नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) के मुद्दे पर भारत ही नहीं विदेशी मीडिया में भी काफ़ी कुछ लिखा जा रहा है। यह मुद्दा बेहद गंभीर है क्योंकि 19 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें यह साबित करना है कि वे भारतीय हैं या नहीं और इसके लिए उनके पास सिर्फ़ 120 दिन का समय है और उनके दावों की जाँच फ़ॉरनर्स ट्रिब्यूनल के द्वारा की जानी है।
विस्थापित होने की कगार पर खड़े या आसान भाषा में कहें तो विदेशी कहकर भारत से निकाले जाने वाले लोगों का दुख निश्चित रूप से बहुत बड़ा है और इसलिए विदेशी मीडिया ने भी इस पर काफ़ी कुछ लिखा है। एनआरसी की फ़ाइनल सूची का प्रकाशन 31 अगस्त को हो चुका है और 19 लाख लोग इससे बाहर हो गए हैं जबकि 3,11,21,004 लोगों को इसमें जगह मिली है। एनआरसी की फ़ाइनल सूची में नाम न आने से लोग बेहद परेशान हैं और कई लोगों के आत्महत्या करने की ख़बरें असम से आ रही हैं। आइए, देखते हैं कि विदेशी मीडिया इस बारे में क्या कह रहा है।
‘आगे क्या होगा पता नहीं’
अंग्रेजी अख़बार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने ‘भारतीय राज्य में नागरिकता सूची से लगभग 20 लाख लोग बाहर’ शीर्षक से एक लंबा लेख लिखा है। अख़बार ने लेख में इसके नतीजों/परिणामों पर चर्चा की है। यह भी लिखा गया है कि ऐसा घुसपैठियों को बाहर करने के लिए किया गया है। अख़बार ने अपने लेख में सायरा बेगम नाम की महिला का जिक्र किया है जिसके बारे में ख़बर आई है कि एनआरसी में नाम न आने की ख़बर सुनकर वह एक कुएँ में कूद गईं और उन्हें खींचकर बाहर निकाला गया। जबकि सायरा का नाम लिस्ट में था।
अख़बार ने अपने लेख में कई परेशान लोगों के दर्द को भी जगह दी है। अख़बार ने भारत की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार और गृह मंत्री अमित शाह की ओर से पूर्व में दिए गये बयानों के बारे में लिखा है - ‘भारत के ताक़तवर गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्व में बांग्लादेशी आप्रवासियों को ‘घुसपैठिया’ और ‘दीमक’ कहा था।’
‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने यह भी कहा है कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने असम में नागरिकता प्रोजेक्ट का पूरी तरह समर्थन किया और वह कई बार पूरे देश में ऐसी ही योजना लाने के बारे में बात करती रही है।
‘मानवता पर आ सकता है संकट’
अंग्रेजी अख़बार ‘द गार्डियन’ ने एनआरसी पर लिखी गई अपनी ख़बर में कहा है कि दक्षिणपंथी संगठनों की ओर से मानवता पर संकट आने का ख़तरा है और जो लोग इस सूची से बाहर रह गए हैं उन्हें नज़रबंद होने का सामना करना पड़ सकता है। अख़बार ने इस सूची में आने से रह गए लोगों के इंटरव्यू को भी जगह दी है, साथ ही इससे नाराज़ सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों की राय के बारे में लिखा है। यह लेख एनआरसी की सूची में ऐसे लोगों के लिए जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं हैं और मुसलमानों की ख़राब स्थिति के बारे में भी बात करता है।
इसमें लिखा है, ‘यह बेहद चिंतित करने वाली बात है कि मुसलिम समुदाय इससे बुरी तरह प्रभावित होगा। एनआरसी से अलग सत्तारुढ़ बीजेपी नागरिकता संशोधन बिल लाने की तैयारी में है और इसका मक़सद पड़ोसी देशों में रह रहे हिंदू, सिख, बौद्ध और अन्य दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देना है लेकिन इसमें मुसलमानों का नाम नहीं है।’
‘अमित शाह ने कहा था दीमक’
न्यूज़ चैनल अल जज़ीरा ने जो लोग एनआरसी से बाहर रह गए हैं उन्हें इसकी क़ानूनी प्रक्रिया से होने वाली परेशानियों के बारे में बात की है। चैनल के मुताबिक़, ‘नई दिल्ली के एक समूह के निदेशक सुहास चकमा ने अल जज़ीरा को बताया कि इस बारे में अपील करने का समय बेहद कम है। आप कल्पना कीजिए कि फ़ॉरनर्स ट्रिब्यूनल को सिर्फ़ 120 दिन दिये गए हैं और उनके पास बीस से तीस लाख मामले हैं। अपने पक्षपातपूर्ण फ़ैसलों के लिए फ़ॉरनर्स ट्रिब्यूनल की आलोचना होती रही है।’
इस बात को लेकर भी हैरानी जताई गई है कि क्या भारत में सत्तारुढ़ पार्टी असम की कुल आबादी के एक-तिहाई मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए इस सूची का प्रयोग कर रही थी।
अल जज़ीरा ने कहा कि भारत के ताक़तवर गृह मंत्री अमित शाह जो एनआरसी को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाहते हैं, उन्होंने एक बार आप्रवासियों को दीमक कहा था और बाद में एक बीजेपी नेता ने उनके बयान का समर्थन भी किया था।
‘इनमें से कोई बांग्लादेशी नहीं’
बांग्लादेश के अख़बार ‘द डेली स्टार’ ने एनआरसी को लेकर ‘इनमें से कोई बांग्लादेशी नहीं’ शीर्षक से ख़बर लिखी है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमीन के बयान के हवाले से अख़बार ने लिखा है, ‘मुझे नहीं लगता कि जो लोग एनआरसी से बाहर रह गए हैं, वे बांग्लादेशी हैं।’ ख़बर में मंत्री के हवाले से यह भी कहा गया है, ‘एनआरसी भारत का आंतरिक मामला है और हमें इससे चिंतित होने की कोई ज़रूरत नहीं है।’ डेली स्टार ने सीमा पर तैनात बांग्लादेशी अधिकारियों के हवाले से कहा है कि एनआरसी की फ़ाइनल सूची आने के बाद भारत के साथ लगने वाली सीमा पर सतर्कता बढ़ा दी गई है।
विस्थापित होने की कगार पर खड़े लोगों का दर्द इस तरह भारत से बाहर भी पहुँचा है। लेकिन अख़बारों ने जिस तरह गृह मंत्री अमित शाह के बयानों को कोट किया है, उससे यह साफ़ पता चलता है कि भारत में किसी भी समुदाय या धार्मिक रूप से अल्पसंख्यकों के साथ होने वाली किसी भी घटना पर देश से बाहर भी चर्चा होती है।
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