राफेल (रफ़ाल) सौदे के बिचौलिए सुशेन गुप्ता ने लड़ाकू जहाज़ बनाने वाली कंपनी दसॉ के किसी आदमी से क्यों कहा था कि वह उसे एक 'पॉलिटिकल हाई कमान्ड' से मिलवा सकता है? कौन था वह 'पॉलिटिकल हाई कमान्ड'? क्या वह व्यक्ति उस समय की सत्ताधारी पार्टी का कोई बड़ा नेता था? क्या वह व्यक्ति उस समय की केंद्र सरकार में मंत्री था?
फ्रांस से लड़ाकू विमान राफेल (रफ़ाल) खरीदने के मामले में जो नए तथ्य सामने आए हैं और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने जो सवाल उठाए हैं, उनसे ये सवाल अपने आप खड़े हो रहे हैं। ये वे सवाल भी हैं, जिन पर सरकार और सत्तारूढ़ दल बीजेपी चुप हैं। वे इससे इनकार नहीं कर रही हैं।
फ़्रांसीसी न्यूज़ पोर्टल 'मीडियापार्ट' ने एक सनसनीखेज खबर में दावा किया है कि बिचौलिया सुशेन गुप्ता को इंडियन निगोशिएशन टीम (आईएनटी) का एक अत्यंत महत्वपूर्ण व गोपनीय दस्तावेज हाथ लग गया था। भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने इस टीम का गठन राफेल (रफ़ाल) बनाने वाली कंपनी दसॉ एविएशन से बातचीत करने के लिए किया था।
बिचौलिए को मिला दस्तावेज़?
इस टीम का गठन 2015 में हुआ था। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी।
कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा है कि सुशेन गुप्ता को जो गोपनीय दस्तावेज़ मिला था, उसमें 10 अगस्त, 2015 को इंडियन निगोशिएसन टीम की बैठक का रिकॉर्ड भी शामिल है। इस दस्तावेज में लड़ाकू विमान की 'बेंचमार्क कीमत' लिखी हुई थी।
पार्टी का दावा है कि इस दस्तावेज में रक्षा मंत्रालय का एक्सेल शीट पर तैयार किया हुआ कैलकुलेशन और दूसके आँकड़े भी थे।
इस दस्तावेज में यह भी लिखा हुआ था कि एक दूसरी कंपनी यूरोफ़ाइटर ने रफ़ाल के तरह के ही विमान की पेशकश की थी और उसकी कीमत में 20 प्रतिशत की छूट भारत को देने की पेशकश की थी।
दसॉ को फ़ायदा?
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा है कि बिचौलिए को मिले उस दस्तावेज़ में विस्तार से लिखा गया था कि सरकार विमानों की कीमत किस तरह तय करेगी और क्या कीमत चुकाना चाहेगी। इससे दसॉ को निश्चित तौर पर यह सौदा हासिल करने में मदद मिली होगी।
याद दिला दें कि 4 अक्टूबर, 2018 को पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने सीबीआई के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा से मुलाक़ात कर उन्हें एक फ़ाइल सौंपी थी। मॉरीशस के अटॉर्नी जनरल ने भी बिचौलिए सुशेन गुप्ता से जुड़ी एक फ़ाइल सरकार को सौंपी थी।
लेकिन आलोक वर्मा को रातोरात सीबीआई निदेशक पद से हटा दिया गया था और सीबीआई मुख्यालय पर आधी रात को छापा पड़ा था।
कांग्रेस का आरोप है कि आलोक वर्मा राफेल मामले में एफ़आईआर दर्ज कराने जा रहे थे, इसलिए ही उन्हें निदेशक के पद से आनन फानन में हटाया गया था और इस मामले से जुड़े दस्तावेज हासिल करने के लिए सीबीआई के दफ्तर पर बीच रात में छापा मारा गया था।
मोदी पर आरोप
मुख्य विपक्षी दल का आरोप है कि इस भ्रष्टाचार के तार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुँचते हैं।
एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट यानी ईडी ने 26 मार्च 2019 को गुप्ता के यहां छापा मारा था। पवन खेड़ा ने सवाल किया है कि क्या उस छापे के दौरान गुप्ता के पास से राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेज़ बरामद नहीं हुए थे?
