सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल की जिम्मेदारी है कि वो क्षेत्रीय पार्टियों को आगे बढ़ाएं। हालांकि कांग्रेस और बीजेपी ने हमेशा क्षेत्रीय दलों का अपमान किया है। लेकिन अब बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ खड़ी हो, ताकि बीजेपी का मुकाबला किया जा सके। अखिलेश ने आज शनिवार 25 मार्च को यह बयान दिल्ली में दिया। अखिलेश के इस बयान के कई राजनीतिक मतलब लगाए जा रहे हैं। इस बयान को विपक्षी एकता से जोड़कर देखा जा रहा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी कल 24 मार्च को संसद की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया था। उसके बाद सपा समेत सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने खुलकर विरोध जताया था। विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च भी निकाला था। लेकिन विपक्षी दल अभी भी एक मंच पर नहीं आ सके हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने अपनी बीआरएस पार्टी, बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी और दिल्ली में आप प्रमुख केजरीवाल से अखिलेश ने मिलकर अलग खिचड़ी पकाने की कोशिश की थी, जिससे विपक्षी एकता को धक्का लगा था। दूसरी तरफ बिहार के सीएम नीतीश कुमार, लालू यादव के आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर बड़ा राजनीतिक गठबंधन खड़ा करने की कोशिश में जुटे हैं।
अखिलेश ने आज शनिवार को दिल्ली आकर जो बयान दिया है, वो बड़ा ही रणनीतिक है। अखिलेश यह भी चाहते हैं कि जब भी क्षेत्रीय दलों को बीजेपी कटघरे में खड़ा करे तो कांग्रेस भी बोले। अखिलेश ने आज दिल्ली में यह भी कहा कि राहुल गांधी के मोदी सरनेम वाले बयान को बीजेपी पिछड़ों का अपमान बता रही है लेकिन जब मेरे बाद मुख्यमंत्री आवास को योगी आदित्यनाथ ने गंगा जल से धुलवाया था, तब बीजेपी को पिछड़ों का अपमान नजर नहीं आया था।हाल ही में अखिलेश ने समूचे विपक्ष को यह कहकर चौंका दिया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा अमेठी और रायबरेली से लड़ेगी। इस बयान का साफ अर्थ था कि सपा कांग्रेस गठबंधन से दूर रहेगी। लेकिन अब ताजा बयान कुछ और ही संकेत दे रहा है। जिसमें अखिलेश कांग्रेस को साथ आने का संकेत दे रहे हैं। यानी कांग्रेस चंद सीटें लेकर यूपी में लोकसभा चुनाव लड़े और सपा के महत्व को स्वीकार करे।
बहरहाल, अखिलेश ने साफ कर दिया कि अगर कांग्रेस को विपक्षी एकता का नेतृत्व करना है तो उसे क्षेत्रीय दलों को बराबर महत्व देना होगा। उनके साथ खड़े होना होगा। इस बीच कांग्रेस जो कल से अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त है, उसके तमाम बड़े नेता इस बात पर एक हो गए लगते हैं कि अभी राहुल के मुद्दे पर जो भी दल सहयोग दे रहे हैं, बयान दे रहे हैं, उनकी पूरी मदद ली जाए। इसका नजारा कल देखने को भी मिला था, जब पूरा विपक्ष राहुल के मुद्दे पर दिल्ली के विजय चौक पर गिरफ्तारी देने गया था। करीब 17-18 दलों के सांसद इसमें शामिल थे।
राहुल मुद्दे के अलावा अडानी मुद्दे ने भी विपक्ष को एक कर रखा है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जिनमें आपसी मतभेद रहे हैं, वे भी अडानी मुद्दे पर एक मंच पर आए। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने अडानी मुद्दे पर लगातार नोटिस देकर चर्चा की मांग की है। हालांकि आप नेता मनीष सिसोदिया जब गिरफ्तार हुए तो कांग्रेस ने किसी तरह का समर्थन नहीं दिया। लेकिन कांग्रेस अब सिर्फ राहुल गांधी पर ही फोकस कर रही है, इसलिए विपक्ष एकजुट होता नजर आ रहा है।
इस बीच जेडीयू के बिहार अध्यक्ष ललन यादव की महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने कहा - राहुल गांधी के संबंध में 24 घंटे के अंदर जिस प्रकार से फैसला लिया गया है वह दर्शाता है कि केंद्र सरकार हताशा में है. लोकतंत्र की प्रक्रिया होती है, कोर्ट का फैसला चुनाव आयोग में जाता है. चुनाव आयोग के माध्यम से वे स्पीकर के पास जाता है. ये सारी प्रक्रिया 10 घंटे में करना दिखाता है कि इसमें केंद्र सरकार की भूमिका है।
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