जिस 'नेशनलिज़्म' और 'राष्ट्रवाद' के इर्द-गिर्द बीजेपी की राजनीति चलती है उसी शब्द से अब बीजेपी की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस को बहुत बड़ी दिक्कत है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि 'नेशनलिज़्म' शब्द का उपयोग मत कीजिए क्योंकि नेशनलिज़्म का मतलब हिटलर और नात्सीवाद होता है। भागवत का यह बयान चौंकाने वाला इसलिए है कि बीजेपी अपने शुरुआती दिनों से ही नेशनलिज़्म के मुद्दे को उठाती रही है और चुनाव में भी इसको जमकर भुनाती रही है। हालाँकि भागवत ने यह साफ़ नहीं किया है कि वे राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाना छोड़ें या नहीं और सिर्फ़ इतना ही कहा है कि इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करें। तो बीजेपी अब नेशनलिज़्म को भूल जाएगी या सिर्फ़ 'नेशनलिज़्म' शब्द को छोड़ेगी?
हालाँकि इस सवाल का जवाब भी उन्होंने अपने संबोधन में दिया है। वह राँची में मुखर्जी यूनिवर्सिटी मोहराबादी में संघ के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इसी दौरान भागवत ने इंग्लैंड में एक संघ के कार्यकर्ता से हुई अपनी बातचीत को याद किया जहाँ उन्होंने कहा था- 'नेशनलिज़्म शब्द का उपयोग मत कीजिए। नेशन कहेंगे चलेगा, नेशनल कहेंगे चलेगा, नेशनलिटी कहेंगे चलेगा, नेशनलिज़्म मत कहो। नेशनलिज़्म का मतलब होता है हिटलर, नात्सीवादी।'
बता दें कि मोहन भागवत ने जिस हिटलर और नात्सीवाद का ज़िक्र किया है, उसे मानवता पर कलंक के तौर पर देखा जाता है। उसके शासन में तानाशाही थी और लोगों के अधिकार छीन लिए गए थे। लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया था। और यह सब हुआ था नेशनलिज़्म यानी राष्ट्रवाद के नाम पर। लोगों को राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र भक्ति और राष्ट्रवाद जैसी भावनाओं के नाम पर बहकाया गया था और इसी के साथ उनके अधिकार ख़त्म कर तानाशाही लाद दी गई थी।
हिटलर ने ऑश्वित्ज़ बनाए। ऑश्वित्ज़ जर्मनी में हिटलर का क़त्लगाह का नाम है। इसमें कंसन्ट्रेशन और एक्सटर्मिनेशन कैंप थे, यानी हत्या की जगहें थीं। इसमें लोगों को मारने के लिए गैस चैम्बर जैसे तरीक़े अपनाए गए। कल्पनाओं से भी परे यहाँ लोगों को मारने के तरीक़े अपनाए जाते थे। इसमें क़रीब 60 लाख यहूदियों का क़त्लेआम किया गया। ऑश्वित्ज़ में कैद और अनिवार्य हत्या की प्रतीक्षा कर रहे लोगों में से जो बचे रह गए थे उन्हें 75 साल पहले, 27 जनवरी, 1945 को सोवियत संघ की लाल सेना ने मुक्त किया था। उन्होंने रूह कँपा देने वाली मौतों के बारे में लोगों को बताया।
हिटलर के उसी अति राष्ट्रवाद के कारण दुनिया के दूसरे देशों से टकराव हुआ और इसकी परिणति यह हुई कि दूसरा विश्वयुद्ध तक हुआ।
हाल के दिनों में भारत में भी राष्ट्रवाद पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देने पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक संगठनों की ओर से आलोचनाएँ की जा रही हैं। चुनावों में इस राष्ट्रवाद को ख़ूब उछाला गया। बीजेपी और इसके कई नेता देश पर आतंकवाद का ख़तरा, राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा, 'राष्ट्र गौरव', राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों के नाम पर वोट माँगे। जब राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया गया तो कहा गया कि बीजेपी को अपना काम दिखाने के लिए कुछ नहीं है इसलिए उसने इसका सहारा लिया। चाहे आर्थिक मोर्चे पर सरकार की विफलता की बात हो या सरकार के दूसरे कोई काम की। बीजेपी ने इनमें से किसी को भी चुनावी मुद्दा नहीं बनाया।
जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 में फेरबदल करने का मामला हो या फिर तीन तलाक़ जैसे मुद्दे का, इन सभी को राष्ट्रवाद से जोड़कर एक घालमेल तैयार किया गया।
बीजेपी ने इन चुनावों में जिसे भी मुद्दा बनाया उसे कहीं न कहीं राष्ट्रवाद से जोड़कर देखा जाता है। बाद में वह नागरिकता क़ानून को भी ले आई। नागरिकता क़ानून पर देश भर में ज़बरदस्त हंगामा हुआ और प्रदर्शन करने वालों पर ज़्यादती भी हुई। हिंसा में दो दर्जन से ज़्यादा लोग मारे गए। दिल्ली और झारखंड के चुनावों में बीजेपी ने नागरिकता क़ानून के नाम पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश की। नेताओं ने भड़काऊ और अनर्गल बयान दिए। इन्हीं कारणों से कई बार बीजेपी और बीजेपी नेताओं पर हिटलर की तरह पेश आने के आरोप भी लगे। ऐसा कहा जाने लगा कि बीजेपी राष्ट्रवाद का हद से ज़्यादा इस्तेमाल कर रही है।
इन्हीं आलोचनाओं के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान आया है। उन्होंने देश में कट्टरता का भी ज़िक्र किया और कहा कि इसके कारण पूरे देश में अस्थिरता फैल रही है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्नता के बावजूद हरेक भारतीय नागरिक आपस में जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, 'यह भारत की नीति रही है कि न तो ग़ुलाम बनेंगे और न ही किसी को ग़ुलाम बनाएँगे। भारत के पास वह गुण है जो सभी को एकजुट करता है। भारत की संस्कृति हिंदू संस्कृति है। विभिन्नता के बावजूद सभी भारतीय आपस में जुड़े हैं।'
भागवत ने यह भी कहा कि संघ अपना विस्तार कर रहा है जिससे कि भारत को विश्व गुरु बनाया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे-जैसे राष्ट्र तरक्की करेगा, संघ भी अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ता रहेगा।
यानी इस मायने में कहा जाए तो क्या मोहन भागवत यह कहना चाहते हैं कि 'नेशनलिज़्म' शब्द हिंदुत्व के एजेंडे की राह में रोड़ा होगा?
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