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मंगलवार को जयपुर में एक कार्यक्रम में पीएम मोदी।

पीएम मोदी ही 'एक देश एक चुनाव' को लेकर गंभीर नहीं हैं?

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही अपनी 'एक देश एक चुनाव' योजना को लेकर गंभीर नहीं हैं? जब एक देश एक चुनाव विधेयक संसद में पेश किया जा रहा था तो प्रधानमंत्री मोदी संसद को छोड़कर जयपुर में क्यों थे? वह भी तब जब बीजेपी ने सभी सांसदों के लिए व्हिप जारी किया था। यह व्हिप एक देश एक चुनाव विधेयक को संसद में पेश किए जाने और इसके पक्ष में वोटिंग करने के लिए था। व्हिप का उल्लंघन करने पर संसद सदस्यता तक ख़तरे में पड़ सकती है।

मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से ख़बरें हैं कि मंगलवार को बीजेपी द्वारा व्हिप जारी किए जाने के बावजूद इसके 20 सांसद संसद में उपस्थित नहीं थे। इनमें नितिन गडकरी, गिरिराज सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नाम हैं। हालाँकि, यह साफ़ नहीं है इन 20 सांसदों में ही पीएम का नाम है या नहीं। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को लोकसभा में अनुपस्थित रहने वाले सांसदों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाने वाली है और नोटिस तैयार किया जा रहा है। हालाँकि, रिपोर्टों में यह साफ़ नहीं है कि क्या इसमें पीएम मोदी का भी नाम शामिल होगा। 

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माना जा रहा है कि एक देश एक चुनाव मोदी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है और इसको वह किसी भी तरह लागू कराना चाहती है। केंद्र सरकार लंबे समय से यह दावा करती आ रही है कि यह चुनाव सुधार की दिशा में एक बड़ा क़दम है। इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए, सितंबर 2023 में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'एक देश एक चुनाव' की संभावनाएं तलाशने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई।

इस समिति ने 191 दिनों की रिसर्च के बाद 18 हज़ार से ज़्यादा पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की। सितंबर 2024 में प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने समिति की सिफ़ारिशों को मंजूरी दी। 

सरकार ने इस विधेयक को कितनी प्राथमिकता दी है, यह इससे भी साफ़ होता है कि विपक्षी दलों द्वारा इसका जोरदार विरोध किए जाने के बावजूद सरकार अड़ी हुई है। विपक्ष ने इस विधेयक को संविधान विरोधी, अलोकतांत्रिक, भारत के संघीय ढाँचे पर हमला क़रार दिया है, इसके बावजूद सरकार चुनाव ख़र्च में कमी आने का दावा करते हुए इसको देशहित में बता रही है। 
देश भर में एक साथ चुनाव कराने के सरकार के प्रयास में यह विधेयक तैयार किया गया है। इसे विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने तीखी बहस के बीच लोकसभा में पेश किया। लेकिन पीएम मोदी ही अनुपस्थित रहे।

विपक्ष ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे तानाशाही और भारत के संघीय ढांचे पर हमला बताया। विरोध के बावजूद संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 90 मिनट की बहस और मत विभाजन के बाद 269 सांसदों ने पक्ष में और 198 सांसदों ने विपक्ष में वोट किया।

बता दें कि संविधान संशोधन विधेयक को पेश करने के लिए साधारण बहुमत की ज़रूरत होती है, लेकिन इसे पारित करने के लिए सरकार को सदन में दो-तिहाई बहुमत हासिल करना होगा।

तो सवाल है कि क्या बीजेपी ने इसको देखते हुए ही व्हिप जारी किया था? यदि व्हिप जारी किया था तो कई सांसद उपस्थित क्यों नहीं हुए, वह भी तब जब व्हिप का उल्लंघन करने पर कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है? 

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संसद में व्हिप किसी पार्टी के सदस्यों के लिए जारी एक लिखित आदेश है जो उन्हें सदन में मौजूद रहने और संबंधित पक्ष में वोटिंग के लिए दिया जाता है। व्हिप जारी होते ही पार्टी के सदस्य इससे बंध जाते हैं। उन्हें इसे मानना ही होता है। हर पार्टी एक सदस्य को इसके लिए नियुक्त करती है जो चीफ व्हिप कहलाता है।

यदि कोई सदस्य पार्टी व्हिप की अवमानना करता है और उसे नहीं मानता है तो उसकी संसद सदस्यता या विधायकी ख़तरे में पड़ सकती है। दलबदल-रोधी कानून के तहत उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। हालाँकि, किसी पार्टी के एक तिहाई सदस्य व्हिप को तोड़ते हुए अगर पार्टी लाइन के खिलाफ भी वोट करते हैं तो इसे मान लिया जाता है कि वो पार्टी से टूटकर नई पार्टी बना चुके हैं।

विपक्ष ने दावा किया है कि एक देश एक चुनाव विधेयक बहुमत हासिल करने में विफल रहा। कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने कहा है कि सरकार दो तिहाई बहुमत हासिल करने के लिए ज़रूरी कुल 461 में से 307 वोट जुटाने में विफल रही।

शशि थरूर ने कहा कि आज की स्थिति में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पास 293 सांसद हैं, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के पास 234 हैं। 

ज़रूरी दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने के लिए भाजपा को असंबद्ध दलों से समर्थन की ज़रूरत होगी, वह भी तब जब उसके सभी सांसद उपस्थित होंगे और मतदान कर रहे होंगे। इस स्थिति में पार्टी वाईएसआर कांग्रेस और अकाली दल से समर्थन पर निर्भर हो सकती है, दोनों ने अपना समर्थन देने का वादा किया है।

जिस मोदी सरकार को विधेयक को पास कराने के लिए बाहरी दलों पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जो विधेयक मोदी सरकार के लिए एक तरह से ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिस विधेयक के लिए बीजेपी ने व्हिप तक जारी किया, उसके पेश किए जाने के दौरान खुद पीएम तक अनुपस्थित क्यों रहे? क्या इससे ज़्यादा ज़रूरी पीएम को जयपुर में रोड शो और रैली करना था? क्या इससे पीएम की गंभीरता का पता नहीं चलता है?

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क़मर वहीद नक़वी
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