अमेरिका के मीनियापोलिस राज्य में एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ़्लॉयड की पुलिस ज़्यादती से हुई मौत, उस पर भड़की हिंसा और उस पर राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की भड़काऊ टिप्पणी ने अमेरिका में मौजूद नस्लवाद को एक बार फिर उजागर कर दिया है। इसके साथ ही अमेरिकी समाज में मौजूद नस्लवाद के उस फ़ॉल्टलाइन को उभार कर सामने ला दिया है, जो उनकी राजनीति ही नहीं, अर्थव्यवस्था और दूसरी चीजों को प्रभावित और नियंत्रित करता है।
मीनियापोलिस में डकैती के संदिग्ध जॉर्ज फ़्लॉयड को पुलिस वालों ने पटक कर ज़मीन पर गिरा दिया। उसके बाद एक पुलिस अफ़सर ने उनके गले पर अपना घुटना टिका कर दबाया ताकि वह उठ कर भाग न सकें। पर इस कोशिश में फ़्लॉयड को सांस लेने में दिक्क़त हुई। बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गई।
इसके बाद बड़ी तादाद में अश्वेत सड़कों पर आ गए, उस पुलिस अफ़सर की गिरफ़्तारी की माँग करने लगे, इसमें हिंसा भी हुई। उसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने जो ट्वीट किया, वह पूरी समस्या, बहुसंख्यक मानसिकता, अश्वेतों के प्रति उनके रवैए को ज़ाहिर करता है।
अश्वेतों के ख़िलाफ़ पुलिस ज़्यादती
इस घटना ने अमेरिकियों को ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आन्दोलन की याद ताज़ा कर दी। फ़रवरी 2012 में पुलिस गोली से अश्वेत किशोर ट्रेवॉन मार्टिन की मौत होने के बाद बड़े पैमाने पर पूरे अमेरिका में आन्दोलन तेज़ हो गया था। 16 साल का यह किशोर अपने पिता के साथ उनकी गर्ल फ्रेंड के घर गया तो पास की परचून की दुकान में गया। श्वेत दुकानदार को लगा कि यह अश्वेत किशोर कुछ चुराने आया है। उसने पुलिस को बुला लिया। पुलिस अफ़सर ने निहत्थे अश्वेत किशोर पर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसा कर उसे वहीं मार गिराया। अगले साल 2013 में गोली चलाने वाले पुलिस अफ़सर जॉर्ज ज़िमरमैन को निर्दोष क़रार देकर रिहा करने के बाद ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आन्दोलन पूरे देश में फैल गया।
'ब्लैक लाइव्स मैटर'
साल 2014 में सेंट लुइस में माइकल ब्राउन और न्यूयॉर्क में एरिक गार्नर की इसी तरह की गोलीबारी से हुई मौत ने एक बार फिर श्वेत-अश्वेत के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया।
‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आन्दोलन एक ट्रेंड बन गया जो 2012 से लेकर 2017 तक बीच बीच में होता रहा। इसकी बड़ी वजह यह रही कि इस दौरान लगातार अश्वेतों पर ज़्यादतियाँ होती रहीं। जब-जब अश्वेतों पर पुलिस ज़्यादती हुई और किसी की मौत हुई तब-तब इसी नाम के बैनर-पोस्टर बाहर निकले और आंदोलन फैला।
अश्वतों की मौत होती रही
इसका मतलब साफ़ है कि इस तरह की वारदात लगातार होती रहीं। साल 2014 में चार्ली क्यूनांग, टोनी रॉबिन्सन, एंथनी हिल, मेगन हॉकेडे, एरिक हैरिस, वॉल्टर स्कॉट, फ्रेडी ग्रे, विलियम चैपमैन, जोनाथन सैंडर्स, सैमुअल ड्यूबोस, जेरेमा मैकडोल कोरी जोन्स और डिलन रूफ की मौत इसी तरह की विवादास्पद पुलिस कार्रवाइयों में हुईं। ये सभी अश्वेत थे। साल 2016 में ऑल्टन स्टर्लिंग, फिलैन्डो कस्टील, जोज़फ़ मैन, पॉल ओ नील, कोरिन गेन्स, सिलवल स्मिथ, टेरेंस क्रचर, कीथ लैमंट स्कॉट और अलफ्रेड ओलैंगो की मौत पुलिस कार्रवाई में ही हुईं। ये भी सभी अश्वेत अमेरिकी थे।
अश्वेत राष्ट्रपति भी नहीं रोक पाए अश्वेतों से अन्याय!
