भारत और जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व वाले कनाडा के बीच कूटनीतिक लड़ाई तेज हो गई है और इसके साथ ही लाखों भारतीयों का डर भी बढ़ गया है। स्थिति यह है कि कनाडा में मौजूद भारतीय छात्र बेचैन और परेशान है और जो वहां छात्र वहां पढ़ने की योजना बना रहे हैं वे भी चिंतित हैं।
कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो द्वारा खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत सरकार पर उंगली उठाने के बाद से दोनों देशों के संबध तनावपूर्ण हो गए हैं। बात इतनी बिगड़ी की दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित भी कर दिया और अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी भी जारी कर दी। भारत सरकार ने गुरुवार को कनाडा में वीजा सुविधाएं निलंबित कर दीं।
इस बीच कनाडा में मौजूद आतंकियों के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। बुधवार को भी खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत पन्नून ने एक धमकी भरा और आपत्तिजनक वीडियो जारी कर भारतीय-कनाडाई हिंदुओं से भारत वापस जाने के लिए कहा है।
कनाडा में मौजूद भारतीय छात्रों में बढ़ रही है चिंता
इंडिया टुडे की रिपोर्ट कहती है कि दोनों देशों के बीच राजनयिक गतिरोध के साथ-साथ खालिस्तानी आतंकियों की धमकियां कनाडा में भारतीय समुदाय के सदस्यों, भारत में उनके माता-पिता और अगले शैक्षणिक सत्र के लिए कनाडा में रहने की प्रतीक्षा कर रहे छात्रों के बीच चिंता और बेचैनी पैदा कर रही हैं।कनाडा स्थित एक आव्रजन विशेषज्ञ ने बताया कि हमें भारत से माता-पिता से कई कॉल आ रही हैं जो कनाडा में पढ़ रहे अपने बच्चों की भलाई और सुरक्षा के बारे में चिंतित हैं। उन्हें आश्वस्त करते हुए कि चीजें आखिरकार सुलझ जाएंगी, हम जानते हैं कि किसी भी डर और तनाव को दूर करने के लिए दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व पर बहुत कुछ निर्भर करता है।
एक अन्य कनाडाई आव्रजन सलाहकार, ने कहते हैं कि कनाडा और भारत के बीच राजनयिक टकराव कनाडा के लिए अपने वीजा का इंतजार कर रहे भारतीय लोगों में "अंतहीन चिंता" पैदा कर रहा है। कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में रह रहे लुधियाना के युवा, जो कनाडा में वर्क परमिट पर आए हैं और अपने पीआर का इंतजार कर रहे हैं, ने कहा कि यह पहली बार था कि उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया गया कि क्या वास्तव में कोई खतरा था।
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संबंध खराब हुए तो कनाडा को होगा बड़ा आर्थिक नुकसान
इंडिया टुडे वेबसाइट की यह रिपोर्ट कहती है कि भारत जानता है कि इस टकराव में उसका पलड़ा भारी है। कनाडा की अर्थव्यवस्था में विदेशी छात्रों का अहम योगदान है। ये अंतर्राष्ट्रीय छात्र हर साल कनाडाई अर्थव्यवस्था में 30 बिलियन डॉलर लाते हैं, इसका अन्य क्षेत्रों पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, आवास के क्षेत्र में, जहां छात्र बड़ी संख्या में मौजूद हैं। वे किराये पर मकान लेते हैं।अब भारतीय छात्रों का महत्व कनाडा की अर्थव्यवस्था में इस बात से समझा जा सकता है कि कनाडा में मौजूद कुल अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में से करीब 40 प्रतिशत भारतीय हैं। अगर भारत सरकार ने कनाडा जाने वाले छात्रों को नियंत्रित कर दिया या ये छात्र वहां नहीं जाए तो कनाडा की की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हो सकता है।
हाल के एक लेख में, द ग्लोब एंड मेल ने यह आशंका जताई थी कि भारत के साथ तनाव के कारण कनाडा में चिंता पैदा हो रही है कि अब कम भारतीय छात्र कनाडा में पढ़ाई करना पसंद करेंगे।
कनाडा सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में कनाडा में 8 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से लगभग 40 प्रतिशत भारतीय हैं।भारतीय छात्रों द्वारा दी जाने वाली फीस निजी कॉलेजों द्वारा कनाडाई छात्रों से ली जाने वाली फीस से तीन से पांच गुना अधिक है। एक तरह से, कनाडा का पूरा निजी कॉलेज इको सिस्टम भारतीयों द्वारा वित्त पोषित है और अगर भारत सरकार ने छात्रों के कनाडा जाने पर अंकुश लगाने का फैसला किया तो वह ध्वस्त हो जाएगा।
कनाडा के महालेखा परीक्षक बोनी लिसिक ने भी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के धन पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कनाडाई अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम को चिह्नित किया था।2021 की एक रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि जोखिम सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कुछ देशों के छात्र कनाडा नहीं जा पाएंगे तो राजस्व में अचानक और भारी गिरावट आ सकती है।
छात्रों ने रियल्टी, गिग इकोनॉमी को बनाए रखा है
इंडिया टुडे वेबसाइट की यह रिपोर्ट कहती है कि कनाडा सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में कनाडा में 5.5 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से 2.26 लाख छात्र भारत से थे। और 3.2 लाख भारतीय छात्र वीजा पर कनाडा में रह रहे थे, और इसकी अर्थव्यवस्था में मदद कर रहे थे।छोटी-छोटी नौकरियों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में उनका योगदान उनकी कमाई से कहीं अधिक है। और यह योगदान किसी भी व्यापार डेटा में शामिल नहीं है। छात्र न केवल 30 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष के साथ निजी कॉलेज इको सिस्टम को बढ़ावा देते हैं, बल्कि वे रियल एस्टेट बाजार को बनाए रखने में भी मदद करते हैं। ये छात्र कनाडा की गिग अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा है।
ये भारतीय छात्र कनाडा सरकार को न्यूनतम वेतन 15 डॉलर प्रति घंटा बनाए रखने में मदद करते हैं। कनाडा, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है जिसकी आबादी सिर्फ 4 करोड़ है जो दिल्ली से भी कम है। अगर भारत से आने वाले लोगों के प्रवाह को रोक दिया गया तो कनाडा में श्रम लागत आसमान छू जाएगी। ये अंतर्राष्ट्रीय छात्र आतिथ्य, खुदरा और कई अन्य क्षेत्रों में कम वेतन वाली श्रमिक नौकरियां करते हैं। भारतीय छात्रों और श्रमिकों के बिना कनाडा की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है।
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पहले भी करोड़ों डॉलर का हो चुका है नुकसान
2015 में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद राजनयिक विवाद के कारण सऊदी अरब और कनाडा के रिश्तों में कड़वाहट आ गई थी। इसके बाद सऊदी अरब ने अपने 15,000 से अधिक छात्रों को कनाडा छोड़ने का आदेश दे दिया था। सऊदी अरब के फैसले से कनाडाई अर्थव्यवस्था को करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ था।2015 में 11,650 छात्रों के साथ सऊदी अरब कनाडा में दीर्घकालिक अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का छठा सबसे बड़ा स्रोत था। वहीं 2022 के आंकड़े के मुताबिक भारत सबसे बड़ा समूह है।इस फैसले से कनाडा के विश्वविद्यालयों को कितना नुकसान हुआ था इसे इस बात से समझा जा सकता है कि सऊदी अरब के छात्रों के जाने से कनाडा में लॉरेंटियन विश्वविद्यालय दिवालिया हो गया था।
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