'सलाखों के पीछे'
देश में जहाँ एक ओर फ़र्जी खबरों और टेलीविज़न पर भड़काऊ व एकतरफा शो और कार्यक्रमों की भरमार है, वहीं सत्ता प्रतिष्ठान पर अंगुली उठाने वाले पत्रकार लगातार सरकार और सत्तारूढ़ दल के निशाने पर हैं। पिछले साल यानी 2020 में 67 पत्रकारों को उनके कामकाज की वजह से गिरफ़्तार किया गया या उन्हें हिरासत में लिया गया और उनसे पूछताछ की गई।
निष्पत्र पत्रकार गीता शेशु की तैयार रिपोर्ट 'सलाखों के पीछे : 2010-20 में पत्रकारों की गिरफ़्तारी और हिरासत' में इसका खुलासा किया गया है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकारों पर भारतीय दंड संहिता की सामान्य धाराओं के अलावा आतंकवाद निरोध धाराएं, अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रीवेन्शन एक्ट (यूएपीए) और राजद्रोह की धाराएं भी लगाई गई हैं।
राजनेताओं और कॉरपोरेट घरानों ने पत्रकारों पर आपराधिक अवमानना के मामले लगाए हैं और एक मामले में तो आजीवन कारावास तक की सज़ा सुना दी गई है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल
पिछले कई साल से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा के सूचकांक में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है। सरकार बार-बार इंटरनेट बंद कर देती है।
साल 2020 में सरकार ने 64 बार इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं। इसके पहले 2019 में जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं सबसे लंबे समय तक बाधित रहीं जब अनुच्छेद 370 में बदलाव किया गया और अनुच्छेद 35 'ए' ख़त्म कर दिया गया। उस राज्य में 4-जी सेवा अब तक चालू नहीं की गई है।
पिछले कुछ सालों में पत्रकारों पर हमलों की वारदात बढ़ी हैं। 2014-19 के दौरान पत्रकारों पर 198 हमले हुए, 2019 में ही 36 पत्रकारों पर हमले किए गए। 2010 से अब तक कामकाज की वजह से निशाने पर लिए जाने के कारण 30 पत्रकार मारे गए हैं।
बीजेपी-शासित राज्यों से ज़्यादा मामले
पिछले एक दशक में पत्रकारों पर हुए हमलों और उन्हें निशाने पर लिए जाने के 154 मामले रिकॉर्ड किए गए हैं, उनमें से 73 मामले बीजेपी-शासित राज्यों से हैं। 30 मामले उन राज्यों से हैं, जहाँ बीजेपी वाले एनडीए की सरकार है। उत्तर प्रदेश से सबसे ज़्यादा 29 मामले हैं।
56 पत्रकार गिरफ़्तार
पिछले एक दशक में 56 पत्रकारों को गिरफ़्तार किया गया। साल 2020 में प्रशांत कनौजिया को जेल में 80 दिन बिताने पड़े। उन पर आरोप है कि उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर से जुड़े ट्वीट किए।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई पत्रकारों के कामकाज पर बहुत ती तीखी और ज़बरदस्त प्रतिक्रियाएं हुईं। आउटलुक की नेहा दीक्षित ने 2016 में असम में संघ परिवार के लोगों द्वारा कथित तौर पर लड़कियों के कारोबार का पर्दाफाश किया।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान प्रशासन की नाकामियों को उजागर करती हुई रिपोर्टों के कारण अश्विन सैनी के ख़िलाफ़ 5 एफ़आईआर दर्ज किए गए। केरल में 2018 में वदयमपादि जाति दिवाल को कवर कर रहे अभिलाष पदाचेरी और अनंतु राजगोपाल पर एफ़आईआर दर्ज किया गया।
साल 2020 में रिपब्लिक टीवी के अर्णब गस्वामी और ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी के ख़िलाफ़ भड़काऊ कवरेज के मामले दर्ज हुए, गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में जेल जाना पड़ा।
इस रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के कामकाज पर सवालिया निशान लगाया गया है और कहा गया है कि सत्तारूढ़ दल के नज़दीक होने के कारण उन्हें तरजीह दी गई जबकि सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना करने वाले पत्रकार जेल में बंद हैं।
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