इस ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आन्दोलन की एक बड़ी अहम बात यह है कि इस दौरान 2016 तक अमेरिका में अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति बराक़ ओबामा का शासन था। बराक ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने को अश्वेतों की एक बड़ी जीत के रूप में देखा गया था, क्योंकि उनके पिता कीनिया से अमेरिका आए अश्वेत थे। इसके बावजूद उनके ही शासन काल में अश्वेतों पर हमले हुए, निर्दोष अश्वेत पुलिस कार्रवाई में मारे गए और पूरे देश में आन्दोलन चला।
इन घटनाओं से ओबामा इतने परेशान और दुखी थे कि उन्होंने पद छोड़ते समय दिए एक भाषण में अश्वतों पर हमले रोकने में नाकामी को अपनी बड़ी अक्षमता और निजी असफलता क़रार दिया था।
श्वेत-अश्वेत विभाजन
अमेरिका में श्वेत-अश्वेत फ़ॉल्टलाइन भारत में हिन्दू-मुसलमान विभाजन से अधिक साफ़, गहरा और ख़तरनाक है। उसकी बड़ी वजह यह है कि ये अश्वेत अफ़्रीकी महादेश के अलग-अलग देशों से अमेरिका लाए गए और वहाँ ग़ुलाम बनाए गए लोगों के वंशज हैं।
अमेरिका में जो सबसे प्रभुत्व वाला समाज है वह है ‘वैस्प’ (डब्लूएएसपी) यानी व्हाइट एंग्लो सैक्शन प्रोटेस्टेंट के वंशज। ये वे लोग हैं जो यूरोप से अमेरिका अलग-अलग समय में आए और वहां के संसाधनों पर कब्जा कर लिया। ये ब्रिटिश हैं, जर्मन हैं, पोलिस हैं, फ्रेंच हैं, स्पैनिश और पुर्तगाली तक हैं। आज अमेरिकी समाज में रच-बस गए ये श्वेत एकाकार हैं। ठीक वैसे ही जैसे, अफ़्रीका के अलग-अलग अंचलों से अलग-अलग भाषा-बोलियों और धार्मिक आस्था वाले लोग आज एक अश्वेत समाज हैं।
इस फ़ॉल्ट लाइन की सबसे बड़ी दिक्क़त आर्थिक असमानता है। ये अश्वेत ब्लू कॉलर जॉब यानी कम पैसे पर मज़दूरी करने वाले और कम कुशलता वाली नौकरियों में सबसे अधिक हैं।
हाशिए पर खड़े अश्वेत
इनमें शिक्षा कम है, ये बड़े पैमाने पर झुग्गी झोपड़ियों यानी ‘गेटो’ में रहते हैं, इसके पास नौकरियाँ कम हैं। इस वजह से ये सबसे अधिक ज़रायम पेशा में भी हैं। राहजनी, डकैती, लूटपाट, चोरी, वेश्यावृत्ति और पोर्न फ़िल्म जैसे काम धंधों में श्वेतों की तुलना में अश्वेत अधिक हैं।
ये मोटे तौर पर कृषि, डेरी, सूअर पालन व मांस प्रसंस्करण, कैटल रैंच (जहाँ गायें पाली जाती हैं), स्लॉटर हाउस वगैरह में काम करते हैं। कल कारखानों में भी ये काम करते हैं। इनके बीच पुलिस, सेना और ऑफ़िस में काम करने वालों की संख्या बहुत कम है।
अमेरिका समाज में जो अश्वेत दिखते हैं, वे मोटे तौर पर स्पोर्ट्स, पुलिस व सेना में दिखते हैं, लेकिन वहां भी उनकी उपस्थिति 10 प्रतिशत से भी कम है।
अमेरिका के सभ्रांत और पैसे वाले इलाकों में अश्वेतों के घर बहुत ही कम दिखने को मिल सकते हैं। पैसे वाले और संपन्न अश्वेतों को भी श्वेत कॉलोनी में बड़ी मुश्किल से घर मिलता है।
सीनियर बुश से ओबामा तक का स़फर
बराक ओबामा के ठीक पहले जॉर्ज बुश जूनियर राष्ट्रपति थे, जो अपने पिता जॉर्ज बुश सीनियर की विदेश ही नहीं तमाम घरेलू और आर्थिक नीतियों को चला रहे थे। दोनों बुश एक ही रिपब्लिकन पार्टी के तो थे ही, उनकी छवि मुसलिम- विरोधी, कट्टरपंथी, बेवजह युद्ध छेड़ने वाले लोगों की थी।
