क्या फ्रांसीसी कंपनी दसॉ रफ़ाल सौदे के ऑफ़सेट क़रार को इसलिए नहीं मान रही है कि उसे पहले ही इस मामले में काफ़ी छूट मिली थी और उसने इसके लिए सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से बात की थी? क्या फ्रांसीसी कंपनी इसलिए ऑफ़सेट क़रार को लेकर गंभीर नहीं है कि उसने सरकार के कहने के मुताबिक ही भारत में अपना ऑफ़सेट पार्टनर चुना था? इससे 'मेक इन इंडिया' को झटका लगने पर भी सरकार चुप क्यों है? और सबसे बडी बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अब तक दसॉ पर डबाव क्यों नही डाला है कि वह इस क़रार का पालन करे?