क्या न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिश हो रही है? और यदि ऐसा है तो यह कौन कर रहा है? इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के 21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने चिंता जताई है। उन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश को ख़त लिखा है। सेवानिवृत्त जजों ने कहा है, 'कुछ गुटों द्वारा जानबूझकर दबाव, गलत सूचना और सार्वजनिक अपमान कर न्यायपालिका को कमजोर करने के प्रयास' तेज कर दिए गए हैं।
उन्होंने कहा, ये आलोचक संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित हैं और न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। हालाँकि, इस ख़त में गंभीर चिंताएँ जताई गई हैं, लेकिन किसी ख़ास मामले या घटना का ज़िक्र नहीं किया गया है।
ख़त लिखने वालों में सुप्रीम कोर्ट के जज (सेवानिवृत्त) दीपक वर्मा, कृष्ण मुरारी, दिनेश माहेश्वरी और एम आर शाह सहित उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त जज शामिल हैं। उन्होंने आलोचकों पर अदालतों और न्यायाधीशों की ईमानदारी पर सवाल उठाकर न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने के प्रयासों के साथ कपटपूर्ण तरीके अपनाने का आरोप लगाया।
इन सेवानिवृत्त जजों का ख़त तब सामने आया है जब कथित भ्रष्टाचार के मामले में कुछ विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दलों के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है। सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के बीच न्यायपालिका को लेकर भी हाल ही में जुबानी जंग तब छिड़ गई थी जब पिछले महीने सीधे प्रधानमंत्री मोदी तक ने आरोप लगा दिया था कि न्यायपालिका को डराने और धमकाने की कोशिश की जा रही है।
तब सीजेआई को वकीलों द्वारा ख़त लिखे जाने की ख़बर को साझा करते हुए पीएम मोदी ने लिखा था, "दूसरों को डराना-धमकाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है। 5 दशक पहले ही उन्होंने 'प्रतिबद्ध न्यायपालिका' का आह्वान किया था - वे बेशर्मी से अपने स्वार्थों के लिए दूसरों से प्रतिबद्धता चाहते हैं लेकिन राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें खारिज कर रहे हैं।"
पीएम मोदी ने जिस ख़त को लेकर यह ट्वीट किया था उसे देश के 600 से ज़्यादा वकीलों ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को लिखा था। पत्र लिखने वालों में पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे समेत कई वरिष्ठ वकील शामिल थे। ये हरीश साल्वे वही हैं जिन्हें सरकार का पसंदीदा माना जाता है और जिनका नाम पनामा पेपर्स और पैंडोरा पेपर्स में भी आया था। 26 मार्च को ही लिखे इस पत्र में वकीलों ने सीजेआई से कहा था कि 'न्यायपालिका ख़तरे में है और एक समूह न्यायपालिका पर दबाव बना रहा है। न्यायपालिका को राजनैतिक और व्यवसायिक दबाव से बचाना होगा।'
To browbeat and bully others is vintage Congress culture.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 28, 2024
5 decades ago itself they had called for a "committed judiciary" - they shamelessly want commitment from others for their selfish interests but desist from any commitment towards the nation.
No wonder 140 crore Indians… https://t.co/dgLjuYONHH
पीएम के ट्वीट पर कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा था, 'न्यायपालिका की रक्षा के नाम पर, न्यायपालिका पर हमले की साजिश रचने में प्रधानमंत्री की निर्लज्ज पाखंड की पराकाष्ठा!'
उन्होंने कहा था, 'हाल के सप्ताहों में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कई झटके दिए हैं। चुनावी बॉन्ड योजना तो इसका एक उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें असंवैधानिक घोषित कर दिया - और अब यह बिना किसी संदेह के साबित हो गया है कि वे कंपनियों को भाजपा को चंदा देने के लिए मजबूर करने के लिए भय, ब्लैकमेल और धमकी का एक ज़बरदस्त साधन थे। प्रधानमंत्री ने एमएसपी को कानूनी गारंटी देने के बजाय भ्रष्टाचार को कानूनी गारंटी दी है।'
The PM's brazenness in orchestrating and coordinating an attack on the judiciary, in the name of defending the judiciary, is the height of hypocrisy!
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 28, 2024
The Supreme Court has delivered body blows to him in recent weeks. The Electoral Bonds Scheme is but one example. The Supreme… https://t.co/R00ZRdWa7S
उन्होंने कहा है कि इन समूहों द्वारा अपनाई गई रणनीति बेहद परेशान करने वाली है। इसमें कहा गया है कि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ख़राब करने के इरादे से ऐसा प्रचार प्रसार किया जा रहा है जिससे न्यायिक परिणामों को अपने पक्ष में प्रभावित किया जा सके।
ख़त लिखने वालों ने कहा कि वे विशेष रूप से गलत सूचना की रणनीति और न्यायपालिका के खिलाफ सार्वजनिक भावनाओं को भड़काने के बारे में चिंतित हैं।
उन्होंने कहा है कि किसी के विचारों से मेल खाने वाले न्यायिक निर्णयों की चुनिंदा रूप से प्रशंसा करने और विचारों से मेल नहीं खाने पर उनकी तीखी आलोचना करने की प्रथा, न्यायिक समीक्षा और कानून के शासन को कमजोर करती है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के नेतृत्व वाली न्यायपालिका से ऐसे दबावों के खिलाफ मजबूत होने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि कानूनी प्रणाली की पवित्रता और स्वायत्तता संरक्षित रहे।
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