अभी तक क्या व्यवस्था है
- अनुच्छेद 105(2) संसद सदस्यों को संसद या किसी संसदीय समिति में उनके द्वारा कही गई किसी भी बात या दिए गए वोट के संबंध में मुकदमा चलाए जाने से छूट प्रदान करता है।
- इसी तरह अनुच्छेद 194(2) विधान सभा सदस्यों को समान सुरक्षा प्रदान करता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों कानूनों और नियमों को सोमवार 4 मार्च 2024 को रद्द कर दिया।
लाइव लॉ के मुताबिक भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, पीवी संजय कुमार और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने यह फैसला आमराय से सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य के मामले में दिए गए एक विपरीत निर्णय को भी खारिज कर दिया। जिसमें उस समय कोर्ट ने कहा था कि विधायकों को सदन में एक निश्चित तरीके से मतदान करने के लिए रिश्वत लेने पर भी मुकदमा चलाने से छूट दी गई है। बता दें कि कुछ सांसदों पर आरोप लगा था कि 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नतीजे को प्रभावित करने के लिए उन्होंने रिश्वत ली थी। बाद में यह मामला अदालत पहुंचा था। फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा और लिखा-
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पीवी नरसिम्हा राव के फैसले के बहुमत और अल्पमत के फैसले का विश्लेषण करते समय, हम असहमत हैं और इस फैसले को खारिज कर रहे हैं कि सांसद छूट का दावा कर सकते हैं... इस केस में पीवी नरसिम्हा का बहुमत का फैसला जो विधायकों को छूट देता है, गंभीर खतरा है और इसलिए इसे खारिज कर दिया गया है।
-सुप्रीम कोर्ट, 4 मार्च 2024 सोर्सः लाइव लॉ
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हमारा मानना है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित नहीं है।
-सुप्रीम कोर्ट, 4 मार्च 2024 सोर्सः लाइव लॉ
लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इसे और भी साफ करते हुए कहा कि संसद में विचारों का मुक्त आदान-प्रदान ही अनुच्छेद 105 और 194 में प्रावधानों द्वारा संरक्षित हैं। लेकिन इसमें रिश्वतखोरी को कोई छूट नहीं मिली हुई है। अदालत ने कहा- "यह (भय या पक्षपात के बिना भाषण या कार्रवाई) तब छिन जाती है जब किसी सदस्य को रिश्वत के कारण एक निश्चित तरीके से वोट देने के लिए प्रेरित किया जाता है और यह भारतीय संवैधानिक लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है।"
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