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क्या नेहरू आरक्षण विरोधी थे? जानिए, मुख्यमंत्रियों को लिखे उनके ख़त में क्या है

संविधान पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंडित नेहरू को निशाने पर लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक आरक्षण के ख़िलाफ़ थे। उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू का अपना संविधान चलता था और वे अपने तरीके से काम करते थे। उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा था कि अगर संविधान बदलने की ज़रूरत पड़ेगी तो इसे बदला जाएगा।

तो सवाल है कि आख़िर आरक्षण और इसको लेकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे ख़त में पंडित नेहरू ने ऐसा क्या कहा था कि पीएम मोदी उन्हें आरक्षण विरोधी बता रहे हैं? 

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नेहरू ने आजादी के दो महीने बाद 15 अक्टूबर 1947 को प्रांतीय सरकारों के प्रमुखों और बाद में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखना शुरू किया था। उन्होंने अपनी मृत्यु से चार महीने पहले 21 दिसंबर 1963 तक यह काम जारी रखा। इन पत्रों में नेहरू के राजनीतिक विचार दिखते हैं। इसके साथ ही नागरिकता और लोकतंत्र से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक कई विषयों पर उनके विचार का पता चलता है।

मुख्यमंत्रियों को लिखे गए नेहरू के पत्रों का कानूनी जानकार माधव खोसला ने संकलन संपादित किया है। इसके अनुसार, 27 जून 1961 को लिखे गए एक पत्र में पूर्व प्रधानमंत्री ने आरक्षण की बात की थी।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पत्र में नेहरू ने 'इस जाति या उस समूह को दिए जाने वाले आरक्षण और विशेष विशेषाधिकारों की पुरानी आदत से बाहर निकलने' की बात कही है।

ख़त में नेहरू ने कहा कि मुख्यमंत्रियों की हाल ही में हुई बैठक में 'यह तय किया गया था कि मदद जाति के आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर दी जानी चाहिए'।
उन्होंने आगे कहा, 'यह सच है कि हम अनुसूचित जातियों और जनजातियों की मदद करने के बारे में कुछ नियमों और परंपराओं से बंधे हुए हैं। वे मदद के हकदार हैं, लेकिन फिर भी, मैं किसी भी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूं, खासकर नौकरियों में। मैं किसी भी ऐसी चीज के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देता हूँ जो अकुशलता और दूसरे दर्जे के मानकों की ओर ले जाती है। मैं चाहता हूँ कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने। जिस क्षण हम दूसरे दर्जे को बढ़ावा देते हैं, हमरा नुक़सान होता है।'
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नेहरू ने तब तर्क दिया था कि 'पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा के अवसर देना है, विशेष रूप से तकनीकी शिक्षा। उन्होंने कहा, 'बाकी सब कुछ किसी प्रकार की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरीर की ताकत या स्वास्थ्य में वृद्धि नहीं करता है'। नेहरू ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने इस संबंध में दो निर्णय लिए थे: सार्वभौमिक मुफ्त प्राथमिक शिक्षा, और छात्रवृत्ति। उन्होंने कहा, 'मैं प्रतिभाशाली और योग्य लड़के और लड़कियों पर जोर देता हूं क्योंकि यह केवल वे ही हैं जो हमारे मानकों को ऊपर उठाएंगे। मुझे कोई संदेह नहीं है कि इस देश में संभावित प्रतिभाओं का एक विशाल भंडार है, अगर हम केवल उन्हें अवसर दे सकें। लेकिन अगर हम सांप्रदायिक और जातिगत आधार पर आरक्षण लेते हैं, तो हम प्रतिभाशाली और योग्य लोगों को डुबो देंगे और दूसरे दर्जे या तीसरे दर्जे के बने रहेंगे।' 

उन्होंने कहा, 'मुझे यह जानकर दुख हुआ कि सांप्रदायिक विचारों के आधार पर आरक्षण का यह मामला कितनी दूर तक चला गया है। यह जानकर मुझे आश्चर्य हुआ कि कभी-कभी पदोन्नति भी सांप्रदायिक या जातिगत विचारों पर आधारित होती है। यह न केवल मूर्खता है, बल्कि आपदा है। उन्होंने कहा, 'आइए, हम पिछड़े समूहों की हर तरह से मदद करें, लेकिन कार्यकुशलता की कीमत पर कभी नहीं।'

बता दें कि नेहरू के पूरे कार्यकाल के दौरान आरक्षण का प्रावधान बना रहा। 1950 में तैयार किए गए संविधान के अनुच्छेद 334 ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और एंग्लो-इंडियन समुदाय को 10 साल की अवधि के लिए आरक्षण दिया गया। इसके बाद इस अनुच्छेद को 1969, 1980, 1989, 1999 में संशोधित किया गया। मौजूदा स्थिति के अनुसार, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए आरक्षण 80 वर्ष और एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए 70 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है।
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क़मर वहीद नक़वी
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