प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया सहित पत्रकारों के कई संगठनों ने मीडिया संस्थानों, भारतीय पत्रकारों, एक्टिविस्टों, मंत्रियों, सांसदों और जजों की कथित जासूसी की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि उन्हें लगता है कि नागरिकों की जासूसी करने से लोकतंत्र कमजोर होता है। इसी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि इसीलिए यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह पेगासस स्पाइवेयर पर उठ रहे संदेहों को दूर करे और इस मामले में वह ख़ुद को साफ़-सुथरा साबित करे।
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया यानी पीसीआई ने गुरुवार को यह बयान जारी किया है। यह बयान पीसीआई के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड, दिल्ली पत्रकार संघ, इंडियन वीमेंस प्रेस कोर, वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन, आईजेयू और विभिन्न मीडिया संगठनों की ओर से जारी किया गया।
पत्रकारों के संगठनों का यह बयान तब आया है जब इजराइली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर पर हंगामा मचा है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसके माध्यम से दुनिया भर में लोगों पर जासूसी कराई गई। दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। ये नंबर मंत्री, विपक्ष के नेता, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।
इतने बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों के नाम आने को लेकर ही पत्रकारों ने इस मामले में जाँच की मांग की है। प्रेस क्लब की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ऐसी निगरानी के लिए लोगों के प्रति सरकार जवाबदेह है और उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि भारतीय नागरिकों की अवैध जासूसी नहीं हो पाए।
बयान में कहा गया है कि पत्रकारों के संगठन मानते हैं कि पत्रकारों, नागरिक समाज, मंत्रियों, सांसदों और न्यायपालिका पर ऐसी निगरानी सत्ता का पूरी तरह दुरुपयोग है और इसे तुरत रोका जाना चाहिए। इसने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में ऐसी नियंत्रित निगरानी नहीं की जा सकती है।
The PCI, @IndEditorsGuild, Delhi Union of Journalists, @iwpcdelhi, Working News Cameraman Association, IJU, and various media organisations, strongly condemn the surveillance mounted on Indian journalists, activists, ministers, parliamentarians
— Press Club of India (@PCITweets) July 22, 2021
and members of the judiciary. pic.twitter.com/9LOvXc46Fd
पत्रकारों के संगठनों ने चेताया है कि भारतीय नागरिकों की पेगासस स्पाइवेयर से जासूसी कराना भारतीय संप्रभुता को ख़तरे में डालेगा और इसलिए यह ज़रूरी है कि भारत सरकार इसमें दखल दे और साफ़ करे कि यह कैसे और क्यों हुआ। बयान में साफ़ तौर पर कहा कहा गया है, 'हम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जासूसी की जाँच किए जाने की मांग करते हैं। मीडिया संस्थान लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक विकल्प का उपाए भी तलाशेंगे।'
बता दें कि पत्रकारों के संगठनों की ओर से ऐसी प्रतिक्रिया तब आई है जब सरकार की ओर से अभी तक साफ़-साफ़ यह नहीं माना गया है कि पेगासस की भूमिका है या नहीं। इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने पर जहाँ सरकार की ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं वहीं ख़बर यह भी आई है कि फ़ोरेंसिक जांच में कई फ़ोन इन्फ़ेक्टेड पाए गए हैं।
'वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 22 स्मार्टफ़ोन की फोरेंसिंक जाँच की गई। जाँच में पता चला कि 10 को एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाया गया। इनमें से 7 फ़ोन इन्फ़ेक्टेड पाए गए। यानी उन फ़ोन में स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने के सबूत मौजूद थे। 12 मामलों में परिणाम साफ़ नहीं आए क्योंकि हैकिंग के बाद इन्फ़ेक्शन का पता लगाने के लिए जो लॉग यानी आँकड़े या डाटा चाहिए होते हैं वे नहीं मिले। इन 12 में से 8 फ़ोन तो एंड्राइड थे।
'द वायर' ने दो दिन पहले ही एक रिपोर्ट में कहा है कि इन नंबरों से जुड़े कुछ फ़ोन पर किए गए फोरेंसिक परीक्षणों से पता चला कि 37 फोन में पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने के साफ़ संकेत मिले थे इनमें से 10 भारतीय हैं।
यह साफ़ है कि इन मीडिया संस्थानों ने उन फ़ोन नंबरों को लीक हुए दस्तावेज के आधार पर छापा है। उनमें से किन फ़ोन नंबरों को निशाना बनाने में सफलता मिली, यह तकनीकी विश्लेषण के बाद ही पता चलेगा। इसका मतलब है कि संबंधित फ़ोन को फोरेंसिंक जाँच के लिए देने के बाद ही निर्णायक रूप से यह बताना संभव हो सकेगा कि फ़ोन को इन्फ़ेक्ट किया गया था या नहीं।
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