क्या समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) राष्ट्र- विरोधी है? क्या एक निष्पक्ष समाचार एजेंसी को राष्ट्र-विरोधी कहने का हक़ किसी को है? अभिव्यक्ति की आज़ादी और मीडिया की स्वतंत्रता की बात करने वाले प्रसार भारती को क्या यह हक़ है कि वह पीटीआई को राष्ट्र- विरोधी क़रार दे?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि प्रसार भारती ने पीटीआई को राष्ट्र-विरोधी बताया है।
चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्री ने शुक्रवार यानी 26 जून को उम्मीद जताई कि 'चीन तनाव कम करने और इलाक़ा खाली करने में अपनी ज़िम्मेदारी समझेगा और एलएसी में अपनी तरफ पीछे हट जाएगा।' पीटीआई ने उनके इस बयान को ट्वीट किया। आप भी देखिए वह ट्वीट।
मिस्री ने अपने बयान से इनकार नहीं किया है। लेकिन इसमें पेच यह है कि यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के उलट है जिसमें उन्होंने कहा था कि 'भारत की सीमा के अंदर न कोई घुसा है न ही घुस कर बैठा हुआ है।'
पीटीआई को धमकी
इसके बाद प्रसार भारती ने कहा कि वह एक कड़ी चिट्ठी पीटीआई को लिख कर इस पर आपत्ति जताने जा रहा है।
'द वायर' के अनुसार, प्रसार भारती के एक अफ़सर ने कहा, 'पीटीआई की राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग की वजह से यह स्वीकार्य नहीं है कि उसके साथ संबंध बरक़रार रखा जाए। पीटीआई के व्यवहार की वजह से प्रसार भारती उसके साथ संबंध पर पुनर्विचार कर रहा है। उसे जल्द ही अंतिम फ़ैसले की जानकारी दे दी जाएगी।'
प्रसार भारती का यह भी कहना है कि वह पीटीआई को फ़ीस के रूप में हर साल मोटी रकम देता है और अब तक करोड़ों रुपए उसे दे चुका है।
चीनी राजदूत का इंटरव्यू
इसके पहले पीटीआई ने दिल्ली में चीनी राजदूत सुन वेईदोंग का इंटरव्यू प्रसारित किया था। चीनी दूतावास ने इसका एक संपादित छोटा सा हिस्सा प्रकाशित किया। इसके बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पूरा इंटरव्यू देखे बग़ैर ही अपनी प्रतिक्रिया दी।
इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि भारतीय राजदूत विक्रम मिस्री ने अब तक अपने कहे का खंडन नहीं किया है। इसका अर्थ यही है कि पीटीआई ने जो ट्वीट किया, मिस्री ने वह कहा था। यदि मिस्री ने जो कुछ कहा था, पीटीआई ने वही ट्वीट किया था, तो इसमें ग़लत क्या है, सवाल तो यह है।
पीटीआई स्वतंत्र ट्रस्ट है, जो इसकी सेवाएं लेने वालों के दिए पैसे यानी फीस से चलता है।
नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के कुछ दिन बाद ही पीटीआई पर शिंकजा कसने और वहाँ अपना आदमी बैठाने की कोशिश की थी, जिसे पीटीआई ने खारिज कर दिया था।
पीटीआई पर शिंकजा
'द वायर' की ख़बर पर भरोसा किया जाए तो 2016 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पीटीआई के निदशक मंडल में अपने चहेते तीन पत्रकारों को बैठाना चाहा था। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के मौजूदा प्रेस सचिव अशोक मलिक, हिन्दुस्तान टाइम्स के शिशिर गुप्ता और फाइनेंशियल क्रॉनिकल्स के के. ए. बदरीनाथ को पीटीआई में बैठाना चाहा था।
पर पीटीआई के निदेशक मंडल ने इन प्रस्तावों को खारिज कर दिया। पीटीआई को यह लगा था कि ये तीनों पत्रकार राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान के नज़दीक हैं।
अब एक बार फिर सरकार ने प्रसार भारती के जरिए पीटीआई पर हमला किया है। प्रसार भारती के पास दूरदर्शन के सभी चैनल हैं, ऑल इंडिया रेडियो भी है। यह सच है कि पीटीआई को इससे अच्छी खासी रकम फीस के रूप में मिलती है। इसलिए उसे डराने की कोशिश की जा रही है कि उसकी सेवाएं नहीं ली जाएंगी और उसे वह पैसे नहीं मिलेंगे। ज़ाहिर है, पीटीआई को अपना काम काज चलाने में दिक्क़त होगी।
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