राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) की वार्षिक बैठक कल रविवार 12 मार्च से हरियाणा के समालखा में शुरू हो रही है। यह बैठक 14 मार्च तक चलेगी। लेकिन उससे पहले संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में बुलाई गई है, जिसमें प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक में उठने वाले मुद्दों और प्रस्तावों पर विचार होगा। यानी समालखा की तीन दिवसीय मीटिंग और संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक का आपस में गहरा संबंध है। लेकिन 2024 के आम चुनाव से पहले हो रही संघ की इस बैठक का विशेष महत्व है।
पहले यह जानिए कि संघ की ओर से इस तीन दिवसीय बैठक के बारे में अधिकृत तौर पर क्या कहा गया है। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अम्बेकर ने कहा है कि इस तीन दिवसीय बैठक में पिछले वर्ष (2022-23) की गतिविधियों की समीक्षा होगी और अगले वर्ष (2023-24) के लिए रणनीति और कार्य योजना भी तैयार होगी।
अम्बेकर का कहना है कि बैठक में कार्यकर्ता निर्माण और उनके प्रशिक्षण के साथ-साथ आरएसएस शिक्षा वर्ग (वार्षिक शिविर) की योजना और संगठन पर चर्चा होगी। एबीपीएस आरएसएस की शताब्दी वर्ष विस्तार योजना (1925 में संघ की स्थापना) और इसके कार्यक्रमों और कार्यों को मजबूत करने पर भी मंथन करेगी। बैठक में देश के मौजूदा हालात पर चर्चा होगी और महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रस्ताव पारित होंगे।
कौन-कौन शामिल होगाः अम्बेकर के मुताबिक आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और सभी सह-कार्यवाह सभा में आएंगे। बैठक में राष्ट्रीय कार्यकारिणी, जोनल व राज्य कार्यकारिणी के सदस्य, एबीपीएस के निर्वाचित सदस्य 'प्रतिनिधि', सभी विभाग प्रचारक, आरएसएस से प्रेरित विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी और आमंत्रित सदस्य भी शामिल होंगे।बैठक में देश भर के सभी राज्यों के लगभग 1,400 कार्यकर्ताओं के भाग लेने की उम्मीद है।
बीजेपी से कौन आएगा
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अम्बेकर ने अपने बयान में भाजपा का नाम जानबूझकर नहीं लिया। लेकिन हकीकत ये है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बी एल संतोष इस तीन दिवसीय बैठक में शामिल होंगे। इसमें बीएल संतोष का महत्व ज्यादा है। क्योंकि जेपी नड्डा पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की पसंद हैं और उनके अध्यक्ष बनाए जाने में संघ की विशेष भूमिका नहीं बताई जाती है। लेकिन बीएल संतोष को आरएसएस की ओर से बीजेपी संगठन का काम सौंपा गया है। इसलिए बीएल संतोष की मौजूदगी का सबसे ज्यादा महत्व है। 2024 का चुनाव
आरएसएस खुद को सामाजिक संगठन बताता है। लेकिन राजनीति पर वो गहरी पकड़ रखता है। कई मौकों पर उसके ही नेताओं ने यह बात कही कि बीजेपी आरएसएस का राजनीतिक मुखौटा है। आरएसएस अपने महत्वपूर्ण फैसले बीजेपी शासित केंद्र सरकार या विभिन्न राज्यों में अपनी राज्य सरकारों के जरिए कराती है। यही वजह है कि चुनाव में संघ की ओर से उसके काडर का पूरा समर्थन बीजेपी को मिलता है।
