लीजिए, अब सरकार के बड़े अधिकारी ने भी 'नये संविधान' की मांग रख दी! पहले मोदी सरकार के विरोधी तंज में कहते थे कि आप तो संविधान ही बदल देंगे, अब सरकार के बड़े ओहदे पर बैठे अधिकारी- प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने 'नये संविधान' की बात कह दी। विवाद तो होना ही था। विवाद हुआ तो प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने खुद को उस बयान से अलग कर लिया। अब खुद बिबेक देबरॉय सफाई देते फिर रहे हैं। तो सवाल है कि अब मोदी सरकार के बड़े ओहदे वाले अधिकारी द्वारा 'नये संविधान' की बात क्यों कही जा रही है? वह भी अख़बार में लेख लिखकर? क्या कुछ लोगों को लगता है कि मौजूदा संविधान में 'भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य' की बात ठीक नहीं है?