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जो लोग आरक्षण के ख़िलाफ़ हैं, उन्हें इसके समर्थकों के बारे में सोचना चाहिए और जो लोग इसका समर्थन करते हैं, उन्हें इसके विरोधियों के बारे में सोचना चाहिए।
मोहन भागवत, सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
बीजेपी पर लगा दलित-विरोधी होने का आरोप
आरएसएस प्रमुख की बातें महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि सत्तारूढ़ बीजेपी में ज़्यादातर लोग किसी ने किसी रूप में संघ से जुड़े हुए रहे हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रचारक रह चुके हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान कई ऐसे फ़ैसले हुए, जिन्हें आरक्षण विरोध के तौर पर देखा गया। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में यह प्रावधान कर दिया गया था कि हर नियुक्ति को रोस्टर प्रणाली से जोड़ दिया गया था। इसका बहुत ही विरोध हुआ और उसके बाद सरकार को इस आदेश को वापस लेना पड़ा। मोहन भागवत के बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।मोहन भागवत ने कहा था कि संविधान बनाने वालों ने जो सोच कर इसकी व्यवस्था की थी, वह नहीं हुआ है। आरक्षण के नाम पर राजनीति हुई है। उन्होंने एक ग़ैर-राजनीतिक कमेटी बनाने की माँग की थी जो इस पूरे मामले की समीक्षा करे।
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ऐसे लोगों की एक कमेटी बनाई जानी चाहिए जो सचमुच पूरे राष्ट्र के बारे में सोचते हों, सबके कल्याण और बराबरी के बारे में सोचते हों। इस कमेटी में ऐसे लोग भी हों जो यह सुझाव दे सकें कि किसको आरक्षण मिले और कब तक मिले।
मोहन भागवत, सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
आरक्षण के ख़िलाफ़ बीजेपी?
इस पर भारतीय जनता पार्टी की काफ़ी आलोचना की गई, यह कहा गया कि बीजेपी आरक्षण ख़त्म करना चाहती और यह भी कि वह दलित विरोधी है। लगभग उसी समय बिहार में विधानसभा चुनाव था, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल ने इस मुद्दे को खूब भुनाया। उस चुनाव में बिहार में बीजेपी को बहुत नुक़सान हुआ और इसे भागवत के बयान से जोड़ कर देखा गया था।भागवत के विवादास्पद बोल
पिछले साल सितंबर में भागवत ने एक बार फिर आरक्षण पर बयान दिया, उन्होंने इसका समर्थन किया। लेकिन इस बार भी उन्होंने यह सवाल उठा दिया कि यह कब तक चलेगा, उसकी समीक्षा का समय आ गया है।“
सामाजिक कलंक को मिटाने के लिए संविधान में प्रदत्त आरक्षण का आरएसएस पूरी तरह समर्थन करता है। आरक्षण कब तक दिया जाना चाहिए, यह निर्णय वही लोग करें, जिनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। जब उन्हें लगे कि यह जरूरी नहीं है, तो वे इसका निर्णय लें।
मोहन भागवत, सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
भागवत ने 8 नवंबर, 2017 को राजस्थान में एक कार्यक्रम में भी आरक्षण पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था, ‘जाति के आधार पर समाज के एक वर्ग के साथ भेदभाव लंबे समय से किया जाता रहा है। संविधान में जाति-आधारित भेदभाव को दुरुस्त करने की व्यवस्था है और यह लंबे समय से चली आ रही है।
संघ की रणनीति
सवाल यह है कि भागवत के इस बयान को किस रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने आरक्षण व्यवस्था पर तो सवालिया निशान लगा ही दिया। उन्होंने इस पर बहस करने की माँग कर इस पर पुनर्विचार का संकेत दे दिया।संघ पूरे हिन्दू समुदाय को एकजुट करना चाहता है, वह चाहता है कि एक ऐसा समुदाय बन कर तैयार हो जो जाति के नाम पर बँटा हुआ नहीं हो। यह बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद इसलिए है कि जातियों के आधार पर बँटे हुए गुट अपने-अपने हितों के हिसाब से वोट करते हैं।
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