डिजिटल न्यूज़ से जुड़े सरकारी दिशा-निर्देश क्या सवाल न्यूज़ पोर्टल्स को नियंत्रित करने के लिये लाया गया है? डिजिटल न्यूज़ की संस्था डिजीपब ने सरकार की गाइडलाइन का विरोध किया है। उन्होंने सरकार से कहा है कि इससे उनकी स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा और वे अपना काम ठीक से नहीं कर पाएंगे।
डीजीपब यानी समाचार और करेंट अफ़ेयर्स से जुड़े प्रकाशकों ने सूचना व प्रसारण मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर कहा है कि दिशा निर्देश जारी करने से पहले उनसे राय-मशविरा किया जाना चाहिए था। क्विंटिलियॉन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की निदेशक ऋतु कपूर ने कहा, "डिजिटल न्यूज़ सामग्री से जुड़े सरकारी दिशा-निर्देश पर हमें गहरी आपत्तियाँ हैं।"
क्या है मामला?
उन्होंने कहा, "डिजिटल समाचार मीडिया पर प्रकाशित सामग्री सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून (आईटी एक्ट) के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। यह समाचार को एक वर्ग नहीं मानता है, इस कारण डिजिटल समाचार से जुड़े पोर्टल या कंपनी आईटी एक्ट के तहत इंटरमीडियरीज़ की श्रेणी में नहीं आते हैं।"
बता दें कि नए इनफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमेडियरीज़ एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम 2021, के तहत सरकार ओटीटी और डिजिटल समाचार के लिए एक आत्मनियामक (सेल्फ़ रेगुलेटरी) संस्था का गठन करेगी। यह निकाय आचार संहिता भी बनाएगी और उसकी निगरानी करेगी। यह संस्था अलग-अलग विभागों के लोगों को लेकर एक कमेटी बनाएगी, जो शिकायतों की जाँच करेगी।
यदि प्रकाशकों की आत्मनियामक संस्था शिकायतों का निपटारा नहीं कर सकेगी तो यह कमेटी करेगी। सूचना व प्रसारण मंत्रालय संयुक्त सचिव के स्तर का एक अफ़सर नियुक्त करेगा जो ज़रूरत पड़ने पर ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक कर सकेगा।
ऋतु कपूर ने 'लाइवमिंट' से कहा,
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"यह कहना सही नहीं है कि डिजिटल न्यूज़ मीडिया अनियंत्रित है। हम संविधान के अनुच्छेद 19 के अलावा नफ़रत फैलाने वालों के ख़िलाफ़, आपराधिक व अवमानना से जुड़े क़ानूनों से बंधे हुए हैं।"
ऋतु कपूर, निदेशक, क्विंटिलियॉन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड
क्यों हो रहा है विरोध?
उन्होंने यह भी कहा कि ओवरसाइट कमेटी व दिशा- निर्देश डिजिटल न्यूज़ सामग्री को अंतहीन लालफ़ीताशाही में उलझा सकता है और शिकायतकर्ताओं के हाथ में हथियार थमा दे सकता है, इसका नतीजा यह होगा कि डिजिटल मीडिया पर एक तरह की सेंसरशिप लग जाएगी।
'द वायर' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने 'लाइवमिंट' से कहा कि संविधान कार्यपालिका को यह अधिकार नहीं देता है कि वह यह तय करे कि कौन सी सामग्री मीडिया में छपने लायक है। उन्होंने कहा, "अंतर-विभागीय कमेटी को यह अधिकार देना कि वह यह तय करे कि मीडिया में क्या छपना चाहिए और क्या नहीं छपना चाहिए या उसे यह फ़ैसला करने का अधिकार देना कि किसी मीडिया कंपनी ने शिकायतकर्ता को सही जवाब दिया या नहीं, भारत में मीडिया की आज़ादी की हत्या करने जैसा होगा।"
क्या कहना है सरकार का?
याद दिला दें कि इसी हफ़्ते सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सोशल मीडिया कंपनियों का भारत में व्यापार करने के लिए स्वागत है, लेकिन इनके प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल नफ़रत फैलाने और फ़ेक न्यूज़ के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात के पूरी तरह ख़िलाफ़ है कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल हिंसा भड़काने या किसी अन्य ग़लत काम के लिए हो।
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इसके साथ ही उन्होंने नए नियमों का एलान किया। ये नियम इस तरह हैं :
- सोशल मीडिया कंपनियों को भारत के किसी शख़्स को कम्प्लायंस अफ़सर के रूप में तैनात करना होगा।
- अगर सोशल मीडिया कंपनियां किसी कंटेंट को हटाती हैं तो उन्हें यूजर्स को इसकी वजह बतानी होगी।
- सोशल मीडिया कंपनियों को यह बताना होगा कि कोई भ्रामक या शरारतपूर्ण मैसेज कहां से शुरू हुआ यानी इसे उनके प्लेटफ़ॉर्म पर किसने पोस्ट किया।
- सरकार संयुक्त सचिव या इससे ऊंचे स्तर के किसी अफ़सर को नियुक्त करेगी जो कंटेंट को ब्लॉक करने के बारे में निर्देश देगा।
- दर्शकों की उम्र के हिसाब से कंटेंट दिखाना होगा। 13 साल की उम्र से ज़्यादा, 16 साल की उम्र से ज़्यादा और व्यस्कों के लिए लिंग, हिंसा और न्यूडिटी के आधार पर तीन कैटेगेरी में कंटेंट तय करना होगा।
- इस बात के लिए मैकेनिज्म बनाना होगा कि बच्चे किसी ऐसे कंटेंट को न देख सकें जो उनके लिए नहीं है।
- इन नियमों के दायरे में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे बाक़ी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स और हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम जैसे बड़े ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स भी आएंगे।
- डिजिटल न्यूज मीडिया को भी प्रेस काउंसिल के नियमों का पालन करना होगा।
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