क्या कोरोना की दूसरी लहर की तबाही से बचा जा सकता था? क्या लाखों लोगों की ज़िंदगी बचाई जा सकती थी? क्या कोरोना नियंत्रण के लिए ज़िम्मेदार एजेंसी आईसीएमआर के राजनीतिक इस्तेमाल की वजह से वह तबाही आई थी? ये सवाल इसलिए कि आईसीएमआर के लिए शोध करने वालों ने इस पर बड़ा खुलासा किया है।
राजनीति के लिए विज्ञान के इस्तेमाल से आई दूसरी लहर की तबाही!
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- 15 Sep, 2021
कोरोना की दूसरी लहर की तबाही के लिए क्या राजनीतिक एजेंडा ज़िम्मेदार है? न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार आईसीएमआर के लिए शोध करने वालों ने इस पर बड़ा खुलासा किया है।

‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं का कहना है कि देश की शीर्ष विज्ञान एजेंसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नैरेटिव में ठीक बैठने वाली अपनी रिपोर्ट तैयार की और उसी तरह के निष्कर्ष निकाले। जिस एक शोधकर्ता ने आईसीएमआर को लेकर ये दावे किए हैं उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया है कि 'विज्ञान का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में किया गया'।
दरअसल, आरोप है कि सरकार द्वारा नियुक्त वैज्ञानिकों ने सितंबर 2020 में यानी दूसरी लहर आने से आठ महीने पहले एक नए प्रकोप की आशंका को कमतर पेश किया। इसके बदले में एक ऐसी रिपोर्ट जारी की गई जिसमें बताया गया कि शुरुआती लॉकडाउन के प्रयासों के कारण संक्रमण फैलना रुक गया था। इस रिपोर्ट को देश के मीडिया ने जबरदस्त तरीक़े से फैलाया था। इससे लोगों में यह संदेश गया कि कोरोना संकट अब ख़त्म हो रहा है, जबकि सच्चाई इसके उलट थी। अख़बार ने लिखा है कि यह जो रिपोर्ट थी वह प्रधानमंत्री के दो बड़े लक्ष्यों से पूरी मेल खाती थी। एक तो पहली लहर की वजह से अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी थी उसको संभालना था और दूसरे कुछ महीने बाद कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले थे और इसके लिए चुनाव प्रचार करना था।