या कर सकता है? हाल ही में समझौता मामले में आए फ़ैसले में असीमानंद समेत सभी अभियुक्तों को बरी करते हुए एनआईए के स्पेशल जज रवींद्र रेड्डी ने यही तो कहा था कि एनआईए ने समझौता मामले से जुड़े अहम सबूत कोर्ट के सामने नहीं रखे।
इसलिए इतने सारे सबूतों के बावजूद हमें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि समझौता और मक्का मसजिद मामलों की ही तरह मालेगाँव मामले में भी सारे अभियुक्त बरी हो जाएँ। बहुत-कुछ 23 मई को आने वाले चुनावी परिणामों पर निर्भर करता है। उसके बाद ही पता चलेगा कि ‘अब होगा न्याय’ या होगी ‘फिर एक बार, इंसाफ़ की हार’!
आठ पार्ट की यह सीरीज़ आज समाप्त हुई। इस सीरीज़ के पहली कड़ी और बाक़ी के हिस्से आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।
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