ट्रेन कोई भी हो हावड़ा जंक्शन के प्लेटफार्म पर भीड़ कभी कम नहीं होती। 26 नवंबर 1933 की दोपहर जब अमरेंद्र पांडेय पाकुड़ के लिए ट्रेन पकड़ने पहुँचा तो उसे उसका सौतेला भाई बिनोयेंद्र चंद्र पांडेय भी वहीं टहलता नज़र आया।