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विपक्ष ने किया 'एक देश, एक चुनाव' का विरोध, कहा- देश हित में नहीं

फिर से 'एक देश, एक चुनाव' का शोर है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जहाँ इस पर रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है, वहीं विपक्ष ने इस रिपोर्ट का विरोध किया है। विपक्ष ने कहा है कि 'एक देश, एक चुनाव' केवल ध्यान भटकाने के लिए भाजपा की चाल है। उन्होंने इसे संघवाद के ख़िलाफ़ बताया है और कहा है कि यह देश हित में नहीं है।

विपक्ष की यह प्रतिक्रिया तब आई जब केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया को बताया कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले पैनल की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया है। कांग्रेस ने कहा है कि यह योजना व्यावहारिक नहीं है। पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे 'जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश' बताया है। खड़गे ने हरियाणा के लिए घोषणापत्र जारी करते हुए कहा, 'जब चुनाव आते हैं, तो उन्हें उठाने के लिए कोई मुद्दा नहीं मिलता। इसलिए वे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाते हैं।' बाद में उन्होंने एक्स पर भी कुछ ऐसी ही बात कही। 

कांग्रेस प्रमुख ने कहा, "एक देश, एक चुनाव केवल ध्यान भटकाने के लिए भाजपा की चाल है। यह संविधान के खिलाफ है, यह लोकतंत्र के विपरीत है, यह संघवाद के खिलाफ है। देश इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा।"

सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि कई विशेषज्ञों ने कहा है कि मौजूदा संविधान के तहत इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। डी राजा ने कहा, 'एक देश एक चुनाव अव्यावहारिक और अवास्तविक है। कई विशेषज्ञों ने कहा है कि मौजूदा संविधान के तहत इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। जब संसद की बैठक होगी तो हमें इस पर विस्तृत जानकारी मिलनी चाहिए। अगर इसे आगे बढ़ाया जाता है तो हमें इसके परिणामों का अध्ययन करना होगा।'

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राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने कहा कि "हम एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार का विरोध करते हैं। अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि परामर्श के दौरान 80 प्रतिशत लोगों ने इसका समर्थन किया। हम जानना चाहते हैं कि 80 प्रतिशत लोग कौन हैं। क्या किसी ने हमसे कुछ पूछा या हमसे बात की?"

आप सांसद संदीप पाठक ने सरकार से सवाल किया कि क्या यह राज्यों को अस्थिर करने की एक भयावह योजना है? उन्होंने कहा, 'कुछ दिन पहले, चार राज्यों के चुनावों की घोषणा होनी थी, लेकिन उन्होंने केवल हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के लिए चुनावों की घोषणा की और महाराष्ट्र और झारखंड को छोड़ दिया। यदि वे चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा सकते, तो वे पूरे देश में एक साथ चुनाव कैसे कराएंगे... क्या होगा यदि कोई राज्य सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले गिर जाती है? क्या उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा? क्या यह राज्यों को अस्थिर करने की एक भयावह योजना है?' 

समाजवादी पार्टी के नेता रविदास मल्होत्रा ​​ने सुझाव दिया कि यदि सरकार 'एक देश, एक चुनाव' लागू करना चाहती है, तो भाजपा को एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए।

जेएमएम प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार के फैसले हमें साम्राज्यवाद की ओर धकेल रहे हैं। भट्टाचार्य ने कहा, 'यह देश संघीय ढांचे से चलता है। ये फैसले हमें साम्राज्यवाद की ओर धकेल रहे हैं। यह न तो संभव है और न ही व्यावहारिक... यह संविधान पर हमला है।' 

इससे पहले आज कैबिनेट ने सरकार के 'एक देश, एक चुनाव' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसमें लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है। साथ ही 100 दिनों के भीतर शहरी निकाय और पंचायत चुनाव कराने का प्रस्ताव है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च पैनल समिति की रिपोर्ट में ये सिफारिशें की गई थीं। 18,626 पन्नों की यह रिपोर्ट 2 सितंबर, 2023 को उच्च स्तरीय समिति के गठन के बाद से 191 दिनों में हितधारकों, विशेषज्ञों और शोध कार्यों के साथ व्यापक विचार-विमर्श का परिणाम है। प्रस्ताव अब संसद में पेश किया जाएगा और इसे कानून बनने से पहले दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में मंजूरी मिलनी चाहिए।

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इसे लागू करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, क्योंकि इसमें संविधान में संशोधन शामिल है। इसे लागू करने के लिए कम से कम छह संशोधनों की आवश्यकता होगी। इसके बाद इसे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अनुमोदित किया जाना है।

हालांकि एनडीए के पास संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत है, लेकिन किसी भी सदन में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना एक चुनौती साबित हो सकता है। राज्यसभा की 245 सीटों में से एनडीए के पास 112 और विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं। दो-तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोटों की ज़रूरत है।

लोकसभा में भी एनडीए के पास 545 सीटों में से 292 सीटें हैं। दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 364 है। लेकिन स्थिति अलग हो सकती है, क्योंकि बहुमत केवल उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के आधार पर ही गिना जाएगा।

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क़मर वहीद नक़वी
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