हालांकि 2024 के चुनाव से पहले आरएसएस की एक और प्रतिनिधि सभा 2024 में भी हो सकती है। लेकिन दरअसल 2024 के आम चुनाव और इस साल होने वाले कुछ महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव की तैयारी की रणनीति इसी बैठक में तैयार होगी। इस बैठक में आरएसएस के सभी प्रचारकों को बताया जाएगा कि इस चुनावी वर्ष में किस तरह के मुद्दे जमीनी स्तर पर उठाने हैं ताकि विचारधारा वाले मतदाताओं का रुख बीजेपी की ओर मोड़ा जा सके। देशभर से आने वाले 1400 प्रचारक चुनिंदा हैं। यानी इन प्रचारकों से संघ अपनी रणनीति को साझा करेगा। वैसे प्रचारकों की संख्या ज्यादा है लेकिन संघ जिन महत्वपूर्ण प्रचारकों को आमंत्रित करता है, वही प्रतिनिधि सभा की बैठक में आ सकते हैं। भाजपा को चुनावों में मिलती लगातार सफलता में आरएसएस के इसी काडर का बहुत बड़ा योगदान होता है। 2024 की तैयारी के लिए मुद्दों को वोट की शक्ल में बदलने के लिए कम से कम एक साल तो चाहिए। ऐसे में समालखा की बैठक 2024 के लिए महत्वपूर्ण हो गई है।
खालिस्तान विरोधी प्रस्ताव
संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हाल ही में पंजाब में जिस तरह खालिस्तान का मुद्दा फिर से उठा है, संघ का नेतृत्व उससे चिंतित है। राष्ट्रीय सिख संगत से संघ को अपेक्षित नतीजा नहीं मिला। इसलिए खालिस्तान की देश विरोधी गतिविधि का मुकाबला करने के लिए नए सिरे से रणनीति बनाने और प्रस्ताव पारित होने की संभावना है। पंजाब में संघ के प्रचारक की हत्या इसी सिलसिले की कड़ी थी। संघ उसे भूला नहीं है। छोटी-मोटी घटनाएं भी हो रही हैं लेकिन संघ ने अभी तक उन पर बयान नहीं दिया है। संघ की ओर से अजनाला घटना की निन्दा तक नहीं की गई। इन सारे मुद्दों पर विचार होने की संभावना है।मुसलमानों के प्रति नजरिया
आरएसएस का मुसलमानों के प्रति नजरिए में कोई बदलाव सामने नहीं आया है। हालांकि मुसलमान उसका प्रिय विषय है। हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत को मस्जिद के चक्कर लगाते और वहां के मौलवी से मिलते देखा गया। इसी तरह कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भागवत की बैठक हुई। हालांकि ये बुद्धिजीवी मुसलमानों के कोई नेता नहीं हैं लेकिन वो मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने संघ प्रमुख के पास पहुंच गए। देखना है कि इन दोनों घटनाक्रमों को लेकर इस बैठक में कोई प्रस्ताव आता है। संघ ने हालांकि राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा बना रखा है और अपने एक महत्वपूर्ण नेता इंद्रेश कुमार को उसकी जिम्मेदारी भी सौंप रखी है लेकिन मुसलमानों और संघ की दूरी कम नहीं हुई है। देश के कई इलाकों में लिंचिंग की घटनाएं हुईं, जिन पर आरएसएस चुप रहा। हालांकि मुस्लिम संगठन उस पर संघ से बयान चाहते थे। अन्य मुद्दे क्या हैं
संघ की तीन दिवसीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में जाति जनगणना, रामचरित मानस विवाद, जनसंख्या नियंत्रण और सोशल मीडिया में संघ की नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होगी और कुछ पर प्रस्ताव पारित हो सकते हैं। हाल ही में बिहार और यूपी में रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों की आड़ लेकर जिस तरह सनातन धर्म पर हमला बोला गया, उसे संघ ने गंभीरता से लिया है। समझा जाता है कि इस संबंध में बिहार, यूपी के प्रचारकों की अलग से बैठक भी हो सकती है। जिसमें संघ नेतृत्व की ओर से विशेष निर्देश दिए जा सकते हैं। कई स्थानों पर मनु स्मृति को अपमानित करने पर आरएसएस आहत महसूस कर रहा है।
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