राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कृषि क़ानूनों को रद्द करने वाले बिल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इसके साथ ही ये क़ानून पूरी तरह रद्द हो गए हैं।
संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन यानी बीते सोमवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि क़ानूनों को रद्द करने का बिल लोकसभा और राज्यसभा में रखा था और यह दोनों सदनों से पास हो गया था।
बीते बुधवार को हुई मोदी कैबिनेट की बैठक में इन क़ानूनों को रद्द करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई थी। इन क़ानूनों का किसानों और विपक्ष ने जोरदार विरोध किया था और आख़िरकार सरकार को इस मुद्दे पर बैकफ़ुट पर आना ही पड़ा।
हालांकि केंद्र सरकार ने संसद में कृषि क़ानून वापस ले लिए हैं लेकिन किसानों ने कहा है कि वे एमएसपी सहित बाकी मांगों के पूरा होने तक अपना आंदोलन जारी रखेंगे।
किसानों की अन्य मांगों में बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेना, आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मुक़दमों को वापस लेना, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी सहित कुछ और मांगें शामिल हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस कृषि क़ानूनों के रद्द होने से पहले संसद में चर्चा करना चाहती थी लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया और इससे पता चलता है कि सरकार चर्चा से डरती है और सरकार जानती थी कि उसने ग़लत काम किया है।
बीजेपी नेताओं का विरोध
किसान आंदोलन के कारण बीजेपी के नेताओं को जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा था। पंजाब में तो बीजेपी के नेताओं का छोटे-छोटे कार्यक्रम तक करना मुश्किल हो गया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी कई जगहों पर बीजेपी नेताओं का गांवों में घुसना मुश्किल हो गया था।
बीजेपी नेतृत्व और मोदी सरकार के पास किसान आंदोलन के बारे में बहुत साफ फ़ीडबैक था कि यह पांच राज्यों के चुनाव में भारी पड़ सकता है। ऐसे में मोदी सरकार को किसानों और विपक्ष के राजनीतिक दबाव के आगे झुकते हुए उनकी मांगों को मानना ही पड़ा।
अपनी राय बतायें