5 मंत्री संभालेंगे मोर्चा
बहस के दौरान भाजपा की ओर से पांच मंत्री बोलेंगे- अमित शाह, निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, ज्योतिरादित्य सिंधिया और किरण रिजिजू। बहस में बीजेपी के पांच अन्य सांसद भी हिस्सा लेंगे।
सरकार का अजीबोगरीब तर्कः सरकार का तर्क है कि 1993 और 1997 में मणिपुर में बड़ी हिंसा होने के बावजूद एक भी मामले में संसद में कोई बयान नहीं दिया गया। दूसरे मामले में कनिष्ठ गृह मंत्री ने बयान दिया था। सूत्रों ने कहा कि सरकार का रुख यह है कि किसी मिसाल के अभाव में प्रधानमंत्री का बयान मांगने का कोई कारण नहीं है। लेकिन सरकार का यह तर्क अजीबोगरीब है। मणिपुर में इतना बड़ा जातीय संघर्ष कभी नहीं हुआ और न ही इतने लोगों की जान गई। मणिपुर पिछले तीन महीनों से अशांत है। वहां महिलाओं के नग्न परेड की घटना इससे पहले कभी नहीं हुई थी।
विपक्ष का तर्क है कि मई में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 170 से अधिक लोगों की मौत, घायल होने और हजारों लोगों के विस्थापन को देखते हुए, इससे अधिक जरूरी कुछ भी नहीं है जो प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित न कर सके।
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अविश्वास प्रस्ताव की बहस के दौरान नजरें इस बात पर रहेंगी कि सदन कितनी बार स्थगित होता है। अभी तक मॉनसून सत्र एक दिन भी ठीक से नहीं चल पाया है। विपक्ष के नेताओं के बोलने के दौरान सत्ता पक्ष के सांसद शोर मचाने लगते हैं। आज भी यही हाल हो सकता है।
सरकार को खतरा नहीं
लोकसभा में 570 की मौजूदा ताकत और 270 के बहुमत के आंकड़े के मुकाबले, एनडीए के पास 332 वोट हैं। इसके अलावा, ओडिशा की सत्तारूढ़ बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस एनडीए का समर्थन कर रही है। कुल मिलाकर, उनके पास 34 सांसद हैं, जिससे सरकार की संख्या 366 हो जाती है। संयुक्त विपक्ष भारत के पास केवल 142 सदस्य हैं। अभी सोमवार को राज्यसभा में दिल्ली सेवा विधेयक हुई वोटिंग के मामले में भी यही नजारा देखने को मिला था। इस तरह सरकार को खतरा नहीं है। लेकिन विपक्ष सरकार की जिस तरह बखिया उधेड़ने वाला है और उसका लाइव प्रसारण सरकारी चैनल पर सीधे होगा तो इस बात को लेकर सरकार थोड़ा परेशान है।
2018 में, पीएम मोदी को चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। प्रस्ताव गिर गया और सरकार को 325 वोट मिले। प्रस्ताव के पक्ष में केवल 126 वोट पड़े।
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