दसॉ को भेजा नोट?
कांग्रेस प्रवक्ता ने दावा किया है कि सुशेन गुप्ता ने 24 जून 2014 को एक नोट रफ़ाल बनाने वाली कंपनी दसॉ को भेजा था। गुप्ता ने उसमें एक 'पॉलिटिकल हाई कमान्ड' से मिलवाने की पेशकश दसॉ से की थी। कांग्रेस ने सवाल किया है कि क्या उस हाई कमान्ड से मुलाकात कराई गई थी।
सवाल यह उठता है कि वह 'पॉलिटिकल हाई कमान्ड' कौन था। क्या वह बीजेपी का कोई बहुत बड़ा नेता था? क्या वह कोई केंद्रीय मंत्री था? क्या वह प्रधानमंत्री के बेहद क़रीब था?
सवाल दर सवाल!
ये सवाल स्वाभाविक इसलिए हैं कि इतने गोपनीय और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इतने बड़े सौदे की जानकारी और उस पर अहम निर्णय की क्षमता किसी सामान्य आदमी या अफ़सर की नहीं हो सकती।
पवन खेड़ा ने सवाल उठाया है,
“
ईडी ने इस मामले में आगे की जाँच क्यों नहीं की? सरकार ने दसॉ के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की? सरकार ने इतने गोपनीय दस्तावेज को लीक करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की?
पवन खेड़ा, प्रवक्ता, कांग्रेस पार्टी
उन्होंने कहा, "चौकीदार ने भारत के राष्ट्रीय रहस्य बेच दिए।"
याद दिला दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को देश का चौकीदार बताया था, जिसके बाद बीजेपी और उससे जुड़े लोगों ने 'मैं भी चौकीदार' नाम से अभियान ही चला दिया था।
कांग्रेस ने यह आरोप भी लगाया है कि नरेंद्र मोदी के कहने पर ही भ्रष्टाचार विरोधी क़ानून से 'घूस नहीं, उपहार नहीं, कोई असर नहीं, कमीशन नहीं, बिचौलिया नहीं', जैसे शब्द हटा दिए गए।
पवन खेड़ा ने सवाल पूछा है कि इन शब्दों को क्या इसलिए हटा दिया गया कि रफ़ाल सौदे में लिए गए कमीशन और घूस से बचा जा सके?
उन्होंने पूछा है कि जब रक्षा मंत्रालय ने जुलाई 2015 में इन शब्दों को रखे जाने पर ज़ोर दिया था तो सितंबर 2016 में भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधानों से इन शब्दों को क्यों और कैसे हटा दिया गया?
लेकिन इससे जुड़े दूसरे सवाल भी उठते हैं।
सवाल यह है कि जब सरकार ने कांग्रेस के इन आरोपों को अब तक खारिज नहीं किया है तो क्या रफ़ाल मामले की जाँच एक बार फिर शुरू की जाएगी?
इन सवालों के जवाब केंद्र सरकार को देने हैं।
बता दें कि फ्रांसीसी पोर्टल 'मीडियापार्ट' की रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांसीसी विमान निर्माता दसॉ ने भारत को 36 राफेल (रफ़ाल) लड़ाकू विमानों की बिक्री सुरक्षित करने में मदद करने के लिए एक बिचौलिए को कम से कम 7.5 मिलियन यूरो यानी क़रीब 65 करोड़ रुपये का भुगतान किया। इसने कहा है कि भारतीय एजेंसियाँ दस्तावेजों की उपलब्धता के बावजूद इसकी जाँच करने में विफल रहीं।
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