चेचक की महामारी तब दुनिया में हर कहीं पहुंच चुकी थी। भारत में काम करने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज कर्मचारियों की सबसे बड़ी प्राथमिकता होती थी, खुद को और अपने परिवार को चेचक व हैजे जैसी महामारियों से बचाना। यह बात अलग है कि चेचक की महामारी उनके अपने देश में भी बुरी तरह फैली हुई थी और वहां भी उसका कोई इलाज नहीं था।

मानव श्रृंखला बनाकर चेचक की वैक्सीन को किस तरह भारत तक पहुँचाया गया, यह एक बेहद दिलचस्प कहानी है।
बल्कि उसके मुकाबले भारत में उम्मीद की एक किरण थी और यह बच्चों को शीतला माता का टीका लगाने के अनुष्ठान के रूप में थी। इसमें चेचक के किसी रोगी यानी दूसरे शब्दों में जिस पर माता आई हो, उसके घावों में सुई चुभो कर उस सुई को स्वस्थ बच्चे के शरीर में चुभोया जाता था। इस अनुष्ठान का जो ब्योरा उपलब्ध है, उसके मुताबिक़ जिस स्वस्थ बच्चे को यह सुई चुभोई जाती थी, उसे कुछ समय के लिए बुखार आता था। यह भी कहा जाता है कि उसके बाद उसे कभी यह महामारी नहीं होती थी।