चेचक की महामारी तब दुनिया में हर कहीं पहुंच चुकी थी। भारत में काम करने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज कर्मचारियों की सबसे बड़ी प्राथमिकता होती थी, खुद को और अपने परिवार को चेचक व हैजे जैसी महामारियों से बचाना। यह बात अलग है कि चेचक की महामारी उनके अपने देश में भी बुरी तरह फैली हुई थी और वहां भी उसका कोई इलाज नहीं था।