ऐसे समय बराक ओबामा को लोगों ने निम्न-मध्य वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में देखा जो उदारवादी नीतियों पर चलने वाले डेमोक्रेट थे। उन्हें अश्वेतों ने ही नहीं, उदारवादी श्वेतों ने भी वोट दिया।
ट्रंप ने उठाया फ़ायदा
ओबामा के दो बार राष्ट्रपति बनने के बाद 2015 में चुनाव हुए तो डोनल्ड ट्रंप एक ऐसे उम्मीदवार के रूप में उभरे जिन्होंने न केवल इस फॉल्टलाइन को बढ़ावा दिया, बल्कि उसका फ़ायदा उठाया। ट्रंप अपनी घरेलू नीतियों में जब नौकरी की बात करते थे तो उनका ध्यान उन इलाक़ों में अधिक था, जहाँ श्वेत अधिक बसते थे। वे जब ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की नीति की बात करते थे तो जिस कॉरपोरेट वर्ग को खुश करना चाहते थे, उनके मालिक मोटे तौर पर श्वेत थे।
ट्रंप ने अश्वेतों, एशियाई मूल के लोगों, लैटिन मूल के लोगों, मुसलमानों के ख़िलाफ़ बयानबाजी एक सोची समझी रणनीति के तहत ही की थी। यह ग़लती नहीं थी, संयोग नहीं था।
ट्रंप की विभाजनकारी राजनीति
गणित साफ़ था। इन सबके नाराज़ होने से यदि यूरोपीय नस्ल के श्वेत मतदाता उनसे खुश होते हैं, तो यह फ़ायदे का ही सौदा है क्योंकि उनकी संख्या बहुत अधिक है। उनके पास पैसा भी है। जब डोनल्ड ट्रंप एक अश्वेत की पुलिस ज़्यादती में हुई मौत के बाद अश्वेतों के विरोध प्रदर्शन पर भड़काऊ ट्वीट करते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ट्रंप ने ट्वीट किया था, 'जब लूटपाट शुरू होती है तो फ़ायरिंग भी शुरू होती है।’ उन्होंने इसी तरह इसी ट्वीट में प्रदर्शनकारियो को ‘ठग’ यानी लुटेरा कहा था।
फ़ायदे में हैं ट्रंप
नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव का सामना करने जा रहे ट्रंप के पास अपनी कामयाबी गिनाने को बहुत कुछ नहीं है। कोरोना संक्रमण और उसे रोकने में उनकी ज़बरदस्त नाकामी ने उन्हें और बुरी स्थिति में ला छोड़ा है। ऐसे में यदि वे अपने कंस्टीच्युएंसी पर ध्यान दे रहे हैं और श्वेतों को खुश कर रहे हैं तो ताज्जुब क्या है?
यदि ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आन्दोलन शुरू होता है तो यह ट्रंप के लिए वरदान साबित होगा। इससे एक ओर जहाँ अश्वेत एकजुट होंगे, दूसरी ओर श्वेतों को अपनी एकजुटता साबित करने का मौका मिलेगा।
भारत से तुलना करके देखिए। किस तरह मुसलमानों के समर्थन में कही जाने वाली हर बात सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करती है।
इसलिए ट्रंप ने कोई ग़लती नहीं की है, उन्हें भी चुनाव लड़ना है, एक बार फिर राष्ट्रपति बनना है। श्वेत-अश्वेत का मामला अमेरिका में नया नहीं है, इस विद्वेष से राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या हो चुकी है और देश गृह युद्ध झेल चुका है।
आज के युग में यदि यह फ़ॉल्टलाइन नहीं ख़त्म हुआ है तो बेचारे ट्रंप की क्या ग़लती! वे इस फ़ॉल्टलाइन को बढ़ाएंगे, उसे मजबूत करेंगे, उसका राजनीतिक फ़ायदा उठाएंगे। भारत हो या अमेरिका, फ़िलहाल विभाजनकारी नीतियाँ सत्ता तक पहुँचने में मदद करती हैं।
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