देश भर में नागरिकता क़ानून यानी सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शन के बीच पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक कार्यक्रम में तानाशाही, असहमति, शांतिपूर्ण प्रदर्शन और लोकतंत्र जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। हालाँकि उन्होंने न तो नागरिकता क़ानून और न ही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी या राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर का ज़िक्र किया। लेकिन उन्होंने लोकतंत्र में असहमति यानी विरोध का महत्व बताने के क्रम में कहा कि देश भर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतंत्र को तरोताज़ा कर देंगे।
प्रदर्शनों से लोकतंत्र होगा मज़बूत: प्रणब मुखर्जी
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- 24 Jan, 2020
देश भर में नागरिकता क़ानून यानी सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शन के बीच पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक कार्यक्रम में तानाशाही, असहमति, शांतिपूर्ण प्रदर्शन और लोकतंत्र जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया।

पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी दिल्ली में गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा, 'सहमति लोकतंत्र की जीवनदायिनी है। लोकतंत्र सुनने, विचार करने, चर्चा करने, बहस करने, यहाँ तक कि असहमति रखने पर पनपता है... आत्मसंतुष्टि तानाशाही प्रवृत्ति को जड़ जमाने में सक्षम बनाती है।' 'पीटीआई' के अनुसार, उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र हर बार खरा उतरा है। प्रणब मुखर्जी ने यह भी कहा कि पिछले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में, ख़ासकर, युवा अपने विचार व्यक्त करने के लिए सड़कों पर आए हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत के संविधान में उनकी दृढ़ता और आस्था अभिभूत करने वाली है।